(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 : भारतीय समाज पर भूमंडलीकरण का प्रभाव, सामाजिक सशक्तीकरण)
संदर्भ
- कुछ समय पहले एल.जी.बी.टी.समुदाय से जुड़े लोगों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करके ‘विशेष विवाह अधिनियम’और ‘हिंदू विवाह अधिनियम’के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की माँग की थी।
- याचिकाकर्ताओं का कहना थाकि ‘हिंदू विवाह अधिनियम’की धारा-5 समलैंगिक व विपरीत लिंगी जोड़ों के बीच भेदभाव नहीं करती है। ऐसे में समलैंगिक जोड़ों को उनके अधिकार मिलने चाहिये।
- हाल ही में, केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह के लिये मौजूदा विवाह कानूनों में किसी भी बदलाव का विरोध करते हुए कहा है कि इस तरह के हस्तक्षेप से देश में पर्सनल लॉज़ (Personal Laws) का संतुलन बिगड़ सकता है।
- ध्यातव्य है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 कोगैर-आपराधिक घोषित किये जाने के बावजूद, भारत मेंसमलैंगिक विवाहका मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।
केंद्र का दृष्टिकोण
- केंद्र सरकार के अनुसार पार्टनर के रूप में साथ रहने व समलैंगिक यौन संबंध की तुलना भारतीय परिवारों की (सांस्कृतिक) अवधारणा से नहीं की जा सकती।
- परिवार की भारतीय अवधारणा में पति-पत्नी और बच्चे शामिल हैं, जिसमें पति के रूप में एक पुरुष (biological man) और पत्नी के रूप में स्त्री (biological woman) की ही परिकल्पना की गई है।
- सरकार ने कहा कि वर्ष 2018 में ‘सहमति के साथ बनाए गए समलैंगिक यौन संबंधों को गैर-आपराधिक घोषित करने वाला उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय, वस्तुतः ऐसे क्रियाकलाप को वैध घोषित नहीं करता।
- वर्तमान में,समलैंगिक विवाह का पंजीकरण विभिन्न संहिताबद्ध कानूनों के परिप्रेक्ष्य में भीअसंगत है - जैसे 'विवाह की शर्तें' तथापरंपरागत अनुष्ठानिकआवश्यकताएँ' आदि।
क्या कहती है आई.पी.सी.की धारा 377?
- धारा 377 के अंतर्गत समलैंगिक यौन संबंध को आपराधिक कृत्य माना गया है।
- समलैंगिक संबंधों को 'अप्राकृतिक आपराधिक कृत्य’' की श्रेणी में रखते हुए, इसके लिये आजीवन कारावास की सज़ाका प्रावधान था।
- ध्यातव्य है किनाज़ फाउंडेशन द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका में पूछा गया था “क्या धारा 377 संविधान द्वारा प्रदत्त‘ समानता के मौलिक अधिकार’ का हनन नहीं करती? यदि हाँ, तो क्यों न इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया जाए और दो समान लिंगियों के बीच आपसी सहमति से बने संबंधों को कानूनी मान्यता दे दी जाए।’
- उपर्युक्त याचिका के सन्दर्भ में ऐतिहासिक फैसले में, 6 सितंबर, 2018 को अपने ऐतिहासिक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने धारा 377 को गैर-आपराधिक घोषित करते हुए वयस्कों के बीच (व्यक्तिगत स्तर पर) समलैंगिक संबंधों को अनुमति दी थी।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सहमति के साथ बनाए गए यौन संबंध अपराध नहीं हैं।साथ हीविशेष लिंग के प्रति उन्मुखता या ‘स्पेसिफिक सेक्शुअल ओरिएंटेशन’ स्वाभाविक है और लोगों का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है।
- साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि नाबालिगों के साथ यौन संबंध तथाबिनासहमति के यौन कृत्य, धारा 377 के तहत अभी भी अपराध की श्रेणी में ही हैं।
क्या है विशेषविवाह अधिनियम?
- भारतीय संस्कृति में‘ विवाह’ को एक पवित्र एवं धार्मिक संस्था माना जाता है।भारतीय संसद द्वारा वर्ष1954 में विशेष विवाह अधिनियम पारित कियागया।
- यह कानून मुख्य रूप से अंतर-जातीय एवं अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित है।इसके अनुसार विवाह करने वाले दोनों पक्षों में से किसी को भी अपना धर्म छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही, यह कानून हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन तथा बौद्ध आदि सभी धर्मों पर लागू होता है और इसके दायरे में भारत के सभी राज्य आते हैं।
- अधिनियम के अनुसार,विवाहित जोड़े तलाक के लिये तब तक याचिका दायर नहीं कर सकते,जब तक कि उनके विवाह को एक वर्ष पूर्ण न हो जाए।
अन्य देशों के कानून क्या कहते हैं?
