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परिवार नियोजन में लैंगिक असमानता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2 : महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ 

वैश्विक स्तर पर प्रत्येक वर्ष नवंबर के तीसरे शुक्रवार को पुरुष नसबंदी दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिवस 15 नवंबर को आयोजित किया गया। इसका उद्देश्य परिवार नियोजन को लेकर पुरुषों के बीच नसबंदी से संबंधित गलत धारणाओं को दूर करके उनमें जागरूकता बढ़ाकर इस प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना है। साथ ही, गर्भनिरोधक को लेकर सुरक्षित विकल्प एवं साझी जिम्मेदारी की चर्चा को आगे बढ़ाना है।  

परिवार नियोजन संबंधी महत्वपूर्ण आँकड़े 

  • भारत में परिवार नियोजन का अधिकांश बोझ महिलाओं पर ही पड़ा है और इसीलिए महिला नसबंदी को व्यापक रूप से प्राथमिकता भी दी गई है। वर्ष 1952 में भारत ने परिवार नियोजन के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की जिसके उद्देश्यों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार से लेकर जनसंख्या का स्थिरीकरण तक शामिल था। 
    • इस कार्यक्रम के विकसित होने के साथ-साथ गर्भनिरोध के स्थायी तरीके भी विकसित हुए जिसमें पुरुष नसबंदी भी एक प्रमुख तरीका रहा है।
  • वर्ष 1966-70 के दौरान भारत में नसबंदी की सभी प्रक्रियाओं में से लगभग 80.5% पुरुष नसबंदी थीं। हालांकि, नीतियों में बदलाव के कारण प्रत्येक वर्ष यह प्रतिशत घटता गया तथा विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक कारणों और दोषपूर्ण दृष्टिकोण के कारण परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरुषों की भागीदारी संतोषजनक नहीं रही है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS) के पाँचवे दौर के आंकड़ों के अनुसार विगत तीन दशकों में सभी राज्यों में पुरुष नसबंदी में लगातार गिरावट आ रही है। 
    • इसके अलावा एन.एफ.एच.एस.-4 और एन.एफ.एच.एस.-5 में पुरुष नसबंदी का प्रतिशत लगभग 0.3% पर स्थिर रहा है। आधिकारिक आँकड़े महिला एवं पुरुष नसबंदी की दरों के बीच अत्यधिक असमानता दिखाते हैं।
  • वर्तमान में भारत जैसे विकासशील देश में विभिन्न कारणों से नसबंदी का लगभग सारा बोझ महिलाओं पर ही पड़ता है जो सतत विकास लक्ष्य-5 (वर्ष 2030 तक सभी महिलाओं एवं बालिकाओं की लैंगिक समानता व सशक्तिकरण) को प्राप्त करने में चुनौती प्रस्तुत करता है।
  • इस प्रकार की प्रवृत्ति राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के लक्ष्यों के भी प्रतिकूल है जिसका उद्देश्य परिवार नियोजन के संदर्भ में पुरुष नसबंदी को कम-से-कम 30% तक बढ़ाना था। वर्तमान में भारत इस लक्ष्य को प्राप्त करने से बहुत दूर है। इस संदर्भ में विभिन्न प्रयासों के बावजूद भी सरकारी नीतियां अभी भी जमीनी स्तर पर अप्रभावी बनी हुई हैं और पुरुष व महिला नसबंदी दरों के बीच का अंतर स्पष्ट है। 

