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शिक्षा में लैंगिक अंतराल

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : शिक्षा से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वर्ष 2024 की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट में भारत को 146 अर्थव्यवस्थाओं में से 129वें स्थान पर रखा गया है। वर्ष 2023 की रिपोर्ट में भारत 146 में से 127वें स्थान पर था। शिक्षा क्षेत्र में गिरावट इस वर्ष भारत की रैंकिंग में कमी का एक मुख्य कारण है।

लैंगिक अंतराल की स्थिति 

  • WEF की रिपोर्ट के अनुसार, शैक्षिक प्राप्ति संकेतकों में अद्यतन आंकड़ों के कारण भारत के लैंगिक समानता स्तर में विगत वर्ष की तुलना में गिरावट आई है। 
  • यद्यपि प्राथमिक, माध्यमिक एवं तृतीयक स्तर की शिक्षा में नामांकन में महिलाओं की हिस्सेदारी उच्च है किंतु यह केवल मामूली रूप से बढ़ रही है। पुरुषों व महिलाओं की साक्षरता दर के बीच 17.2% अंक का अंतर है। 
  • वर्ष 2023 में प्रकाशित इस रिपोर्ट के 17वें संस्करण में भारत ने शैक्षिक समानता के मामले में पूर्ण अंक (1.000) प्राप्त किया था। इस बार की रिपोर्ट में भारत ने शिक्षा श्रेणी में 0.964 का स्कोर दर्ज किया। 
    • शिक्षा श्रेणी में आकलन किए जा रहे मुख्य संकेतक प्राथमिक, माध्यमिक एवं तृतीयक शिक्षा में नामांकन का स्तर और वयस्क साक्षरता दर हैं।

शैक्षिक क्षेत्र में भारत के आंकड़े 

  • केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय दो प्रमुख संग्रह प्रणालियों का उपयोग करके स्कूल एवं कॉलेज नामांकन डाटा को ट्रैक करता है : 
    • शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (UDISE+)
    • अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE)
  • वर्ष 2021-22 के लिए UDISE+ रिपोर्ट से पता चलता है कि 13.79 करोड़ बालक और 12.73 करोड़ बालिकाएँ स्कूल में नामांकित थीं। इस प्रकार, बालिकाएँ स्कूली आबादी का 48% हिस्सा बनाती हैं। 

स्कूली शिक्षा के विभिन्न चरणों में बालिकाओं के नामांकन की स्थिति 

  • स्कूली शिक्षा के विभिन्न चरणों में नामांकन भिन्न-भिन्न होता है : 
    • प्रीस्कूल या किंडरगार्टन में 46.8% बालिकाएँ नामांकित हैं। 
    • प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1 से 5) तक आँकड़ा बढ़कर 47.8% हो जाता है।
    • उच्च प्राथमिक या प्रारंभिक विद्यालय (कक्षा 6 से 8) में नामांकित बालिकाओं का आँकड़ा 48.3% है। 
    • कक्षा 8 के बाद नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार समाप्त हो जाने के बाद कुछ बालिकाएँ स्कूल छोड़ देती हैं। माध्यमिक विद्यालय (कक्षा 9 से 10) में लिंग अंतराल बढ़ता है, जहाँ नामांकित छात्रों में 47.9% बालिकाएँ है।
    • हालांकि, जिन बालिकाओं की माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच है, उनके उच्चतर माध्यमिक स्तर तक बने रहने की संभावना अधिक है।
    • वर्ष 2021-22 के लिए AISHE रिपोर्ट के अनुसार, उच्च शिक्षा में भी यही प्रवृत्ति जारी है। उच्च शिक्षा में महिलाओं के लिए सकल नामांकन अनुपात (GER) पूरे देश में 28.5 था। यह पुरुष GER 28.3 से थोड़ा अधिक था। 
      • GER से तात्पर्य कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में नामांकित 18 से 23 वर्ष की आयु के बीच की आबादी के प्रतिशत से है। 
    • वर्ष 2014-15 से उच्च शिक्षा में महिला नामांकन में 32% की वृद्धि देखी गई है। 

