चर्चा में क्यों?
हाल ही में, ‘कृषक उपज, व्यापार एवं वाणिज्य अधिनियम, 2020’ (FPTC Act, 2020) पर बहस के दौरान कुछ राज्यों के हितधारकों, विशेषकर किसानों ने विधेयक से सम्बंधित प्रावधानों का विरोध किया है।
कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम, 2020 : मुख्य प्रावधान
- यह अधिनियम किसानों को प्रत्यक्ष विपणन में संलग्न करके, बिचौलियों के प्रभाव को समाप्त करने तथा किसानों को उनकी उपज को देश के किसी भी स्थान पर बेचने एवं खरीदने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत खरीदारों को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वे लाइसेंस के बिना या कोई शुल्क चुकाए बिना ए.पी.एम.सी. के बाहर किसानों से उपज खरीद सकतें हैं।
- एफ.पी.टी.सी. अधिनियम के तहत केवल ए.पी.एम.सी. बाज़ारों पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिये दबाव डाला गया है तथा इन मंडियों को अपने परिसर के बाहर बिक्री हेतु प्रतिस्पर्धा को सक्षम बनाने के लिये बाज़ार शुल्क और कमीशन को 2% या उससे कम करने का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त ए.पी.एम.सी. अधिनियम के तहत लगाए गए अनुचित शुल्क कम किये जाएंगे।
विभिन्न राज्यों में प्रावधान
- ए.पी.एम.सी. अधिनियम के तहत अधिसूचित फसलों पर 25 राज्यों में से 12 राज्यों में कोई शुल्क नहीं लगाया जाता है तथा इन राज्यों में से नौ राज्यों में प्रमुख फसलों पर मंडी शुल्क जैसे सेवा शुल्क 0-1% तक, जबकि मध्य प्रदेश और त्रिपुरा में 2% प्रतिशत है। नये अधिनियम से इन राज्यों में ए.पी.एम.सी. मंडियों और उनके व्यवसाय के लिए कोई खतरा नहीं है क्योंकि निजी व्यापारियों और विक्रेताओं को मंडी शुल्क से होने वाली छूट से लाभ प्राप्त होगा। इन राज्यों को प्रथम श्रेणी के अंतर्गत रखा गया है।
- आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना दूसरी श्रेणी में आते हैं जहां मंडियों के लिए सेवा शुल्क उपज के मूल्य का 1% है और कमीशन 1-2% तक भिन्न हो सकता है। उत्तराखंड भी इसी श्रेणी में आता है। कर्नाटक जैसे राज्य जिसमें कुल शुल्क 3.5 % है मंडी शुल्क को आसानी से 2% या उससे कम किया जा सकता हैं।
- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश राज्य तीसरी श्रेणी में शामिल हैं, जहाँ कुल शुल्क 5-8.5% तक होते हैं। पंजाब इस श्रेणी में अग्रणी राज्य है जबकि दूसरा स्थान हरियाणा का है। जब तक सरकार द्वारा पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों की प्रमुख फसलों जैसे धान और गेहूं की खरीद की जाती है तब तक इन्हें मंडियों के बाहर बिक्री में किसी भी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा।
लाभ
- इन राज्यों में ए.पी.एम.सी. मंडियों के परिसर के बाहर बिक्री के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाने के लिए बाज़ार शुल्क और कमीशन को 2% या उससे कम पर लाना इन राज्यों के दीर्घकालिक हित में है। इस अधिनियम का ए.पी.एम.सी. मंडियों पर प्रभाव मंडियों को शुल्क और लगान के रूप में मिलने वाले लाभ पर निर्भर करेगा।
- इस अधिनियम में इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर लेनदेन की अनुमति देने से कृषि व्यापार में ई-कॉमर्स को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, मंडियों के अतिरिक्त फॉर्मगेट, कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस, प्रसंस्करण इकाइयों को भी व्यापार की स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
- किसानों को प्रत्यक्ष विपणन में संलग्न करके, बिचौलियों को समाप्त करने तथा किसानों की उपज को देश के किसी भी हिस्से में बेचने एवं खरीदने की स्वतंत्रता से उचित और अधिकतम लाभ सुनिश्चित किया जा सकेगा।
अधिनियम से जुड़ी चिंताएँ
- कुछ राज्यों में ए.पी.एम.सी. मंडियों के लिए वास्तविक खतरा ए.पी.एम.सी. अधिनियम के तहत लगाए गए अत्यधिक और अनुचित प्रभार से है। एफ.पी.टी.सी. अधिनियम केवल ए.पी.एम.सी. बाज़ारों पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए दबाव डालेगा। यह ए.पी.एम.सी. बाज़ारों से व्यापारियों को दूर नहीं करेगा क्योंकि मंडियों का बुनियादी ढांचा एक ही स्थान पर थोक उपज और व्यक्तिगत लेन-देन के लिये उपलब्ध बाज़ार इसके बाहर आवश्यक अतिरिक्त लागत बचाने के लिए प्रेरित करेगा।
- राज्यों को किसानों के कल्याण के लिये मंडी शुल्क 1.5% के उचित स्तर से कम रखना चाहिये जिससे नए अधिनियम के तहत ए.पी.एम.सी मंडियों और निजी चैनलों के सह-अस्तित्व को एक सही प्रतिस्पर्धी भावना के साथ बनाया रखा जा सकेगा।