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रक्तदान से LGBTQ+ समूह को बाहर करना

(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक राष्ट्रीय घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय) 

संदर्भ 

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक व्यक्तियों, ट्रांसजेंडर्स एवं महिला यौनकर्मियों (LGBTQ+) को रक्तदान से वंचित रखने को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को औपचारिक नोटिस जारी किया है।

भारत में रक्तदान के नियम 

  • भारत में रक्तदान की प्रक्रिया के लिए 11 अक्तूबर, 2017 को राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा ‘रक्तदाता चयन एवं रक्तदाता रेफरल दिशानिर्देश, 2017’ (Guidelines for Blood Donor Selection & Blood Donor Referral, 2017) जारी किया गया था। 
  • इन दिशानिर्देशों के अनुसार, सुरक्षित रक्ताधान के लिए, ब्लड बैंकों को निम्न बुनियादी सिद्धांतों का पालन करना चाहिए :
    • रक्त केवल स्वैच्छिक, धन के बिना (Non-Remuneration), निम्न जोखिम वाले, सुरक्षित एवं स्वस्थ दाताओं से ही स्वीकार किया जाना चाहिए। 
    • स्वस्थ दोहराए जाने वाले दाताओं की पर्याप्त संख्या को प्रोत्साहित करने और बनाए रखने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।
    • दाताओं को उनके योगदान के लिए उचित सम्मान व धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए।

प्रमुख तथ्य 

  • भारत में पहला रक्त दान बैंक वर्ष 1945 में कोलकाता में स्थापित किया गया था।
  • भारत में स्वैच्छिक रक्त दान वर्ष 1954 से शुरू हुआ।
  • भारत में वर्ष 1988 में रक्त दान के समय HIV परीक्षण अनिवार्य किया गया।
  • वर्ष 2002 में राष्ट्रीय रक्त नीति तैयार की गई थी। 
  • वर्ष 2017 में रक्तदाता चयन एवं रक्तदाता रेफरल दिशानिर्देश, 2017’ जारी किए गए।

रक्तदान से LGBTQ+ को बाहर रखना 

  • ‘रक्तदाता चयन एवं रक्तदाता रेफरल दिशानिर्देश, 2017’ के खंड 12 में यह अनिवार्य है कि ‘दाता को रक्ताधान से फैलने वाली बीमारियों से मुक्त होना चाहिए, और एच.आई.वी., हेपेटाइटिस बी या सी संक्रमण के जोखिम वाला नहीं होना चाहिए, जैसे कि ट्रांसजेंडर, समलैंगिक व्यक्ति एवं महिला यौनकर्मी आदि’।
  • इस प्रकार, ये दिशानिर्देश ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, महिला यौनकर्मियों एवं समलैंगिक संबंध वाले व्यक्तियों को रक्तदाता बनने से स्थायी रूप से प्रतिबंधित करते हैं।

क्यों अनुचित है यह प्रावधान

  • इस तरह का पूर्ण प्रतिबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 एवं 21 के तहत संरक्षित समानता, सम्मान व जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो रक्तदान पर इस तरह का कठोर प्रतिबंध इस धारणा पर आधारित है कि व्यक्तियों का एक विशेष समूह यौन संचारित रोगों से पीड़ित हो सकता है। 
  • चिकित्सा प्रौद्योगिकी एवं शिक्षा में, विशेष रूप से रक्त विज्ञान के क्षेत्र में, 21वीं सदी में बहुत तेजी से प्रगति हुई है और प्रत्येक रक्तदान से पहले रक्तदाताओं की जांच की जाती है। 
    • हेमेटोलॉजी में रक्ताधान से पहले रक्तदाताओं की जांच की जाती है।
  • ऐसे युग में समलैंगिक व्यक्तियों के प्रति अत्यधिक भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण से उत्पन्न कठोर प्रतिबंध तर्कसंगत नहीं है।

राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (National Blood Transfusion Council : NBTC)

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार, वर्ष 1996 में राष्ट्रीय रक्ताधान परिषद का गठन किया गया था। 
  • इसका उद्देश्य स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देना, सुरक्षित रक्ताधान सुनिश्चित करना, रक्त केंद्रों को बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना, मानव संसाधन विकसित करना तथा रक्त नीति तैयार करना और उसे लागू करना है।

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (National Aids Control Organisation :NACO) 

  • NACO भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत संचालित विभाग है। 
  • यह भारत में HIV/AIDS की रोकथाम के लिए 35 नियंत्रण समुदायों के माध्यम से कार्यक्रम का नियंत्रण तथा नेतृत्व करता है।
  • वर्ष 1987 में भारत में पहली बार एड्स का पता चलते ही स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘राष्ट्रीय एड्स समिति’ का गठन किया।
  • वर्ष 1992 में भारत का पहला राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (1992-1999) शुरू किया गया था और इसे लागू करने के लिए NACO का गठन किया गया था।
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