गौरा देवी, एक जमीनी कार्यकर्ता और ग्रामीण महिला समुदाय की नेता थीं, जिन्होंने चिपको आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इन्हें “चिपको वुमन” के नाम से भी जाना जाता है
गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में हुआ था।
हालाँकि गौरा देवी ने औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन उनके अनुभवों ने उन्हें महिलाओं के मुद्दों के प्रति जागरूकता प्रदान की, जिससे उन्हें पंचायत के कामकाज और अन्य सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
इन्होंने 25 मार्च 1974 को सामुदायिक वन को बचाने के लिए पहली महिला कार्रवाई का नेतृत्व किया।
गौरा देवी के नेतृत्व में रेनी गांव की महिलाओं और लड़कियों ने जंगल को कटने से बचाया तथा महिलाओं द्वारा चिपको प्रत्यक्ष कार्रवाई की शुरुआत की।
चिपको आंदोलन में गौरा देवी को महिला मंगल दल (महिला कल्याण संघ) का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। इस संस्था ने सामुदायिक वनों के संरक्षण पर कार्य किया।
जुलाई 1991 में 66 वर्ष की आयु में गौरा देवी का निधन हो गया।
चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन भारत में विश्व प्रसिद्ध पर्यावरण आंदोलनों में से एक है।
चिपको आंदोलन का प्राथमिक उद्देश्य जंगलों और पेड़ों की रक्षा करना था।
चिपको आंदोलन का नाम 'आलिंगन' शब्द से उत्पन्न हुआ है, क्योंकि इस आंदोलन में लोगों द्वारा पेड़ों को काटने से बचाने के लिए गले लगाकर उनकी रक्षा की जाती थी।
इसकी शुरुआत 24 अप्रैल 1973 को उत्तराखंड के चमोली जिले में हुई थी।
1980 के दशक तक यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया तथा संवेदनशील वन नीतियों का निर्माण हुआ, जिसने विंध्य और पश्चिमी घाट के क्षेत्रों में भी पेड़ों की खुली कटाई पर रोक लगा दी।
यह एक सामाजिक-पारिस्थितिक आंदोलन था, जिसने सत्याग्रह और अहिंसक प्रतिरोध के गांधीवादी तरीकों को अपनाया।
सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी, सुदेशा देवी, चिपको कवि घनश्याम रतूड़ी ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।