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फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया

(प्रारंभिक परीक्षा : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज महाकुंभ के दौरान गंगा एवं यमुना नदियों के जल में कई स्थानों पर फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया (Faecal Coliform Bacteria) का स्तर काफी बढ़ गया है। 
  • सी.पी.सी.बी. की रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज संगम पर फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का स्तर प्रति 100 मिलीलीटर जल में 2,500 यूनिट की सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है। 

फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया के बारे में 

  • यह सूक्ष्मजीवों (Microorganism) का एक वर्ग है जो सभी गर्म रक्त वाले जानवरों एवं मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित मल या अपशिष्ट में पाया जाता है।
    • अन्य कॉलिफोर्म बैक्टीरिया हैं- एस्चेरिचिया, क्लेबसिएला एवं ई. कोली आदि।
  • इन्हें आमतौर पर पानी में संभावित प्रदूषण के संकेतक के रूप में माना जाता है। जलस्रोत में इनकी उपस्थिति से जल में हानिकारक रोगाणु, जैसे- वायरस, परजीवी या अन्य संक्रामक बैक्टीरिया आदि का भी पता चलता है। 
  • यह आमतौर पर मानव एवं पशुओं की आंतों में पाया जाता है और उनके मल द्वारा नदी में प्रवेश कर इसे दूषित कर सकता है।

दूषित जल में स्नान का स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • जठरांत्र में संक्रमण : यह पानी में ई. कोली एवं साल्मोनेला जैसे रोगाणुओं की मौजूदगी के कारण हो सकता है। इसके लक्षणों में दस्त, उल्टी एवं पेट में ऐंठन शामिल हैं।
  • त्वचा एवं नेत्र संक्रमण : प्रदूषित जल में नहाने से शरीर पर चकत्ते, आंखों में जलन एवं कवकीय संक्रमण हो सकता है।
  • टाइफाइड एवं हेपेटाइटिस ए : इस दूषित जल के संपर्क में आने से गंभीर संक्रमण हो सकता है, जो दूषित जल के सेवन से फैल सकता है, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • श्वसन संबंधी समस्याएं : बैक्टीरिया युक्त पानी की बूंदों को सांस के माध्यम से अंदर लेने से भी फेफड़ों में गंभीर संक्रमण हो सकता है।
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