- विश्व में कई देशों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की है। वर्तमान में लगभग30 देश ऐसे हैं,जहाँ समलैंगिक विवाह से जुड़े प्रावधान मौजूद हैं।
- सर्वप्रथम वर्ष 2000 में नीदरलैंड ने समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान की थी। तब से अब तक ऑस्ट्रेलिया, माल्टा, जर्मनी, अमेरिका, ग्रीनलैंड, आयरलैंड, फिनलैंड, लक्ज़मबर्ग, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड - वेल्स, ब्राज़ील, फ्राँस, न्यूजीलैंड, उरुग्वे, डेनमार्क, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, आइसलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, कनाडा, बेल्जियम भी समलैंगिक विवाह को मान्यता दे चुके हैं।
- विगत वर्षों में उत्तरी आयरलैंड, इक्वाडोर, ताइवान और ऑस्ट्रिया जैसे देशों ने भी समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से जुड़े कानून बनाए थे।
- वर्ष 2018 में वयस्क समलैंगिकता को मान्यता देने के पश्चात्भारत उन 125 देशों में शामिल हो गया है, जहाँ समलैंगिकता को कानूनी मान्यता प्राप्त है।
- अमेरिका में वर्ष 2013 से वयस्कों के लिये समलैंगिकता को वैध घोषित किया जा चुका है। सितंबर 2011, में अमेरिका की 'डोंट आस्क डोंट टेल' नीति खत्म की गई थी, जिसमें यद्यपि समलैंगिकों को सैन्य सेवाओं में नौकरी करने का अधिकार प्राप्त था। अमेरिका के कई राज्यों में समलैंगिक जोड़ों को विवाह के पश्चात् परिवार बसाने का भी अधिकार प्राप्त है।
- समलैंगिकों को सबसे व्यापक स्तर पर अधिकार डेनमार्क में प्राप्त हैं। यहाँ समलैंगिक यौन संबंध वर्ष 1933 से ही वैधानिक घोषित हैं।साथ ही, वर्ष 1977 में यौन संबंधों के लिये सहमति की उम्र भी घटाकर 15 वर्ष कर दी गई।
- इस्लामिक देशों की बात की जाए तो ईरान, सऊदी अरब और सूडान आदि में समलैंगिकता के लिये मृत्युदंड का प्रावधान है। भारत के पड़ोसी देशों-पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मॉरीशस व सिंगापुर आदि में भी समलैंगिकता अपराध की श्रेणी के अंतर्गत शामिलहै।
- इस्लामिक देशों में सर्वप्रथम तुर्की ने समलैंगिक और ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों को मान्यता दी। उल्लेखनीय है कि तुर्की में वर्ष 1858 में ऑटोमन साम्राज्य के समय से ही समलैंगिक संबंधों को मान्यता प्राप्त है,यद्यपि सामाजिक स्तर पर यहाँ अभी भी ट्रांसजेंडर लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है।
- वर्ष 1976 में, बहरीन में भी समलैंगिक यौन संबंधों को मान्यता प्रदान की गई,किंतु अभी भी यहाँ लड़कों को लड़कियों की तरह कपड़े पहनना मना है।
- ध्यातव्य है कि अभी भी विश्व में 70 से अधिक देशों में इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
क्या हैं एल.जी.बी.टी.समुदाय से संबंधित अन्य मुद्दे?
- भारत में इस समुदाय के लोगों को बच्चे गोद लेने का अधिकार नहीं है।
- भूमि तथा अन्य चल-अचल संपत्तियों पर अधिकारों को लेकर अभी तक स्पष्ट कानून नहीं हैं।
क्या निष्कर्ष निकलता है?
- विगत वर्षों में उच्चतम न्यायालय ने प्रेम, लैंगिकता और विवाह से जुड़े विभिन्न मुद्दों, जैसे शफीन जहान बनाम अशोकन वाद (2018), शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ वाद (2018) और नव तेज जोहर बनाम भारत संघ वाद (2018) आदि में महत्त्वपूर्ण निर्णय दिये हैं, जिनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रमुखता दी गई।
- उल्लेखनीय है कि अमेरिका में भेदभाव रोकने के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद14 की तर्ज़ पर एक नया शब्द जोड़ा गया है,‘जेंडर ओरिएंटेशन’।यह शब्द समलैंगिकों को किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने के लिये शामिल किया गया है।परंतु, अभी तक भारतीय समाज व संविधान में इस तरह की कोई पहल नहीं की गई है।''
- उच्चतम न्यायालय ने अपने फ़ैसले में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करके एक चरण तो पूरा कर लिया था, लेकिन समलैंगिक समाज को सहज स्वीकार्यता प्राप्त करने के लिये अभी लंबा सफ़र तय करना पड़ेगा और केंद्र सरकार का वर्तमान रुख भी इस दिशा में बहुत सकारात्मक नहीं है।”