सरकार द्वारा किए गए प्रयास

  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान : इसका उद्देश्य स्कूलों का निर्माण एवं विकास, नामांकन को बढ़ावा देना और छात्रवृत्ति प्रदान करके बालिकाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करना है। 
  • सीबीएसई उड़ान छात्रवृत्ति कार्यक्रम : लड़कियों के लिए सी.बी.एस.ई. उड़ान छात्रवृत्ति कार्यक्रम का उद्देश्य भारत में आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की छात्राओं को प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेजों से डिग्री प्राप्त करने में मदद करना है। 
  • माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना : यह योजना वर्ष 2008 में शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने शुरू की थी। यह मुख्यत: 14-18 वर्ष आयु वर्ग की निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवारों की बालिकाओं के लिए है।
  • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना : कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना भारत सरकार द्वारा अगस्त 2004 में शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य दुर्गम क्षेत्रों में मुख्य रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक वर्ग की बालिकाओं के लिए उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय विद्यालय स्थापित करना है।

बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के सरकारी प्रयासों का प्रभाव 

  • स्कूलों की संख्या में वृद्धि : अधिक विद्यालयों के निर्माण से बहुत प्रभाव पड़ा है। घर से उचित दूरी पर प्राइमरी स्कूल स्थित होने पर माता-पिता में अपने बच्चों, विशेषकर बालिकाओं के नामांकन की इच्छा बढ़ जाती है। 
    • गुजरात में सरकार ने बहुत कम माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बनाए और इनको बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिया गया है। यहाँ माध्यमिक कक्षाओं में बालिकाओं की संख्या केवल 45.2% है, जो झारखंड (50.7%), छत्तीसगढ़ (51.2%), बिहार (50.1%) और उत्तर प्रदेश (45.4%) जैसे निर्धन राज्यों से भी बहुत कम है।
  • महिला शिक्षकों की उपस्थिति : बालिकाओं के नामांकन को प्रभावित करने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण कारक महिला शिक्षकों की उपस्थिति है। जिन क्षेत्रों के प्राथमिक विद्यालयों में केवल एक या दो शिक्षक कार्यरत हैं वहां अधिकांशत: नामांकन दर निम्न है। केवल पुरुष शिक्षक वाले स्कूलों में माता-पिता अपनी पुत्रियों को भेजने में सहज नहीं होते हैं।
  • परिवहन सुगमता : हरियाणा, पंजाब एवं तमिलनाडु जैसे राज्यों में स्कूली छात्राओं के लिए मुफ़्त बस पास के साथ ही बिहार व अन्य राज्यों में छात्राओं को मुफ़्त साइकिल देने की योजना से नामांकन में सुधार हुआ है। 
  • स्वच्छता : स्वच्छता का मुद्दा उच्च कक्षाओं में छात्राओं की शिक्षा के लिए एक बड़ी बाधा बना हुआ है। यह कक्षा 8 के बाद बड़ी संख्या में छात्राओं के स्कूल छोड़ने का कारण बनता है। हालाँकि, केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा स्कूलों में शौचालयों के निर्माण से काफी सुधार हुआ है।

