प्रारंभिक परीक्षा- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023, गोदावर्मन मामला, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, संविधान में वन मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-3 |
चर्चा में क्यों-
19 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के अनुसार वनों की पहचान होने तक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को गोदावर्मन फैसले द्वारा दी गई 'वन' की परिभाषा का पालन करना चाहिए।
मुख्य बिंदु-
- सुप्रीम कोर्ट अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
- मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक सरकारी रिकॉर्ड में 'वन' के रूप में दर्ज भूमि की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक गोदावर्मन मामले में दिया गया फैसला मान्य रहेगा।
याचिकाकर्ताओं का तर्क-
- गोदावर्मन मामले में दी गई 'वन' की परिभाषा को वर्ष, 2023 के संशोधन से शामिल धारा 1A द्वारा संकुचित कर दिया गया है।
- धारा 1A के अनुसार एक भूमि को वन का दर्जा प्राप्त करने के लिए;
- या तो वन के रूप में अधिसूचित होना चाहिए।
- या विशेष रूप से सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज होना चाहिए।
- गोदावर्मन मामले में दिए गए फैसले के अनुसार , 'वन' को उसके शब्दकोश अर्थ के संदर्भ में समझा जाना चाहिए।
- वन (संरक्षण एवं संवर्धन) नियम 2023 के नियम 16 के अनुसार,
- राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन वर्ष 2023 में हुए संशोधन की अधिसूचना जारी होने के एक वर्ष के भीतर वन भूमि का रिकॉर्ड तैयार करेंगे।
- यह प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है।
- इस दौरान गोदावर्मन निर्णय में ‘वन’ का दर्जा प्राप्त भूमि को गैर-वन उपयोग के लिए डायवर्ट की जा रही है।
- नई संशोधित परिभाषा के तहत लगभग 1.99 लाख वर्ग किमी वन भूमि को 'वन' की श्रेणी से हटा दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश-
- नियम 16 के तहत राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन द्वारा प्रक्रिया पूरी होने तक टीएन गोदावर्मन मामले में कोर्ट द्वारा स्पष्ट किए गए सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
- नियम 16 के दायरे में विशेषज्ञ समिति द्वारा अवर्गीकृत वन भूमि और सामुदायिक वन भूमि की पहचान शामिल है।
- नियम 16 में निहित प्रावधानों द्वारा निर्देशित होते हुए राज्य और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन को टीएन गोदावर्मन मामले में दिए निर्णय का अनुपालन करना चाहिए।
- कोर्ट ने केंद्र सरकार को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के माध्यम से उपर्युक्त निर्णय के संदर्भ में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को परिपत्र जारी करने का निर्देश दिया।
- कोर्ट ने केंद्र से गोदावर्मन फैसले द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार,
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा गठित विशेषज्ञ समितियों द्वारा 'वन' के रूप में पंजीकृत भूमि का एक व्यापक रिकॉर्ड प्रदान करने को कहा है।
- रिकॉर्ड दो सप्ताह की अवधि के भीतर जमा करना होगा।
- सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2024 तक विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्ट अग्रेषित करके निर्देशों का पालन करना होगा।
- इन रिकार्डों की देखरेख पर्यावरण और वन मंत्रालय करेगा।
- रिकार्डों को डिजिटलीकृत कर 15 अप्रैल, 2024 तक आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध कराना होगा।
- वर्ष, 2023 नियमों के नियम 16 के अनुसार गठित विशेषज्ञ समितियां गोदावर्मन फैसले के अनुसार गठित पिछली विशेषज्ञ समितियों के कार्यों को ध्यान में रखेंगी।
- वर्ष, 2023 के नियमों के अनुसार गठित विशेषज्ञ समितियाँ उन वन भूमि के दायरे का विस्तार करने के लिए स्वतंत्र होंगी, जो संरक्षण के योग्य हैं।
चिड़ियाघर एवं सफारी-
- सुप्रीम कोर्ट ने चिड़ियाघरों और सफारी की स्थापना के प्रस्तावों के संबंध में भी निर्देश जारी किये।
- वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित क्षेत्रों को छोड़कर सरकार या किसी प्राधिकरण के स्वामित्व वाले वन क्षेत्र में चिड़ियाघर/सफारी की स्थापना के किसी भी प्रस्ताव को न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना अंतिम रूप से अनुमोदित नहीं किया जाएगा।
- जहां भी ऐसे किसी प्रस्ताव को लागू करने की मांग की जाती है, तो केंद्र सरकार द्वारा या जैसा भी मामला हो सुप्रीम कोर्ट की पूर्व मंजूरी के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्थानांतरित किया जाए।
- याचिकाकर्ताओं द्वारा वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 की धारा 5 के बारे में आशंका व्यक्त करने के बाद ये निर्देश पारित किए गए।
- वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में चिड़ियाघरों और सफ़ारियों को धारा 5 के अनुसार,
- संरक्षित क्षेत्रों को छोड़कर वन क्षेत्रों के भीतर सरकार या किसी प्राधिकरण के स्वामित्व के तहत 'वन' की परिभाषा से छूट दी गई है।
टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ मामला-
- वर्ष,1995 में टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद ने नीलगिरी वन भूमि में वनों को अवैध कटाई से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट एक रिट दायर की।
- कोर्ट ने राष्ट्रीय वन नीति, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के सभी पहलुओं की विस्तार से जांच की, जिसे वनों की कटाई को रोकने के उद्देश्य से लागू किया गया था।
- वर्ष, 1996 में दिए अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'वन' शब्द को स्वामित्व की प्रकृति और उसके वर्गीकरण के बावजूद शब्द के शब्दकोश अर्थ के अनुसार समझा जाना चाहिए।
- इस नई व्यापक परिभाषा के अनुसार, कोई भी जंगल, स्वामित्व की परवाह किए बिना, वन संरक्षण अधिनियम के अधीन होगा।
- कोर्ट द्वारा जारी किए गए अन्य निर्देशों में हैं;
- केंद्र सरकार की विशिष्ट मंजूरी के बिना, देश भर में सभी वन गतिविधियाँ तुरंत बंद होनी चाहिए।
- केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित कार्य योजना के अनुसार छोड़कर सभी जंगलों में सभी पेड़ों की कटाई निलंबित रहेगी।
- पूर्वोत्तर के सात राज्यों से रेल, सड़क या जलमार्ग से कटे हुए पेड़ों और लकड़ी की आवाजाही पर पूर्ण प्रतिबंध।
- फैसले के कार्यान्वयन की निगरानी करने और विशेष रूप से पूर्वोत्तर में आगे के आदेश देने में न्यायालय का मार्गदर्शन करने के लिए एक उच्च शक्ति समिति का गठन होगा।
वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023-
- यह अधिनियम वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में संशोधन करता है।
- इसमें भारतीय वन एक्ट, 1927 या 1980 के एक्ट के प्रभावी होने के बाद सरकारी रिकॉर्ड्स के तहत वन के रूप में अधिसूचित भूमि शामिल है।
- यह अधिनियम 12 दिसंबर, 1996 से पहले गैर वानिकी उपयोग के रूप में परिवर्तित भूमि पर लागू नहीं होगा।
- यह कुछ प्रकार की भूमि को अधिनियम के दायरे से छूट देता है।
- इसमें भारतीय सीमा के साथ 100 किलोमीटर के भीतर स्थित भूमि शामिल है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं, सड़क किनारे की छोटी सुविधाओं और बसाहट की तरफ जाने वाली सार्वजनिक सड़कों के लिए जरूरी हैं।
- राज्य सरकार को किसी निजी संस्था को वन भूमि देने से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होती है।
- यह अधिनियम सभी संस्थाओं के लिए इस शर्त को लागू करता है।
- केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और शर्तों के आधार पर ये भूमि सौंपी जाएगी।
- अधिनियम वनों में कुछ क्रियाकलापों की अनुमति देता है; जैसे-
- चेक पोस्ट लगाना
- फेंसिंग करना
- पुल बनाना
- चिड़ियाघर
- सफारी
- इको-टूरिज्म
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972-
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 भारत में वन्यजीव संरक्षण को नियंत्रित करता है।
- यह वन्यजीव सलाहकार बोर्ड, वन्यजीव वार्डन की नियुक्ति, उनकी शक्तियों, कर्तव्यों आदि का प्रावधान करता है।
- इस अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों आदि की स्थापना का प्रावधान किया गया।
- यह अधिनियम भारतीय वन्यजीव बोर्ड (IBWL),केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण तथा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान करता है।
संविधान में वन-
- संविधान के लागू होने के समय वन सातवीं अनुसूची के राज्य सूची में शामिल था।
- वन, वन्यजीवों और पक्षियों के संरक्षण को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- अनुच्छेद 48A के अनुसार, राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने एवं देश के वनों तथा वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- अनु. 51- A(g) के अनुसार, वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिकका मौलिक कर्तव्य होगा।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- इसमें भारतीय वन एक्ट, 1927 या 1980 के एक्ट के प्रभावी होने के बाद सरकारी रिकॉर्ड्स के तहत वन के रूप में अधिसूचित भूमि शामिल है।
- यह अधिनियम 12 दिसंबर, 1996 से पहले गैर वानिकी उपयोग के रूप में परिवर्तित भूमि पर लागू नहीं होगा।
नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर- (c)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- गोदावर्मन बनाम भारत संघ मामला क्या है? इसके आधार पर वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के संदर्भ में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय की व्याख्या कीजिए।
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