प्रारम्भिक परीक्षा : हिंदू विवाह अधिनियम,1955 मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र1 & 2- भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ & न्यायपालिका |
सुर्खियों में क्यों ?
- हाल ही में, पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने निर्णय दिया है कि किसी भी पति-पत्नी को बिना फैमिली कोर्ट गए सीधे तलाक मंजूर किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु
मुद्दा क्या है ?
- दरअसल सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वर्ष 2014 में दायर किए गए एक मामले से जुड़ा है।
- शिल्पा सैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन के मामले में दोनों पक्षों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट से तलाक मांगा था।
निर्णय क्या दिया गया ?
- खंडपीठ ने कहा कि ऐसा तभी किया जा सकता है, जब पति-पत्नी के बीच सुलह की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हों और उनके बीच रिश्ते को फिर से शुरू करने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई हो।
- खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामले में तलाक के इच्छुक दंपत्ति को अब 6 महीने का इंतजार नहीं करना होगा।
- संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, "हमने माना है कि रिश्तों में सुधार की गुंजाइश खत्म हो चुके और विवाह टूट चुके मामलों में यह अदालत किसी भी विवाह को भंग कर सकता है। यह सार्वजनिक नीति के विशिष्ट या मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करेगा।"
तलाक लेने के आधार क्या हो सकते हैं -
- पति या पत्नी में से कोई भी शादी के बाद अपनी इच्छा से किसी दूसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाता हो।
- शादी के बाद अपने साथी के साथ मानसिक या शारीरिक क्रूरता का बर्ताव करता हो।
- बिना किसी ठोस कारण के ही दो साल या उससे लंबे समय से अलग रह रहे हों।
- दोनों पक्षों में से कोई एक हिंदू धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेता हो।
- दोनों में से कोई एक पक्ष मानसिक रूप से बीमार हो और उसके साथ वैवाहिक जीवन जीना संभव न हो।
- अगर दोनों में से कोई एक कुष्ठ रोग से पीड़ित हो।
- पति या पत्नी में से कोई एक संक्रामक यौन रोग से पीड़ित हो।
- अगर पति या पत्नी में से कोई संन्यास ले ले।
हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की वर्तमान प्रक्रिया क्या है ?
- हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B "आपसी सहमति से तलाक" प्रदान करती है।
- तलाक के लिए दोनों पक्षों को एक साथ जिला अदालत में याचिका दायर करनी चाहिए "इस आधार पर कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं, कि वे एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं और यह कि वे परस्पर सहमत हैं कि उन्हें विवाह भंग कर देना चाहिए”।
संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?
- अनुच्छेद 142 की उपधारा 1 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय "ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो किसी भी कारण या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक है और इस तरह पारित कोई भी डिक्री या ऐसा किया गया आदेश पूरे भारत में लागू होगा।