(प्रारंभिक परीक्षा; राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा; संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)
संदर्भ
वर्तमान में खनिज संसाधनों का दोहन केवल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि अब इनका दोहन लाभ कमाने तथा राजस्व की प्राप्ति के लिये भी किया जा रहा है। जिस दर से खनिज संसाधनों का दोहन किया जा रहा है वह भावी पीढ़ियों की आवश्कताओं से एक प्रकार का समझौता है। अतः खनिजों के दोहन के संदर्भ में पुनर्विचार किये जाने की आवश्कता है।
अंतर-पीढ़ीगत समता का सिद्धांत
- इस सिद्धांत के अनुसार वर्तमान पीढ़ी का यह उत्तरदायित्व है कि वह संसाधनों के उचित उपयोग तथा पारिस्थितकी संतुलन को बनाए रखते हुए वह भावी पीढ़ी को एक स्वस्थ्य, संसधानपूर्ण एवं सुरक्षित पर्यावरण का हस्तांतरण करे।
- वर्तमान पीढ़ी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये भावी पीढ़ियों की क्षमताओं से समझौता नहीं कर सकती और यह सतत् अर्थव्यवस्था के लक्ष्य से परिलक्षित होता है।
- अंतर-पीढ़ीगत समानता का सिद्धांत वर्तमान पीढ़ी को यह सुनिश्चित करने के लिये जरूरी है कि वह भावी पीढ़ियों को कम से कम उतने संसाधन तो अवश्य प्रदान करें जितने उसे प्राप्त हुए हैं।
- यदि वर्तमान पीढ़ी अंतर-पीढ़ीगत समानता का पालन करने में सफल होती है, तो भावी पीढ़ी वर्तमान पीढ़ी के अनुसार आवश्यक संसाधनों को प्राप्त कर सकेगी।
खनिज नीति से संबंधित मुद्दे
- भारत की राष्ट्रीय खनिज नीति, 2019 में कहा गया है: "प्राकृतिक संसाधन, जिसमें खनिज भी शामिल हैं, एक साझा विरासत है, जहाँ राष्ट्र नागरिकों की ओर से ट्रस्टी की भूमिका निभाता है ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इस विरासत का लाभ मिल सके।”
- ऐसे में तेल, गैस और खनिजों का अधिक निष्कर्षण प्रभावी रूप से इस विरासत को बेचने जैसा है।
- दुर्भाग्य से, सरकार खनिज बिक्री की प्राप्तियों को राजस्व या आय के रूप में मानती है जो कि मूल रूप से विरासत में मिली संपत्ति की ही बिक्री है।
- साथ ही, इसका परिणाम यह हुआ है कि सरकारें खनिजों को उनकी वास्तविक कीमतों से कम पर उन कीमतों पर बेचती हैं जो लॉबिंग, राजनीतिक चंदे तथा भ्रष्टाचार से प्रेरित होती हैं।
गलत मूल्यांकन
- सरकार द्वारा खनिज बिक्री से प्राप्त आगमों को ‘राजस्व’ माना जाता है और इसके अनुसार ही इसे व्यय भी किया जाता है।
- विश्व भर में खनिज संसाधनों के खनन से हो रही क्षति के अनुभवजन्य साक्ष्य बढ़ रहे हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी इस बात के प्रमाण मिले हैं कि संसाधन संपन्न देशों की सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र के निवल मूल्य में गिरावट का सामना करती हैं, अर्थात, ये सरकारें निर्धन होती जा रही हैं।
- उच्च मुनाफे के कारण, निष्कर्षक (Extractors) अधिक से अधिक खनिज संसाधनों का निष्कर्षण करके आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं।
- खनिज संसाधनों का अधिक खनन पहले से खराब स्थिति को और भी बदतर बना सकता है।
- सरकारी लेखा मानक सलाहकार बोर्ड द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के लेखांकन और खनिज संपदा हेतु रिपोर्टिंग के लिये मानकों की इस त्रुटि को सही किये जाने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- यदि खनिज संसाधनों का निष्कर्षण किया जाता है और उन्हें बेचा जाता है, तो मूल्य में शून्य हानि प्राप्त करना स्पष्ट उद्देश्य होना चाहिये और ट्रस्टी के रूप में सरकार द्वारा पूर्ण आर्थिक मूल्य को प्राप्त किया जाना चाहिये।
- संसाधनों की किसी भी प्रकार की हानि वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ियों के लिये नुकसानदेह है। यह विचार कि संसाधनों की कुछ हानियाँ लाभप्रद होती हैं, अनुचित है।
- भारत की राष्ट्रीय खनिज नीति 2019 में कहा गया है कि राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगी कि निष्कर्षित खनिज संसाधनों का पूरा मूल्य राज्य को प्राप्त हो।
- इस सदर्भ में, नॉर्वे की तरह, एक ‘फ्यूचर जनरेशन फंड’ के माध्यम से संपूर्ण खनिज बिक्री से प्राप्त होने वाली आय बचाई जानी चाहिये ।
- ‘फ्यूचर जनरेशन फंड’ का राष्ट्रीय पेंशन योजना फ्रेमवर्क के माध्यम से निष्क्रिय निवेश किया जा सकता है।
- इस प्रकार के फंड की वास्तविक आय केवल नागरिकों के लाभांश के रूप में सभी में समान रूप से वितरित की जा सकती है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये यह अधिक उपयुक्त है क्योंकि इससे पूंजी-निर्माण होगा, बचत दर में वृद्धि होगी जिससे घरेलू पूंजी अधिक उपलब्ध हो सकेगी और यह संभावित वापसी में सुधार करते हुए जोखिम में भी विविधता लाता है।
निष्कर्ष
सभी खनिज संसाधन वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ियों के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। चूँकि इन संसाधनों को एक बार उपभोग करने के पश्चात पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता अतः इन संसाधनों का संयमपूर्ण निष्कर्षण होना चाहिये, जिससे भावी पीढ़ी भी इन संसाधनों का उपयोग कर सके।