(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारत का प्राकृतिक व सामाजिक भूगोल, जनसांख्यिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2: जनसंख्या एवं सम्बद्ध मुद्दे, सामाजिक सशक्तीकरण, सम्वेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू द्वारा ‘तांगम: एन एथनोलिंग्विस्टिक स्टडी ऑफ द क्रिटिकली इंडेंजर्ड ग्रुप ऑफ अरुणाचल प्रदेश’ (Tangams: An Ethnolinguistic Study Of The Critically Endangered Group of Arunachal Pradesh) नामक शीर्षक से एक पुस्तक का विमोचन किया गया।यह पुस्तक तांगम समुदाय, उनकी भाषा व भावी पीढ़ियों के लिये सहायक सिद्ध होगी।
पृष्ठभूमि
तांगम समुदाय की भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग 250 है, जो अरुणाचल प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में केंद्रित है। भाषाई रूप से अत्यधिक विविधतापूर्ण अरुणाचल प्रदेश का यह मामला बड़े मुद्दों के साथ-साथ व्यापक समस्या को परिलक्षित करता है। भाषाओं का संकटग्रस्त होना सांस्कृतिक क्षरण का एक कारण है।
तांगम समुदाय: प्रमुख तथ्य
- अरुणाचल प्रदेश की एक बड़ी ‘आदि जनजाति’ (Adi Tribe) के अंतर्गत तांगम एक छोटा सा समुदाय हैं, जो ऊपरी सियांग जिले के पेनडेम सर्कल में कॉगिंग/कुग्गिंग (Kugging) क्षेत्र में निवास करते हैं।
- कुग्गिंग क़स्बा, ‘आदि जनजाति’ के अन्य उपसमूहों, जैसे- शिमॉन्ग (Shimong), मिन्यांग (Minyong) के साथ-साथ ‘खम्बा’ (Khamba- एक बौद्ध आदिवासी समुदाय) द्वारा बसे कई गाँवों से घिरा हुआ है।
तांगम भाषा के सदस्यों की संख्या
- वर्ष 2016 से 2020 के मध्य राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के ‘संकटग्रस्त भाषा केंद्र’ (सी.एफ.ई.एल.) की एक टीम द्वारा व्यापक स्तर पर ज़मीनी अनुसंधान के बाद इस समुदाय का दस्तावेजी करण किया गया जिसके अनुसार इस भाषा को बोलने वाले केवल 253 लोग एक गाँव में ही केंद्रित हैं।
- यूनेस्को के ‘संकटग्रस्त भाषाओं के वैश्विक एटलस’ (2009) के अनुसार,‘तानी समूह’ (Tani) से सम्बंधित ‘तांगम’ एक मौखिक भाषा है, जो वृहद् ‘तिब्बती-बर्मन भाषा परिवार’ के तहत ‘गम्भीर रूप से संकटग्रस्त' भाषा के रूप में चिह्नित है।
- पड़ोसी समुदायों के साथ संवाद करने के लिये तांगम बहुभाषी हो गए हैं, जो तांगम के साथ-साथ अन्य भाषाएँ जैसे- शिमॉन्ग, खम्बा और हिंदी भी बोलते हैं। इस कारण वे मुश्किल से ही अपनी भाषा बोलते हैं।
अरुणाचल प्रदेश में अन्य भाषाओं की स्थिति
- अरुणाचल प्रदेश की भाषाओं को ‘सीनो-तिब्बती’ (Sino-Tibetan) भाषा परिवार के तहत वर्गीकृत किया गया है। साथ ही, अधिक विशेषीकृत रूप से अरुणाचल प्रदेश की भाषाओं को ‘तिब्बती-बर्मन’ और ‘ताई’(Tai) भाषा समूह के अंतर्गत ‘लोलो-बर्मिश’, ‘बोधिक’, ‘साल’, ‘तानी’, ‘मिशमी’, ‘ह्रुईश’ और ‘ताई’जैसे समूहों में वर्गीकृत किया गया है।
