प्रारंभिक परीक्षा- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023; वन संरक्षण अधिनियम,1980; एफआरए,2006; वन अधिनियम,1927; गोदावर्मन मामला मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर- 1 और 3 |
संदर्भ-
- 2023 के वन संरक्षण संशोधन अधिनियम में जंगलों और इसके निवासियों पर इसके प्रभाव के बारे में बहुत कम ध्यान दिया गया है। 1865 में बनें औपनिवेशिक वन कानून से लेकर वन संरक्षण संशोधन अधिनियम,2023 तक वनों को कानूनी और नीतिगत ढांचे के साथ जोड़कर 15 से अधिक कानून, अधिनियम और नीतियां तैयार की गई हैं। किंतु इन अधिनियमों में वहां के समुदायों के अधिकारों की बहुत कम या कोई मान्यता नहीं है, जो वन भूमि के वास्तविक निवासी हैं।
वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य-
- इस संशोधन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
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- प्रभावी प्रबंधन और वनीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई के प्रतिकूल प्रभावों से निपटना है।
- वनों का आर्थिक उपयोग कैसे हो और जिस तरीके से इस लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है, क्या उसकी रुपरेखा कानून में उल्लिखित है।
- इस उद्देश्य को प्राप्त करने का प्राथमिक तरीका जंगलों को कानून के अधिकार क्षेत्र से हटाना शामिल है। इससे विभिन्न प्रकार के आर्थिक दोहन की सुविधा मिलेगी।
- संशोधन के अनुसार, वन कानून अब विशेषतः वन अधिनियम,1927 के तहत वर्गीकृत क्षेत्रों और 25 अक्टूबर, 1980 को या उसके बाद प्राधिकृत क्षेत्रों पर लागू होंगे।
- यह अधिनियम उन वनों पर लागू नहीं होगा, जिन्हें 12 दिसंबर, 1996 या उसके बाद गैर-वन उपयोग के लिए परिवर्तित किया गया था।
- यह अधिनियम वहां भी लागू नहीं होगा,जो भूमि चीन और पाकिस्तान सीमा से 100 किलोमीटर के अंतर्गत आती है और जहां केंद्र सरकार रैखिक परियोजनाएं(linear projects) बना सकती है।
- निगरानी के लिए सुरक्षा बुनियादी ढांचे और सुविधाएं स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार दस हेक्टेयर तक के क्षेत्रों में सुरक्षा उपायों का निर्माण करने के लिए अधिकृत है।
- यह प्रावधान उन क्षेत्रों (पांच हेक्टेयर तक) पर भी लागू होता है, जिन्हें संवेदनशील क्षेत्र के रूप में नामित किया गया है। इन क्षेत्रों के भीतर आवश्यक अनुमोदन के साथ सरकार सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू कर सकती है।
- इन क्षेत्रों में इकोटूरिज्म, सफारी, पर्यावरण मनोरंजन आदि को प्रारंभ किया जा सकता है।
- इन पहलों का मुख्य उद्देश्य वन संसाधनों पर निर्भर लोगों की आजीविका में सुधार करना है. किंतु इस लक्ष्य का आदिवासी समुदायों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है।
प्रतिपूरक वनरोपण -
- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 में उल्लिखित ‘प्रतिपूरक वनीकरण’ में विभिन्न परियोजनाएं और योजनाएं शामिल हैं, जिन्हें निजी व्यक्तियों और संगठनों (बड़े निगमों सहित) दोनों द्वारा वनीकरण या पुनर्वनीकरण उद्देश्यों के लिए शुरू किया जा सकता है।
- मुख्य रूप से वन संरक्षण अधिनियम,1980 में अस्पष्टता और उपलब्ध भूमि की कमी के कारण प्रतिपूरक वनरोपण को अतीत में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 का लक्ष्य प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है। हालाँकि, इस संशोधन के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में आशंका है।
- संशोधन अधिनियम के अनुसार, वनीकरण के कारण नष्ट होने वाली भूमि के लिए, उतनी ही मात्रा में भूमि का रोपण कहीं और किया जाना चाहिए। इसमें यह नहीं स्पष्ट है कि किस प्रकार के पेड़ लगाए जाने चाहिए।
संशोधन का वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) पर प्रभाव-
- एफआरए,2006 वन निवासी जनजातीय समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधन संबंधी उन अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है, जिन पर ये समुदाय विभिन्न प्रकार की जरूरतों के लिए निर्भर हैं, जिनमें आजीविका, निवास और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक आवश्यकताएं शामिल हैं।
उद्देश्य-
- वन में रहने वाले समुदायों के साथ हुए चिरकालीन अन्याय को समाप्त करना ।
- वन निवासी अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों की भू-धृति, आजीविका और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना ।
- स्थायी उपयोग और जैव-विविधता संरक्षण प्रणाली एवं पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए वन अधिकार धारकों के उत्तरदायित्व और प्राधिकार निर्धारित करके वनों का संरक्षण सुदृढ़ करना ।
एफआरए का मूल्यांकन-
