(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति) (मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2; विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।) |
संदर्भ
16 जुलाई 2024 को 16वें वित्त आयोग द्वारा पांच सदस्यों वाली एक सलाहकार परिषद का गठन किया गया, जो वित्त आयोग को संदर्भित विषयों (Terms of Reference: ToR) पर सलाह देगी।
वित्त आयोग के बारे में
- संवैधानिक संस्था : संविधान के भाग-12 में अनुच्छेद 280 में अंतर्गत वित्त आयोग के गठन का प्रावधान।
- प्रथम वित्त आयोग : 6 अप्रैल, 1952 को श्री के.सी. नियोगी की अध्यक्षता में 22 नवंबर 1951 के राष्ट्रपति आदेश द्वारा गठित।
वित्त आयोग के कर्तव्य
- अनुच्छेद 280 के अंतर्गत आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को निम्नलिखित के संबंध में सिफारिशें करे:
- करों की शुद्ध आय का संघ और राज्यों के बीच वितरण
- भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व के लिए सहायता अनुदान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत
- राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों और नगरपालिकाओं के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि में वृद्धि करने के लिए आवश्यक उपाय
- सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को भेजा गया कोई अन्य मामला
आयोग के सदस्यों की योग्यता
- वित्त आयोग (विविध प्रावधान) अधिनियम, 1951 और वित्त आयोग (वेतन और भत्ते) नियम, 1951 में निहित प्रावधानों के अनुसार:
- अध्यक्ष : सार्वजनिक मामलों में अनुभवी व्यक्ति
- सदस्य : अन्य चार सदस्यों के लिए योग्यता
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं/रहे हैं, या नियुक्त होने के योग्य हैं; या
- सरकार के वित्त और खातों का विशेष ज्ञान रखते हैं; या
- वित्तीय मामलों और प्रशासन में व्यापक अनुभव रखते हैं; या
- अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञान रखते हैं।
आयोग की कार्य प्रणाली
- वित्त आयोग केंद्र के कुल कर राजस्व के राज्यों के बीच ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज हस्तांतरण पर निर्णय लेता है।
- राज्यों के बीच निधियों का क्षैतिज हस्तांतरण आमतौर पर आयोग द्वारा बनाए गए फार्मूले के आधार पर तय किया जाता है।
- इस फ़ॉर्मूले में राज्य की जनसंख्या, प्रजनन स्तर, आय स्तर, भूगोल आदि को ध्यान में रखा जाता है।
- हालांकि, निधियों का ऊर्ध्वाधर हस्तांतरण किसी ऐसे वस्तुनिष्ठ फार्मूले पर आधारित नहीं होता है।
- हालाँकि, पूर्व वित्त आयोगों ने राज्यों को कर राजस्व के अधिक ऊर्ध्वाधर हस्तांतरण की सिफारिश की है।
- 13वें, 14वें और 15वें वित्त आयोग ने सिफारिश की थी कि केंद्र राज्यों के साथ विभाज्य पूल से क्रमशः 32%, 42% और 41% निधि साझा करे।
16 वें वित्त आयोग के बारे में
- गठन : 31 दिसंबर 2023 में किया गया था और यह अक्टूबर, 2025 तक अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा।
- अध्यक्ष : नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया
- पूर्णकालिक सदस्य : अजय नारायण झा, श्रीमती एनी जॉर्ज मैथ्यू और मनोज पांडा
- अंशकालिक सदस्य : डॉ. सौम्या कांति घोष
- इसकी सिफारिशें 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होकर पाँच साल तक मान्य होंगी।
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वित्त आयोग से संबंधित प्रमुख मुद्दे
कर वितरण पर असहमति
- राज्यों का आरोप है कि केंद्र ने राज्यों की कर एकत्र करने की शक्ति को कम किया है साथ ही राज्यों को उनकी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन का आवंटन भी नहीं करता है।
- केंद्र आयकर, कॉर्पोरेट कर और माल एवं सेवा कर (GST) जैसे प्रमुख कर एकत्र करता है।म
- राज्य मुख्य रूप से आबकारी और ईंधन जैसे वस्तुओं की बिक्री से एकत्र करों पर निर्भर हैं, जो GST के दायरे से बाहर हैं।
- राज्यों का तर्क है कि उन्हें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित राशि से अधिक धनराशि मिलनी चाहिए क्योंकि उनके पास केंद्र की तुलना में अधिक जिम्मेदारियाँ हैं।
धनराशि हस्तांतरण का मुद्दा
- राज्यों का आरोप है कि केंद्र वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित राशि भी साझा नहीं करता है।
- केंद्र ने मौजूदा पंद्रहवें वित्त आयोग के तहत विभाज्य पूल से राज्यों को केवल औसतन 38% धनराशि हस्तांतरित की है, जबकि आयोग की वास्तविक सिफारिश 41% है।
विभाज्य पूल में राज्यों की कम भागीदारी