- यद्यपि अरुणाचल प्रदेश में शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत अधिकांश जनजातीय भाषाओं के लिये देवनागरी, असमिया और रोमन लिपियों का प्रयोग किया जाता है परंतु स्थानीय अध्येताओं द्वारा ‘तानी’ और ‘वांचो’ लिपि जैसी नई लिपियों का भी विकास किया गया है।
- हालाँकि, अभी तक अरुणाचल प्रदेश की भाषाओं के बारे में व्यवस्थित, वैज्ञानिक या आधिकारिक सर्वेक्षण के अभाव में, विशेषज्ञों का अनुमान है कि यहाँ लगभग 32 से 34 भाषाएँ बोली जाती हैं। यदि इन भाषाओं के भीतर विभिन्न भाषा वैज्ञानिक प्रकारों या बोलियों को सूचीबद्ध किया जाए, तो इनकी संख्या 90 तक पहुँच सकती है।
- यूनेस्को के ‘विश्व की जोख़िमयुक्त भाषाओं के एटलस’(2009) के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश की 26 से अधिक भाषाओं को संकटग्रस्त माना गया है जो ‘असुरक्षित', 'निश्चित रूप से संकटग्रस्त' से लेकर ‘गम्भीर रूप से लुप्तप्राय’ श्रेणियों में वर्गीकृत की गई हैं।
भाषाओं के जोखिम में होने के कारण
- अरुणाचल प्रदेश में विभिन्न समुदायों के बीच भाषाओं की विविधता के कारण ये समुदायलिंक भाषाओं जैसे- अंग्रेजी, असमिया और बोल-चाल वाली हिंदी के विविध रूपों (अरुणाचली हिंदी) पर अधिक निर्भर हैं।
- सी.ई.एफ़.एल.के एक अनुसंधान संवाद पत्र के अनुसार, संख्यात्मक रूप से बड़ी जनजातियाँ जैसे कि न्यिशी (Nyishi), गालो, मिशमी, तंगसा(Tangsa)आदि भी संकट से सुरक्षित नहींहैं और असुरक्षित श्रेणी में वर्गीकृत हैं।
- यह वर्गीकरण दर्शाता है कि इन जनजातियों की युवा पीढ़ी, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, अपनी मातृभाषा का कम-से-कम उपयोग करती है।
तांगम व विलुप्त हेतु अधिक सुभेद्य अन्य भाषाएँ
- तांगम का मामला विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि इनकी आबादी काफी कम है। इसके अलावा, गम्भीर रूप से संकटग्रस्त एक अन्य भाषा मेयोर (Meyor) है।
- अरुणाचल प्रदेश की लगभग सभी भाषाएँ संकटग्रस्त हैं परंतु छोटे समूहों वाली भाषाएँ अधिक असुरक्षित हैं। यहाँ भाषाओं का विलुप्त होना प्रत्यक्ष तौर पर जनसंख्या के कम अनुपात से जुड़ा है।
- तांगम की ही तरह मेयोर भाषा बोलने वालों में भी अपनी मातृभाषा से अन्य पड़ोसी भाषाओं जैसे मिजू, मिश्मी और हिंदी आदि में बड़ा स्थानांतरण देखा गया है।
आगे की राह
भाषा और संस्कृति एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। बहु-विषयक दृष्टिकोण को अपनाते हुए न केवल भाषा बल्कि रिवाज़ व संस्कार, लोकगीत के साथ-साथ स्थानीय खाद्य और उसकी आदतों, विश्वास व परम्परा के संरक्षण की भी ज़रूरत है। जीवन और संस्कृति के हर पहलू पर ध्यान दिया जाना चाहिये जिससे जातीय भाषा समूह के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान को बनाए रखा जा सके। स्थानीय वक्ताओं और अध्येताओं के साथ मिलकर भाषा के उत्कृष्ट अनुसंधान और समकालीन प्रयोग पर ध्यान दिया जाना चाहिये।