चर्चा में क्यों?
पश्चिम बंगाल के गैर-सरकारी संगठन मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के ‘लेखांकन में अनियमितताओं’ के कारण, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के तहत संगठन के विदेशी अंशदान की प्राप्ति पर रोक लगा दी गई।
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी
- इसकी स्थापना मदर टेरेसा द्वारा वर्ष 1950 में की गई थी।
- इसका उद्देश्य शरणार्थी, वृद्ध वेश्याओं, मानसिक रोगियों, बीमार बच्चे, परित्यक्त बच्चे, एड्स रोगियों, वृद्ध व्यक्तियो की देखभाल करना हैं।
विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA)
- विदेशी अंशदान को नियंत्रित करने के लिये भारत सरकार द्वारा वर्ष 1976 में एफ.सी.आर.ए. अधिनियमित किया गया। इसे वर्ष 2010 में संशोधित भी किया गया।
- यह उन सभी संघों, समूहों और गैर-सरकारी संगठनों पर लागू होता है जो विदेशी अंशदान प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसे सभी एन.जी.ओ. के लिये एफ.सी.आर.ए. के तहत पंजीकरण अनिवार्य है।
- पंजीकरण की वैधता पाँच वर्ष होती है और इसे पुनः नवीनीकृत किया जा सकता है। पंजीकृत संगठन ही सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिये विदेशी योगदान प्राप्त कर सकते हैं।
विदेशी अंशदान के लिये गैर-अधिकृत व्यक्ति
- संसदीय सदस्य
- सरकारी अधिकारी
- न्यायाधीश
- मीडियाकर्मी
पंजीकरण निलंबन का आधार
- खातों के निरीक्षण और किसी एसोसिएशन की कार्यप्रणाली के विरुद्ध कोई प्रतिकूल तथ्य मिलने पर गृह मंत्रालय एफ.सी.आर.ए. पंजीकरण को प्रारंभ में 180 दिनों के लिये निलंबित कर सकता है।
- कोई निर्णय न होने तक, एसोसिएशन कोई नया दान प्राप्त नहीं कर सकता और न ही गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना नामित बैंक खाते में उपलब्ध राशि का 25% से अधिक का उपयोग ही कर सकता है।
राजनीतिक दलों के लिये प्रावधान
वर्ष 2017 में एफ.सी.आर.ए. अधिनियम, 1976 में संशोधन किया गया। इस संशोधन के अनुसार, राजनीतिक दल विदेशी कंपनियों (जिसमें किसी भारतीय का 50% या अधिक शेयर हो) से अंशदान प्राप्त कर सकते हैं।