परिवार नियोजन में लैंगिक असमानता के कारण 

  • आर्थिक कारक : भारतीय समाज की परंपरागत व्यवस्था के अनुसार कमाने की जिम्मेदारी पुरुषों पर डाली गई है, ऐसे में अतिरिक्त जिम्मेदारी के रूप में यह उन पर दोहरे बोझ का कारण बन जाती है। 
    • महाराष्ट्र के एक गांव के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश महिलाओं ने माना कि नसबंदी उनकी जिम्मेदारी है। साथ ही, उनके द्वारा यह भी कहा गया कि पुरुषों पर इसका बोझ नहीं डाला जाना चाहिए क्योंकि वे पहले से ही अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और इस प्रक्रिया से पुरुषों की कुछ दिन की मजदूरी छिन सकती है, जिससे उनकी परेशानी बढ़ सकती है।
  • सामाजिक कारक : भारत में इस संदर्भ में हुए कई अध्ययनों के अनुसार अशिक्षा, पुरुषवादी मानसिकता, कामेच्छा पर इसके प्रभाव के बारे में गलत धारणाएँ और परिवार के विरोध के कारण पुरुष नसबंदी को कम स्वीकृति मिली है। 
  • कुशल स्वास्थ्य प्रदाताओं की अनुपलब्धता : ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल स्वास्थ्य प्रदाताओं की अनुपलब्धता ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया है। चूंकि कई प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को स्वयं ही नो-स्केलपेल नसबंदी (No-scalpel Vasectomy) के बारे में अत्यल्प जानकारी है।
    • नो-स्केलपेल नसबंदी : यह पुरुष नसबंदी का एक आधुनिक, सुरक्षित एवं प्रभावी तरीका है जिसमें जटिलताएँ कम होती हैं और रोगी की अनुपालन क्षमता भी अधिक होती है। यह वैश्विक स्तर पर पुरुष नसबंदी की एक मानक विधि बन गई है। 
  • जागरूकता का अभाव : भारतीय समाज में, विशेषरूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं में लैंगिक समानता और अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता का अभाव है जिससे परिवार नियोजन में भी इसका स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। 

परिवार नियोजन में लैंगिक समानता के लिए सुझाव 

  • परिवार नियोजन में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों में किशोरावस्था के दौरान संवेदनशीलता की शुरूआत होनी चाहिए जहाँ जागरूकता कार्यक्रम एवं निगरानी वाले सहकर्मी-समूह चर्चाएँ नसबंदी को एक साझा जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करने की नींव रख सकती हैं। 
  • निरंतर सामाजिक एवं व्यवहार परिवर्तन संचार पहल पुरुष नसबंदी के बारे में मिथकों को दूर करने और इसे अपनाने में सहायक होगी।
  • इस संदर्भ में सूचना, शिक्षा एवं संचार गतिविधियों को पुरुष नसबंदी के लिए अधिक सशर्त नकद प्रोत्साहन के साथ संपूरित किया जाना चाहिए, जिसका लक्ष्य पुरुषों की भागीदारी में सुधार करना है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2019 में महाराष्ट्र में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि ग्रामीण आदिवासी क्षेत्रों में ज़्यादातर पुरुषों ने सशर्त नकद प्रोत्साहन की पेशकश के बाद नसबंदी का विकल्प चुना। 
  • इसके अलावा भारत को उन देशों के मॉडल को भी देखना चाहिए जिन्होंने परिवार नियोजन के संदर्भ में पुरुष नसबंदी को बढ़ावा दिया है। 
    • उदाहरण के लिए, दक्षिण कोरिया में दुनिया भर में पुरुष नसबंदी का प्रचलन सर्वाधिक है और रिपोर्ट के अनुसार प्रगतिशील सामाजिक मानदंडों और अधिक लैंगिक समानता के परिणामस्वरूप पुरुषों में गर्भनिरोधक ज़िम्मेदारियाँ उठाने की संभावना ज़्यादा है। 
    • इसी तरह, भूटान ने इस प्रक्रिया को सामाजिक रूप से स्वीकार्य बनाकर, अच्छी गुणवत्ता वाली सेवाएँ उपलब्ध कराकर और सरकार द्वारा संचालित पुरुष नसबंदी शिविरों का आयोजन करके पुरुष नसबंदी को लोकप्रिय बनाया है। 
    • ब्राज़ील ने जनसंचार माध्यमों पर जागरूकता अभियान चलाकर पुरुष नसबंदी को बढ़ावा दिया है और यह दर वर्ष 1980 के दशक में 0.8% से बढ़कर पिछले दशक में 5% हो गई है।

निष्कर्ष 

पुरुष नसबंदी के बारे में अधिक सार्वजनिक जागरूकता से विवाह में शामिल दोनों भागीदारों को परिवार नियोजन के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलती है। इस संदर्भ में सरकार को नीतिगत उद्देश्यों के अनुरूप राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता होगी। इस प्रक्रिया के लिए अधिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करने में निवेश को बढ़ाना तथा नॉन-स्केलपेल पुरुष नसबंदी के उपयोग को बढ़ाने के लिए तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देना होगा। इसके आलावा परिणामी नीति में लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ठोस कदम भी होने चाहिए। समय की मांग है कि केवल निर्माण के बजाय मांग और सेवा-केंद्रित प्रयास किए जाएं।

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