चर्चा में क्यों
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी के शोधकर्ताओं के एक दल ने समुद्री शैवाल का उपयोग करके एक खाद्य कोटिंग विकसित की है। इससे संबंधित शोध निष्कर्ष ए.सी.एस. फ़ूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
खाद्य कोटिंग में डुनालिएला टर्टियोलेक्टा का उपयोग
- इस विशेष कोटिंग का निर्माण डुनालिएला टर्टियोलेक्टा (Dunaliella Tertiolecta) नामक एक समुद्री सूक्ष्म शैवाल के अर्क और पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides) के मिश्रण का उपयोग करके किया गया है।
- डुनालिएला टर्टियोलेक्टा का उपयोग प्राय: शैवाल के तेल के स्रोत के रूप में किया जाता है जो मछली के तेल (ओमेगा-3 फैटी एसिड) का एक पौधा आधारित विकल्प है।
- यह एक स्वास्थ्य पूरक होने के साथ-साथ जैव ईंधन का एक अच्छा स्रोत भी है।
- तेल निष्कर्षण के बाद शैवाल के अवशेषों को आमतौर पर फेंक दिया जाता है। शोधकर्ताओं ने कोटिंग पदार्थ बनाने में इन अवशेष के अर्क के साथ काइटोसन (Chitosan) का उपयोग किया।
- काइटोसन एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है, जो शैलफिश के बाह्य कंकाल से प्राप्त किया जाता है। इसमें रोगाणुरोधी और कवकरोधी गुण भी होते हैं।
- सूक्ष्म शैवाल को इसके एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिये जाना जाता है तथा इसमें कैरोटेनॉयड्स और प्रोटीन जैसे विभिन्न जैव-सक्रीय यौगिक होते हैं।
कोटिंग की व्यवहार्यता
- इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। ये प्रकाश, गर्मी और 40C तक तापमान के लिये बहुत स्थिर हैं। इसमें प्रतिकूल गुण नहीं होता हैं तथा यह सुरक्षित रूप से खाने योग्य हैं।
- खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाने के लिये इसे सब्जियों व फलों पर लेपित कर उनकी शेल्फ-लाइफ को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है।
- फलों व सव्जियों पर इसका उपयोग किये जाने से उनकी बनावट, रंग, स्वाद और पोषण मूल्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।
- यह एक साधारण डिप कोटिंग तकनीक है जिसमें फसल प्रसंस्करण के लिये विशेष अतिरिक्त लागत की आवश्यकता नहीं होती है।