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मंदी की आशंका

प्रारंभिक परीक्षा 

(अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ 

हालिया आंकड़ों से ज्ञात होता है कि अमेरिका की बेरोजगारी दर बढ़कर 4.3% हो गई है। इससे श्रम बाजार के कमजोर होने और अर्थव्यवस्था के मंदी (Recession) की चपेट में आने की आशंका बढ़ गई है।

मंदी से तात्पर्य 

  • मंदी का अर्थ अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधि में महत्वपूर्ण गिरावट से है जो एक विस्तारित अवधि तक जारी रहती है। 
  • वर्ष 1974 में अमेरिकी अर्थशास्त्री जूलियस शिस्किन ने मंदी को ‘लगातार दो तिमाहियों में वृद्धि दर में गिरावट’ के रूप में वर्णित किया था।
  • मंदी के दौरान रोजगार, निवेश एवं उपभोक्ता व्यय जैसे आर्थिक संकेतकों में आमतौर पर गिरावट आती हैं, जिससे व्यापार लाभ कम हो जाता है और बेरोजगारी बढ़ जाती है। 
  • आर्थिक मंदी की इस अवधि के परिणामस्वरूप आय का स्तर निम्न हो सकता है और आर्थिक उत्पादन कम हो सकता है, जिससे जीवन स्तर पर समग्र प्रभाव पड़ सकता है।

अमेरिका में मंदी के संकेतक

  • जी.डी.पी. वृद्धि : हालिया आँकड़ों के अनुसार, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर वर्ष 2024 में 2.2% है और वर्ष 2025 तक केवल 0.6% तक ही होने का अनुमान है।
  • यह जी.डी.पी. वृद्धि बेसलाइन परिदृश्य की तुलना में निम्न है। 
  • बेरोजगारी दर : अमेरिका में बेरोजगारी दर 4.20% है, जो वर्ष 2023 में 3.80% थी। यद्यपि यह दीर्घकालिक औसत 5.69% से निम्न है किंतु बेरोजगारी दर में उल्लेखनीय वृद्धि या बढ़ती बेरोजगारी दर आर्थिक संकट का संकेत हो सकती है।
  • मुद्रास्फीति एवं ब्याज दरें : मुद्रास्फीति एक चिंता का विषय रही है। विगत एक वर्ष में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में उच्च मुद्रास्फीति दर की स्थिति रही है। 
  • मुद्रास्फीति से निपटने के लिए फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ा दी हैं जो आर्थिक वृद्धि को मंद कर सकती हैं और संभावित रूप से मंदी का कारण बन सकती हैं। 
  • उपभोक्ता विश्वास : उपभोक्ता विश्वास सूचकांक में उतार-चढ़ाव देखा गया है। उदाहरण के लिए, कॉन्फ़्रेंस बोर्ड के उपभोक्ता विश्वास सूचकांक में हाल के महीनों में गिरावट आई है। 
  • यह उपभोक्ताओं के बीच बढ़ती अनिश्चितता को दर्शाता है।
  • यील्ड कर्व इनवर्जन : यील्ड कर्व ने इनवर्जन के संकेत दिखाए हैं। यह अलग-अलग परिपक्वता वाले बॉन्ड की ब्याज दरों को दर्शाता है। 
  • इनवर्टेड यील्ड कर्व को प्राय: मंदी के पूर्वानुमान के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह दर्शाता है कि अल्पकालिक ब्याज दरें दीर्घकालिक दरों से अधिक हैं, जो भविष्य की अर्थव्यवस्था के बारे में निराशावाद को दर्शाता है।

कुछ अनौपचारिक आर्थिक संकेतक सूचकांक

लिपस्टिक इंडेक्स (Lipstick index) 

  • लिपस्टिक इंडेक्स एस्टी लॉडर कंपनियों (सौंदर्य प्रसाधन की एक अग्रणी वैश्विक कंपनी) के अध्यक्ष लियोनार्ड लॉडर द्वारा गढ़ा गया एक आर्थिक संकेतक है। इसके अनुसार, आर्थिक मंदी के दौरान, लिपस्टिक जैसी विलासिता की सस्ती वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि होती है। 
  • वस्तुतः जब उपभोक्ता वित्तीय कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो वे अधिक महंगी वस्तुओं पर व्यय में कटौती कर सकते हैं। हालाँकि, फिर भी वे अपने मनोभाव को बेहतर बनाने के लिए सौंदर्य प्रसाधनों जैसी सस्ती विलासिता वाली वस्तुओं का प्रयोग कर सकते हैं।
  • उदाहरण के लिए, दुनिया के अग्रणी लक्जरी समूह LVMH ने वर्ष 2023 के अपने वार्षिक परिणाम में बताया की उन्होंने €86.2 बिलियन राजस्व एवं €22.8 बिलियन लाभ प्राप्त हुआ है। यह रिकॉर्ड राजस्व वाला वर्ष था। 
  • लिपस्टिक इंडेक्स की अवधारणा ‘ट्रेडिंग डाउन’ व्यवहार का एक रूप दर्शाती है, जहाँ लोग अधिक व महंगे खर्चों के बजाय कम एवं अधिक किफायती वस्तुओं का चुनव करते हैं। यह सूचकांक आर्थिक उतार-चढ़ाव के दौरान उपभोक्ता के विश्वास एवं व्यय करने के व्यवहार के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।