चुनौतियां 

  • छात्रों द्वारा स्कूल छोड़ने की बढती प्रवृति : कई राज्यों ने उच्च कक्षाओं में लिंग भेद को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया है। हालाँकि, वर्तमान में बालकों (छात्रों) के स्कूल पूरा करने से पहले ही पढ़ाई छोड़ने की प्रवृति ने नई चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं। 
    • उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 55.7% बालिकाएँ हैं। छत्तीसगढ़ (53.1%) और तमिलनाडु (51.2%) में भी ऐसी ही स्थिति है। 
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत विद्यार्थियों को कक्षा 8 तक अनुत्तीर्ण (फेल) नहीं किया जा सकता है। कक्षा 9 तक पहुँचने वाले विद्यार्थियों में बालिकाएँ प्राय: पढ़ाई में रुचि रखती हैं किंतु कुछ बालक माध्यमिक स्तर तक पहुँचने पर पढ़ाई छोड़ देते हैं। निर्धन बालकों पर आजीविका कमाने का दबाव भी शिक्षा में मुख्य बाधक है।
  • डाटा की समस्या : क्षेत्रीय एवं विषय-वार डाटा अंतराल एक मुख्य चुनौती बनी हुई है। उदाहरण के लिए, स्नातक से पी.एच.डी. स्तर तक STEM विषयों में नामांकित छात्रों में महिला छात्र केवल 42.5% हैं। 
  • साक्षरता अंतराल की समस्या : वयस्क साक्षरता अभी भी चिंता का विषय है। वर्ष 2011 की अंतिम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, केवल 64.63% महिलाएँ साक्षर हैं, जबकि पुरुषों में यह प्रतिशत 80.88% है। 
  • सामाजिक समस्या : रूढ़ियाँ, सामाजिक अपेक्षाएँ और रोल मॉडल की कमी प्राय: महिलाओं को STEM विषयों में प्रवेश लेने व करियर को आगे बढ़ाने से रोकती हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और मेंटरशिप के अवसरों तक सीमित पहुँच स्थिति को और भी बदतर बना रही है।
  • संसाधन व कौशल की समस्या : संसाधनों तक सीमित पहुँच और अपर्याप्त आधारभूत कौशल की कमी भी मुख्य चुनौती है, जो लिंग की परवाह किए बिना सभी छात्रों को प्रभावित करती है।    
    • उदाहरण के लिए, 14 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बुनियादी रूप से पढ़ने एवं अंकगणित कौशल में भी संघर्ष करता है।

क्या किया जाना चाहिए 

  • ग्रामीण शिक्षा पर जोर देना : इसके लिए स्कूलों में बुनियादी साक्षरता में सुधार करने के साथ-साथ लिंग अंतराल को कम करने के लिए ग्रामीण महिलाओं तक शिक्षा पहुँच को सरल बनाने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।
  • समावेशी वातावरण का निर्माण करना : इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सहायक वातावरण को बढ़ावा देना, समावेशिता को बढ़ावा देना और STEM क्षेत्रों में महिलाओं के लिए समान अवसर प्रदान करना शामिल है।
  • STEM के लिए जागरूकता बढ़ाना : STEM के प्रति प्रारंभिक जागरूकता, लिंग-संवेदनशील शिक्षण पद्धतियां तथा प्रणालीगत बाधाओं को दूर करना, भारत में अधिक विविधतापूर्ण एवं समतापूर्ण STEM परिदृश्य की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
    • माता-पिता की भागीदारी और समुदाय का प्रभाव बालिकाओं की शैक्षिक उपलब्धियों व करियर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। शिक्षा व्यय में असमानताएँ प्राय: घरों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के पक्ष में होती हैं।
  • शिक्षा में अधिक निवेश की आवश्यकता : बालिकाओं की शिक्षा में निवेश से किसी भी अन्य निवेश से अधिक लाभ मिलने की संभावना होती है। यह सामाजिक एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, गरीबी कम करने और लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है। 
  • दृष्टिकोण में सुधार का प्रयास करना : शिक्षा के सभी पहलुओं पर लैंगिक अधिकार के दृष्टिकोण से विचार किया जाना चाहिए, जिसमें शिक्षा प्रणालियों की संरचनात्मक विशेषताएँ, शिक्षा के तरीके और शिक्षा पाठ्यक्रम की सामग्री शामिल है।
  • असमानताओं को कम करना : अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा तक समान पहुँच के लिए समाज में व्यापक एवं निरंतर असमानताओं को संबोधित करना आवश्यक है। इसमें इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिए कि असमानता के विभिन्न रूप किस तरह हाशिए पर रह रहे कमज़ोर समूहों के लिए असमान परिणाम उत्पन्न करते हैं।
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