- एफआरए का विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है, जैसे महाराष्ट्र में मेंधा-लेखा, ओडिशा में लोयेंडी और केरल में मलक्कप्पारा।
- शुरुआती उत्साह के बाद केंद्र और राज्य सरकारें अपने राज्यों में एफआरए को लागू करने को लेकर कम उत्साहित हो गई हैं।
- अनेक लोग इस अधिनियम को वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करने में बाधा मानते हैं।
- राज्य सरकारों का मानना है कि एफआरए के तहत सामुदायिक अधिकार देने से जंगल पर राज्य का अधिकार कमजोर हो सकता है।
- उपर्युक्त स्थिति से निपटने के लिए, सरकार ने एफआरए में संशोधन करने के बजाय वन क्षेत्रों की सीमा को कम करने का विकल्प चुना है, जिससे अतिरिक्त आदिवासी दावों की संभावना सीमित हो जाएगी।
- यह संशोधन वन क्षेत्रों में, विशेषकर पश्चिमी घाट क्षेत्र के आदिवासी बस्तियों में मानव-पशु संघर्ष के बढ़ते मुद्दे को कम करने में भी विफल रहा है।
- यह संघर्ष न केवल आदिवासियों की आजीविका को ख़तरे में डालता है बल्कि वन्य जीवन के लिए भी ख़तरा पैदा करता है।
संशोधन को लागू करने में समस्याएं-
- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 को यदि सामान्य रूप से देखें, तो यह जटिलताओं के बिना मुद्दों का समाधान करता प्रतीत होता है।
- वस्तुतः एक बार जब कोई कानून व्यवहार में आता है, तो यह वन में रहने वाले समुदायों और सरकारी एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौतियाँ पेश करता है।
- वनीकरण की अवधारणा, जो वनीकरण परियोजनाओं के लिए निजी व्यक्तियों और संस्थानों को काफी वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है, मूल रूप से वन प्रशासन के विचार से टकराती है।
- यह विकेंद्रीकृत वन प्रशासन की अवधारणा का भी खंडन करती है, क्योंकि वन समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं। ऐसी शासन प्रथाएँ संघीय मानदंडों की भावना के विरुद्ध हैं।
- रणनीतिक रैखिक परियोजनाओं(strategic linear projects) को परिभाषित करना असाधारण रूप से जटिल और अस्पष्ट हो जाता है।
- सीमा विवाद और सीमा पार झड़पों जैसे बाहरी सुरक्षा खतरों के अलावा आंतरिक पर्यावरण सुरक्षा को भी एक महत्वपूर्ण चिंता माना जाना चाहिए, खासकर उन राज्यों में जो लगातार प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हैं।
- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 में इसको वरीयता नहीं दी गई है।
वन संशोधन विधेयक के सकारात्मक पहलू-
- प्रस्तावित संशोधनों में से कुछ निर्दिष्ट करते हैं कि अधिनियम कहाँ लागू नहीं होता है।
- अन्य संशोधन विशेष रूप से गैर-वन भूमि पर वृक्षारोपण की खेती को प्रोत्साहित करते हैं, जो समय के साथ, वृक्ष आवरण को बढ़ा सकता है, कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकता है, और 2070 तक उत्सर्जन के मामले में 'शुद्ध शून्य' होने की भारत की महत्वाकांक्षा में सहायता कर सकता है।
- संशोधन बुनियादी ढांचे के निर्माण पर 1980 के अधिनियम के प्रतिबंधों को भी हटा देगा जो राष्ट्रीय सुरक्षा में सहायता करेगा और जंगलों की परिधि पर रहने वाले लोगों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करेगा।
वन संशोधन विधेयक की समीक्षा-
- विधेयक के विभिन्न पहलुओं पर आपत्तियाँ उठाई गईं, जिनमें यह शिकायतें भी शामिल थीं कि प्रस्तावित संशोधनों ने गोदावर्मन मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1996 के फैसले को "कमजोर" कर दिया।
- 1996 के गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद मामले (Godavarman Thirumulkpad case) में वन भूमि की व्याख्या उसके 'शब्दकोश अर्थ' के अनुसार करके सभी निजी वनों को भी वन कानून,1980 के दायरे में दिया गया था।
- फैसले में, न्यायालय ने जंगलों के व्यापक इलाकों को सुरक्षा प्रदान की, भले ही उन्हें जंगलों के रूप में दर्ज नहीं किया गया था।
- पर्यावरण मंत्रालय ने इस बात का खंडन किया और तर्क दिया कि विधेयक के प्रावधान ऐसी स्थितियों से बचाते हैं।
- इस विधेयक का कई वर्गों से विरोध हो रहा है, जिनमें कुछ उत्तर-पूर्वी राज्य भी शामिल हैं, जिन्होंने आपत्ति जताई थी कि रक्षा उद्देश्यों के लिए वन भूमि के विशाल हिस्से को एकतरफा छीन लिया जाएगा।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- गोदावर्मन मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला किससे संबंधित है?
(a) अनुसूचित जाति और जनजाति को नौकरियों में आरक्षण देनें से।
(b) धार्मिक अल्पसंख्यकों के अपने संस्कृति की सुरक्षा से।
(c) निजी वनों को वन कानून,1980 के दायरे में लाने से।
(d) हाथी परियोजना,1992 के दुरुपयोग से।
उत्तर- (c)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधानों की विवेचना कीजिए।
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