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राजकोषीय परिषद: वित्तीय निगरानी हेतु वैकल्पिक तंत्र

(प्रारम्भिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र, शासन- संविधान, राजनैतिक प्रणाली, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का प्रथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान, सांविधिक विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय)

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक के भूतपूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने राजकोषीय परिषद (fiscal Council) की आवश्यकता पर अपने सुझाव प्रस्तुत किये हैं।
  • वर्तमान में सरकार को आवश्यकता है कि वह सम्वेदनशील परिवारों (Vulnerable Families) की सहायता हेतु तथा अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिये और अधिक ऋण ले ताकि अर्थव्यवस्था में माँग में वृद्धि हो सके।

बाज़ार में विश्वास को बनाए रखते हुए ऋण लेने हेतु विकल्प

  • सरकार द्वारा कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों से निपटने तथा बाज़ार में विश्वास को बनाए रखने के लिये एक विश्वसनीय राजकोषीय विनियमन योजना का ढाँचा तैयार किया जाना चाहिये।
  • सरकार द्वारा राजकोषीय अनुशासन (Fiscal discipline) को सुनिश्चित करने हेतु राजकोषीय परिषद जैसे संस्थागत तंत्र (Institutional Mechanism) पर विचार किया जाना चाहिये।

ऋण वृद्धि की चुनौतियाँ

  • वर्तमान में, सरकार द्वारा ऋण लिये जाने से भावी पीढ़ियों पर ऋण तथा ब्याज़ भुगतान के दबाव में वृद्धि के साथ ही उनकी ऋण लेने की क्षमता में भी कमी आएगी।
  • सरकार की वित्तीय अनियमितताओं (Financial Irregularities) के चलते बाज़ार विश्वास (Market Confidence) में कमी आने से घरेलू तथा विदेशी निवेश में कमी आती है।
  • अधिक ऋण लेने से सरकार या देश की सम्प्रभु रेटिंग (Soverign Rating) में गिरावट आती है, जिससे सरकार के लिये भविष्य में ऋण लेने में अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
  • सरकार द्वारा अधिक ऋण लिये जाने से निकट भविष्य में महँगाई दर (Inflation Rate) बढ़ने का खतरा बना रहता है, जिससे देश की जनता को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

राजकोषीय परिषद के बारे में

  • दो विशेषज्ञ समितियों (Expert Committees) द्वारा राजकोषीय परिषद की सिफारिश की गई है।
  • वर्ष 2017 में राजकोषीय नियमों (Fiscal Rules) की समीक्षा पर एन.के. सिंह की अध्यक्षता में गठित समीति द्वारा एक स्वंतत्र राजकोषीय परिषद के निर्माण का सुझाव दिया गया था, जो सरकार के राजकोषीय लक्ष्यों (fiscal Targets) के विचलन की स्थितियों पर सलाह प्रदान कर सके।
  • वर्ष 2018 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSO) द्वारा डी.के. श्रीवास्तव की अध्यक्षता में राजकोषीय आँकड़ों (Fiscal Statistics) पर गठित समिति ने भी राजकोषीय परिषद का सुझाव दिया था, जो सरकार को सभी स्तरों पर समन्वय प्रदान करने के साथ-साथ सार्वजानिक क्षेत्र की आवश्यकताओं का वार्षिक मूल्यांकन कर सके और इस मूल्यांकन को सार्वजानिक रूप से पारदर्शिता के साथ उपलब्ध करा सके।
  • ये सिफारिशें 13वें और 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों से मिलती जुलती हैं, जिनमें सरकार के राजकोषीय नियमों के पालन की समीक्षा करने और बजट प्रस्तावों के आकलन प्रदान करने हेतु एक स्वतंत्र वित्तीय एजेंसी की स्थापना का समर्थन किया गया था।
  • राजकोषीय परिषद एक स्थायी एजेंसी होने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से सरकार की राजकोषीय योजनाओं (Fiscal Plans) का मूल्यांकन व्यापक आर्थिक परिदृश्य (Macroeconomic Outlook) के अनुसार करेगी। ये सभी मूल्यांकन एवं सम्बंधित जानकारी सार्वजानिक रूप में उपलब्ध (Public Domain) होगी।
  • इस प्रकार के स्वतंत्र मूल्यांकन सरकार को वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में सहायता प्रदान करेंगे जिससे बाज़ार में स्थिरता का वातावरण बन सकेगा। साथ ही, विदेशी निवेश को भी आकर्षित किया जा सकेगा।
  • इससे सरकार के कार्यों में पारदर्शिता आने के साथ ही संसद में इसकी रिपोर्ट पर महत्त्वपूर्ण चर्चा भी हो सकेगी।

