(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र :1 : भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएँ।)
संदर्भ
इस वर्ष अक्तूबर माह में दिल्ली के साथ ही उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत के कई हिस्सों में लगातार वर्षा हुई, जो भारतीय उप-महाद्वीप के मानसून पैटर्न में हो रहे परिवर्तन को दिखलाती है।
मानसून पैटर्न में परिवर्तन
- हालिया वर्षों में मानसूनी वर्षा अधिक अनिश्चित हो गई है जैसे वर्षा के दिनों का कम लेकिन अधिक तीव्र होना। साथ ही, जून से सितंबर की अवधि तक चलने वाली मानसूनी वर्षा अब अक्तूबर तक विस्तारित हो रही है।
- अक्टूबर में वर्षा की घटनाएँ पिछले कई वर्षों से देखी जा रही है लेकिन यह वर्षा स्थानीय मौसम, वायुमंडलीय घटनाओं आदि के कारण होती थी। हाल के वर्षों में देखी गई वर्षा की प्रकृति भिन्न है। इस दौरान छोटी अवधि में अत्यधिक बारिश के बजाय कुछ दिनों तक लगातार बारिश की परिस्थितियाँ बन रही है।
- हाल ही में दिल्ली सहित उत्तर और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में हुई बारिश, पश्चिमी विक्षोभ के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित मानसूनी पवनों की परस्पर क्रिया (Interaction) का परिणाम थी।
जलवायु परिवर्तन से मानसून का विस्तार
- वैश्विक मौसम पैटर्न में हो रहे अधिकांश परिवर्तनों की तरह ही भारतीय मानसून में हो रहे बदलाव भी मुख्यतः जलवायु परिवर्तन से प्रेरित हैं। भारत में जहाँ एक तरफ मानसूनी वर्षा में निरंतर कमी हो रही है, वहीं दूसरी तरफ बादलों के तीव्र प्रस्फोट में वृद्धि हो रही है। अत्यधिक वर्षा (Extreme Rainfall) की घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति भी बढ़ रही हैं।
- अक्तूबर तक मानसूनी वर्षा के विस्तार का एक संभावित कारण यह हो सकता है कि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर अब पहले की तुलना में अधिक गर्म हो रहे हैं।
- गर्म समुद्री धाराएँ मानसूनी हवाओं के निर्माण में मदद करती हैं। इससे पहले, मानसून के मौसम में होने वाली वर्षा से समुद्र का तापमान कम हो जाता था। लेकिन संभवतः ग्लोबल वार्मिंग के कारण, पारंपरिक मानसूनी अवधि के बाद भी महासागर गर्म बने रहते हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग अन्य तरीकों से भी वर्षा पैटर्न को प्रभावित कर रही है। विदित है कि गर्म वायुमंडल में जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है जो प्रायः अपेक्षा से अधिक भारी मूसलाधार वर्षा के लिये उत्तरदायी होती है।
मानसून पूर्वानुमान की चुनौती
- मानसून के बदलते पैटर्न और अनियमित घटनाओं के बढ़ते उदाहरण भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के लिये पूर्वानुमान संबंधी जटिलताएँ पैदा कर रहे हैं।
- आई.एम.डी. ने पिछले 10-12 वर्षों में अवलोकन उपकरण स्थापित करने, कंप्यूटिंग संसाधनों को अपग्रेड करने और मौसम पूर्वानुमान मॉडल को ठीक करने में भारी निवेश किया है।
- वर्तमान में आई.एम.डी. के पूर्वानुमान न केवल अधिक सटीक और विशिष्ट हैं, बल्कि वे प्रभाव आधारित और कार्रवाई योग्य भी हैं।
- हालाँकि, पूर्वानुमान शत प्रतिशत सटीक नहीं हो सकते हैं, लेकिन यह दुनिया की अन्य प्रमुख मौसम पूर्वानुमान एजेंसी के बराबर है। इसमें जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत कर रहा है जिसके लिये अधिक अवलोकन स्टेशन स्थापित करने, अधिक डाटा एकत्र करने और अधिक कंप्यूटिंग करने की आवश्यकता है।
मानसून के विस्तार का प्रभाव
- मानसूनी वर्षा केवल एक मौसमी घटना ही नहीं है बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक है। भारतीय कृषि का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अभी भी सिंचाई के लिये मानसूनी वर्षा पर निर्भर है तथा पेयजल आपूर्ति और बिजली उत्पादन भी मानसून से जुड़े हुए हैं।
- मानसून की अवधि में परिवर्तन से इन क्षेत्रों में कुछ बदलावों की आवश्यकता होगी। इन क्षेत्रों में फसलों की बुवाई का समय, फसल चक्र, फसलों के चुनाव को भी बदलना पड़ सकता है।
- मानसून की अवधि के विस्तार से बांध प्रबंधन पर भी असर पड़ सकता है। विदित है कि देश के उत्तरी और मध्य भागों के अधिकांश जलाशय सितंबर के अंत तक पूर्ण क्षमता स्तर को प्राप्त लेते हैं। लेकिन यदि मानसून लगातार अक्तूबर माह में भी सक्रिय रहता है तो जलाशयों में अतिरिक्त जल की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।