ऐसे व्यक्तियों को निःशुल्क कानूनी सेवाएं प्रदान करना, जो कानूनी प्रतिनिधित्व या न्याय प्रणाली तक पहुंच का खर्च नहीं उठा सकते।
इसमें कानूनी सलाह, अदालती कार्यवाही में प्रतिनिधित्व, मध्यस्थता, वार्ता और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र शामिल हैं।
वैधानिक प्रावधान:
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987
लागू : 1995 में
समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क और उचित कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए स्थापित।
इसके तहत निम्नलिखित संस्थाओं का गठन हुआ:
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA)
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (धारा 341):
जिन मामलों में अभियुक्त के पास कानूनी सहायता के साधन नहीं हैं, वहां राज्य सरकार के खर्च पर विधिक सहायता देने का प्रावधान।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
"दिशा 14" -कानूनी जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम।
टेली-लॉ - डिजिटल माध्यम से कानूनी सलाह और सहायता प्रदान करना।
न्याय मित्र कार्यक्रम - समाज में न्याय तक पहुंच बढ़ाने की पहल।
लोक अदालत - विवादों का त्वरित और सौहार्दपूर्ण समाधान।
विधिक सहायता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 21:
यह प्रावधान करता है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है।
अनुच्छेद 39-A:
यह राज्य को निर्देश देता है कि वह सभी नागरिकों को निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करे, ताकि कोई भी व्यक्ति आर्थिक या अन्य अभाव के कारण न्याय प्राप्त करने से वंचित न रहे।
इसे 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) के तहत संविधान में जोड़ा गया था।
निःशुल्क विधिक सहायता के लिए पात्र व्यक्ति
महिलाएं एवं बच्चे
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य
औद्योगिक कामगार
आपदा पीड़ित व्यक्ति - सामूहिक हिंसा, बाढ़, सूखा, भूकंप या औद्योगिक आपदा से प्रभावित लोग
मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति या दिव्यांगजन
संरक्षण गृह, किशोर गृह या मनोरोग अस्पताल में हिरासत/भर्ती व्यक्ति
मानव तस्करी या भिक्षावृत्ति के शिकार व्यक्ति (अनुच्छेद 23 के तहत)
न्यायालय में मामला होने पर आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति:
सुप्रीम कोर्ट में मामला होने पर पात्रता ₹5,00,000 वार्षिक आय तक
अन्य न्यायालयों में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित आय सीमा तक पात्रता