(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य व उत्तरदायित्व)
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संदर्भ
हालिया आंकड़ों के अनुसार, लोकपाल द्वारा अपना कार्य शुरू करने के पांच वर्ष बाद उसने केवल 24 मामलों में जाँच के आदेश दिए और केवल 6 मामलों में अभियोजन (Prosecution) की मंजूरी दी है।
लोकपाल के पाँच वर्ष के कामकाज के निष्कर्ष
- इस अवधि के दौरान लोकपाल को उचित प्रारूप में लगभग 2,320 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 226 शिकायतें अप्रैल 2024 से दिसंबर 2024 के बीच दर्ज की गई।
- उचित प्रारूप में न होने के कारण लगभग 90% शिकायतें खारिज कर दी गई।
- दर्ज शिकायत की श्रेणियाँ :
- उच्च-स्तरीय अधिकारियों (प्रधानमंत्री, सांसद, केंद्रीय मंत्री) के खिलाफ 3% शिकायतें
- केंद्र सरकार के समूह ए, बी, सी अथवा डी अधिकारियों के खिलाफ 21% शिकायतें
- केंद्र सरकार के निकायों के अध्यक्षों या सदस्यों के खिलाफ 35% शिकायतें
- राज्य सरकार के अधिकारियों एवं अन्य के खिलाफ 41% शिकायतें
लोकपाल के बारे में
- यह स्वतंत्र भारत में अपनी तरह का पहला संस्थान है, जिसे सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने के लिए स्थापित किया गया है।
- स्थापना : लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत
- यह अधिनियम वर्ष 2014 में लागू हुआ।
- उद्देश्य : सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को समाप्त करना और स्वच्छ शासन सुनिश्चित करना
- प्रथम लोकपाल : प्रथम लोकपाल के रूप में न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष की नियुक्ति के बाद लोकपाल ने वर्ष 2019 में काम करना शुरू किया।
- मार्च 2024 न्यायमूर्ति अजय माणिकराव खानविलकर दूसरे (वर्तमान में) लोकपाल बने।
लोकपाल की संरचना
- अध्यक्ष एवं सदस्य : एक अध्यक्ष व आठ सदस्य
- इनमें से चार न्यायिक सदस्य होते हैं।
- नियुक्ति : राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर (अध्यक्ष एवं सदस्यों दोनों की)।
- चयन समिति में शामिल सदस्य
- प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
- लोक सभा के अध्यक्ष (सदस्य)
- लोक सभा में विपक्ष के नेता (सदस्य)
- भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सदस्य)
- अध्यक्ष एवं सदस्यों द्वारा अनुशंसित और राष्ट्रपति द्वारा नामित एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता (सदस्य)
- कार्यकाल : पांच वर्ष की अवधि के लिए या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, (अध्यक्ष एवं सदस्यों दोनों के लिए)
- अध्यक्ष के लाभ : वेतन, भत्ते एवं सेवा शर्तें भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान
- सदस्यों के लाभ : वेतन, भत्ते एवं सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान
- विंग (प्रभाग) : प्रशासनिक प्रभाग एवं न्यायिक प्रभाग
लोकपाल के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता मानदंड
- कोई भी व्यक्ति, जो-
- भारत का मुख्य न्यायाधीश है या रहा है; या
- सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है; या
- एक प्रतिष्ठित व्यक्ति
- अर्थात, यदि वह अत्यधिक सत्यनिष्ठा और उत्कृष्ट क्षमता वाला व्यक्ति है जिसके पास निम्नलिखित संबंधित मामलों में कम-से-कम 25 वर्षों का विशेष ज्ञान व विशेषज्ञता है :
- भ्रष्टाचार विरोधी नीति
- लोक प्रशासन
- सतर्कता
- वित्त; बीमा और बैंकिंग सहित
- कानून एवं प्रबंधन
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लोकपाल की शक्तियाँ
- जाँच के लिए तलाशी और जब्ती की शक्तियाँ
- संपत्ति कुर्क करने और भ्रष्टाचार सामाप्त करने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत शक्तियाँ