राजकोषीय परिषद के कार्य

  • राजकोषीय परिषद आगामी कई वर्षों के लिये राजकोषीय स्थिरता (Fiscal Stability) हेतु विश्लेषण तैयार कर उसका अनुमान लगाएगी।
  • यह परिषद केंद्र सरकार के राजकोषीय प्रदर्शन (Fiscal Performance) का एक स्वतंत्र मूल्यांकन प्रदान करेगी, जिससे सरकार राजकोषीय नियमों के तहत उनका अनुपालन करेगी।
  • परिषद द्वारा वार्षिक वित्तीय विवरण की स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु राजकोषीय रणनीति में उपयुक्त परिवर्तन की सिफारिश की जाएगी।
  • परिषद द्वारा वार्षिक वित्तीय रणनीति रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जिसे सार्वजानिक रूप से प्रकाशित किया जाएगा।
  • उपर्युक्त कार्यों के साथ-साथ यह स्थायी संस्था सरकार के वित्तीय लेन-देन की निगरानी भी करेगी।

राजकोषीय परिषद की आवश्यकता

  • विभिन्न उपकरों (Cesses) और अधिभारों (Surcharges) में राजस्व के हिस्से को सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत तंत्र की आवश्यकता है, ताकि राजस्व संग्रहण का उचित बँटवारा हो सके और एक मज़बूत सहकारी संघवाद को सुनिश्चित किया जा सके।
  • जी.एस.टी. परिषद और वित्त आयोग के मध्य समन्वय की आवश्यकता है। वर्तमान में न तो जी.एस.टी. परिषद को वित्त आयोग के कार्य के सम्बंध में कोई जानकारी होती है, न ही वित्त आयोग को यह जानकारी होती है कि जी.एस.टी. परिषद क्या कर रही है।
  • संविधान के अनुच्छेद-293 के अंतर्गत, राज्य सरकार के ऋण सम्बंधी प्रतिबंधों का उल्लेख है। परंतु, केंद्र सरकार पर इस प्रकार का कोई प्रतिबंध और उत्तरदायित्त्व नहीं है।
  • इसलिये केंद्र के राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation) पर निगरानी रखने और राजकोषीय नियमों को लागू करने के लिये राजकोषीय परिषद जैसे वैकल्पिक संस्थागत तंत्र की आवश्यकता है।

राजकोषीय परिषद के समक्ष चुनौतियाँ

  • वर्ष 2003 में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM Act, 2003) को भी राजकोषीय समस्स्याओं में सुधार हेतु लाया गया था, लेकिन इन समस्याओं में अभी तक ऐसा कोई विशेष सुधार देखने को नहीं मिला है।
  • इस अधिनियम क्व द्वारा सरकार के राजकोषीय लक्ष्य निर्धारित किये गए थे, जिन्हें प्राप्त करने में सरकार असफल रही और साथ ही असफलता के कारणों को स्पष्ट करने में भी असमर्थ रही।
  • सरकार की वित्तीय नीति के सम्बंध में संसद में पर्याप्त चर्चा नहीं होती है।
  • सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा पहले से बजट तैयार किया जाता है, इसलिये राजकोषीय परिषद के निर्माण की आवश्यकता पर प्रश्नचिन्ह है।
  • वित्त मंत्रालय के कार्यों को किसी और संस्था को सौंपने से वित्त मंत्रालय के उत्तरदायित्त्व में कमी आएगी। अगर वित्तीय अनुमानों में किसी प्रकार की त्रुटि आती है तो ये संस्थाएँ एक-दूसरे पर आरोप लगाती रहेंगी, जिससे पारदर्शिता का अभाव होगा तथा उत्तरदायित्त्व सुनिश्चित करने में भी अस्पष्टता आएगी।
  • वर्तमान में केंद्रीय सांख्यिकी संगठन और रिज़र्व बैंक दोनों के द्वारा वृद्धि दर और अन्य व्यापक आर्थिक परिदृश्य पर अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार, राजकोषीय परिषद के अनुमान से भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • जब पहले से ही सरकार के वित्तीय लेखे-जोखे की जाँच हेतु भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) है, तो सरकार के वित्तीय लेखे-जोखे की निगरानी हेतु राजकोषीय परिषद की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह है।

निष्कर्ष

  • यद्यपि इस परिषद की अनेक उपयोगिताओं के बावजूद एक धड़ा यह मानता है कि इस प्रकार एक और नौकरशाही  संस्था की स्थपाना से वित्तीय अनुशासन को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है, अतः मौजूदा संरचना का ही व्यावहारिक तौर पर पालन करने से परिस्थितियों में सुधार सम्भव है।
  • कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था में ठहराव ला दिया है तथा बाज़ार में भी विश्वास की कमी दिखाई पड़ रही है। इन समस्याओं से निपटने हेतु सरकार को आवश्यकता है कि वह और अधिक खर्च करे, जिससे अर्थव्यवस्था का पहिया घूम सके। ऐसे समय में राजकोषीय परिषद का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
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