- केंद्र के कुल कर राजस्व का अधिक हिस्सा विभाज्य पूल का हिस्सा माना जाना चाहिए, जिसमें से राज्यों को वित्त पोषित किया जाता है।
- उपकर और अधिभार, विभाज्य पूल के अंतर्गत नहीं आते हैं और राज्यों के साथ साझा नहीं किए जाते हैं।
विकसित बनाम विकासशील राज्य
- कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे अधिक विकसित राज्यों का मानना है कि उनका केंद्र से कर राजस्व में योगदान अधिक है जबकि उन्हें कम धन आवंटित होता है।
- उदाहरण के लिए, तमिलनाडु को केंद्र के राजस्व में प्रति एक रुपये के योगदान के लिए केवल 29 पैसे मिले, जबकि बिहार को प्रति रुपये बदले 7 रुपये से अधिक मिले।
- विकसित राज्यों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि बेहतर शासन वाले अधिक विकसित राज्यों को केंद्र द्वारा खराब शासन वाले राज्यों की मदद कर दंडित किया जा रहा है।
राजनीतिक हस्तक्षेप
- चूँकि वित्त आयोग के सदस्यों केंद्र द्वारा नियुक्त किए जाता है, इसलिए उन पर पूरी तरह से स्वतंत्र होकर कार्य न करने या राजनीतिक प्रभाव आकर कार्य करने के आरोप लगते हैं।
- इससे जिन राज्यों में केंद्र समर्थित दल सत्ता में होती है, वित्त आयोग द्वारा उन राज्यों को अधिक धन वितरण की सिफारिश के आरोप आलोचकों द्वारा लगाए जाते हैं।
केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध : प्रमुख संवैधानिक प्रावधान
- संविधान में केंद्र से राज्यों को संसाधनों के हस्तांतरण के माध्यम से क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर वितरण को संबोधित करने के लिए निम्नलिखित प्रावधान हैं:-
- अनुच्छेद 268 : केंद्र द्वारा शुल्क लगाना लेकिन राज्यों द्वारा संग्रहित और प्रतिधारित करना।
- अनुच्छेद 269 : केंद्र द्वारा लगाए और एकत्र किए जाने वाले कर और शुल्क, लेकिन सम्पूर्ण रूप से राज्यों को सौंप दिए जाते हैं।
- अनुच्छेद 270: केंद्र और राज्यों के बीच सभी संघीय करों की आय का बंटवारा। (संविधान में 80वें संशोधन के बाद 1 अप्रैल, 1996 से प्रभावी)।
- अनुच्छेद 275 : राज्यों के राजस्व में वैधानिक सहायता अनुदान ।
- अनुच्छेद 282 : किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनुदान ।
- अनुच्छेद 293: किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए ऋण ।
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मौजूदा वित्त आयोग के लिए चुनौतियाँ
- संसाधन-मांग असंतुलन : वित्त आयोग की एक बड़ी सीमा यह है कि संसाधन सीमित हैं जबकि उन पर माँगें वस्तुतः असीमित हैं।
- उदाहरण के लिए, बिहार और आँध्रप्रदेश जैसे राज्यों द्वारा विशेष राज्य के दर्जे के तहत अधिक वित्तीय संसाधनों की मांग की जाती रही है।
- डाटा पर निर्भरता : नवीनतम जनगणना के आंकड़ों की अनुपस्थिति, साक्ष्य-आधारित राजकोषीय हस्तांतरण के लिए महत्वपूर्ण शहरी विकास और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों का सटीक आकलन करना चुनौतीपूर्ण बनाती है।
- जनगणना डाटा टियर-2 और टियर-3 शहरों में महत्वपूर्ण प्रवासन को पकड़ने के लिए आवश्यक है, जो उनके बुनियादी ढांचे और सेवा आवश्यकताओं को प्रभावित करता है।
- वैश्विक व्यापक आर्थिक अनिश्चितता : भारतीय अर्थव्यवस्था को विगत वर्षों में कई बाहरी झटकों का सामना करना पड़ा है।
- एक मजबूत विस्तारवादी राजकोषीय नीति के लिए राजकोषीय समेकन के प्रतिबद्ध मार्ग के साथ संतुलन में वित्त आयोग की सिफारिशें महत्वपूर्ण हैं।
- कल्याणकारी योजनाएँ और लोकलुभावन वादे : हाल के दिनों में, राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न कल्याणकारी उपायों के तहत ‘मुफ़्त’ वितरण की योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।
- इस प्रकार के कार्यक्रमों के लिए हस्तांतरण और सब्सिडी के सही मिश्रण की आवश्यकता है।
- वित्त आयोग को यह ध्यान रखना होगा कि उसकी सिफारिशें राज्यों की शक्तियों की सीमित न करें साथ ही वित्तीय संतुलन भी बना रहे।
- शहरी गतिशीलता : भारत में लगभग 4,000 वैधानिक कस्बे, इतनी ही संख्या में जनगणना कस्बे तथा बड़ी संख्या में प्रभावी रूप से शहरी गांव हैं, जिनकी प्रभावी योजना और संसाधन आवंटन के लिए सटीक गणना की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
16वें वित्त आयोग द्वारा राजकोषीय हस्तांतरण सिद्धांतों पर पुनर्विचार और वर्तमान शहरीकरण की गतिशीलता के आधार पर कार्यप्रणाली को अद्यतन करके बेहतर अंतरसरकारी हस्तांतरण की सिफारिशें इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए महत्वपूर्ण है।