- संदर्भित मामलों के लिए केंद्रीय जाँच एजेंसियों (जैसे- सी.बी.आई.) पर अधीक्षण और निर्देश देने का अधिकार
लोकपाल निम्न के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच कर सकता है
- प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, संसद सदस्य और केंद्र सरकार के अधिकारी (समूह ए, बी, सी, डी)
- सरकार द्वारा वित्तपोषित निकाय, बोर्ड, निगम, समिति व ट्रस्ट के अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी एवं निदेशक
- 10 लाख रुपए से अधिक विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाली समितियाँ या ट्रस्ट
शिकायतें
- लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 53 के अनुसार, कथित अपराध के 7 वर्ष के भीतर ही शिकायत दर्ज की जा सकती है।
- शिकायतें निर्धारित प्रारूप में होनी चाहिए और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अपराधों से संबंधित होनी चाहिए।
- शिकायतकर्ता कोई भी व्यक्ति हो सकता है।
जाँच प्रक्रिया
- लोकपाल अपनी जाँच शाखा या सी.बी.आई. सहित अन्य एजेंसियों द्वारा प्रारंभिक जाँच का आदेश दे सकता है।
- केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के मामले में लोकपाल शिकायतों को केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) को भेजता है।
- जाँच 60 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए।
- लोकपाल के पास जाँच रिपोर्ट के आधार पर मामलों के लिए अभियोजन की मंजूरी देने का अधिकार है।
लोकायुक्त
- लोकायुक्त एक भारतीय संसदीय लोकपाल है जिसे भारत की प्रत्येक राज्य सरकार के लिए नियुक्त किया जा सकता है।
- इसे संबंधित राज्य विधानमंडल में लोकायुक्त अधिनियम पारित होने के बाद राज्य में लागू किया जाता है।
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लोकपाल से संबंधित चुनौतियाँ
- विलंबित नियुक्तियाँ : लोकपाल एवं जाँच व अभियोजन निदेशकों जैसे प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति में काफी देरी हुई है।
- उदाहरण के लिए, अधिनियम वर्ष 2013 में पारित हुआ लेकिन पहला लोकपाल वर्ष 2019 में नियुक्त किया गया।
- कर्मचारियों की कमी : संक्रमण काल के दौरान कर्मचारियों की कमी ने लोकपाल की कार्यकुशलता में बाधा उत्पन्न की है।
- वर्तमान समय में भी स्थायी कर्मचारियों के भर्ती के प्रयास जारी हैं।
- शिकायतों के निपटान में अक्षमता : प्रक्रियात्मक प्रारूपों का अनुपालन न करने के कारण अत्यधिक शिकायतों (90%) को अस्वीकृत कर दिया गया।
- जागरूकता की कमी : बहुत से नागरिक शिकायत दर्ज करने के तरीके या लोकपाल की शक्तियों के दायरे के बारे में अनभिज्ञ हैं।
- सीमित जाँच क्षमता : लोकपाल के पास सीमित संख्या में जाँच संबंधी मामले होते हैं, जिनकी वह स्वयं से जाँच कर सकता है।
- हालाँकि, उसे प्राय: केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) जैसी बाहरी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
सुझाव
- नियुक्तियों में तेजी : सुचारू संचालन सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख अधिकारियों की नियुक्तियों में तेज़ी लाने की आवश्यकता
- स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति : परिचालन दक्षता में सुधार के लिए स्थायी कर्मचारियों की भर्ती को प्राथमिकता देना
- सरल शिकायत प्रक्रिया : अधिक से अधिक शिकायतें दर्ज करने के लिए शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को सरल बनाना
- प्रशिक्षण एवं जागरूकता : नागरिकों को लोकपाल की भूमिका और शिकायत प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देने के लिए जागरूकता अभियान चलाना
- प्रभावी समन्वय के लिए प्रयास : मामलों को अधिक प्रभावी ढंग से संभालने के लिए लोकपाल, सी.बी.आई. एवं सी.वी.सी. के मध्य समन्वय को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास करना