हेमलाइन इंडेक्स (Hemline index) 

  • यह सूचकांक महिलाओं की स्कर्ट की लंबाई एवं आर्थिक प्रदर्शन के बीच एक संबंध को प्रदर्शित करता है। 
  • इसके तहत यह माना जाता है कि आर्थिक उछाल के दौरान हेमलाइन बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप लोग छोटी स्कर्ट पहनते है जबकि आर्थिक मंदी के दौरान हेमलाइन में गिरावट आती है, जिसके परिणामस्वरूप लोग लंबी स्कर्ट पहनते है। 
  • इस अवधारणा को पहली बार अर्थशास्त्री जॉर्ज टेलर ने वर्ष 1920 के दशक में प्रस्तुत किया था।

बिग मैक इंडेक्स (Big Mac Index)

  • यह सिद्धांत क्रय शक्ति समता एवं मुद्रा मूल्यांकन को मापने के लिए विभिन्न देशों में बिग मैक की कीमत का उपयोग करता है।
  • बिग मैक इंडेक्स, हेमलाइन इंडेक्स की तुलना में अधिक मजबूत माना जाता है और यह विभिन्न देशों में मुद्रा मूल्यांकन और जीवन यापन की लागत का एक ठोस माप प्रदान करता है।

विश्व अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • वैश्विक व्यापार : अमेरिका एक प्रमुख वैश्विक उपभोक्ता है। मंदी के कारण उसके आयात में कमी आ सकती है, जिसका प्रभाव उन देशों पर हो सकता है जो अमेरिकी निर्यात पर अत्यधिक निर्भर हैं। 
    • इससे व्यापारिक साझेदारों में आर्थिक मंदी की भी आशंका है।
  • वित्तीय बाजार : अमेरिका में मंदी के कारण वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है। 
    • दुनिया भर के शेयर बाज़ारों में गिरावट आ सकती है और अंतरराष्ट्रीय निवेशक जोखिम भरी संपत्तियों में निवेश से बचने लगते हैं।
  • वस्तुओं की कीमत : अमेरिका में मांग में कमी के कारण वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आ सकती है। 
    • इसका असर उन अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ सकता है जो वस्तुओं के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जैसे कि तेल निर्यातक देश।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

  • निर्यात : भारत द्वारा अमेरिका को अधिक मात्रा में वस्तु एवं सेवाओं का निर्यात किया जाता है। अमेरिका में मंदी के कारण भारतीय निर्यात की मांग कम हो सकती है जिसका प्रभाव कपड़ा, आईटी सेवाओं एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों पर पड़ सकता है।
    • वर्ष 2023 के दौरान भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 75.81 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया था। 
  • विदेशी निवेश : मंदी के दौरान अमेरिकी निवेशकों द्वारा भारतीय बाज़ारों में निवेश में कमी आ सकती है। इससे पूंजी का बहिर्वाह हो सकता है और भारतीय वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता बढ़ सकती है।
    • वर्ष 2023 में भारत में अमेरिकी द्वारा किए गए कुल निवेश का मूल्य लगभग 49.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • प्रेषण : भारतीय कर्मचारियों की एक बड़ी संख्या अमेरिका में कार्यरत है। मंदी से उनका रोजगार एवं आय का स्तर प्रभावित हो सकता है। इससे भारत को भेजे जाने वाले प्रेषण में कमी आ सकती है जो विदेशी मुद्रा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
    • अमेरिका भारत के लिए प्रेषण का सबसे बड़ा स्रोत है जिसकी भारत को प्राप्त होने वाले कुल प्रेषण में हिस्सेदारी लगभग 23.4% है।
  • आर्थिक विकास : धीमी वैश्विक आर्थिक स्थितियों का भारत के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • यदि वैश्विक व्यापार मंद हो जाता है, तो भारत में आर्थिक गतिविधि कम हो सकती है और वृद्धि दर निम्न हो सकती है।
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