(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी व जैव-विविधता)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, क्षरण और पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
‘डी.बी.टी.-इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज, भुवनेश्वर’ और ‘एस.आर.एम.-डी.बी.टी. पार्टनरशिप प्लेटफॉर्म फॉर एडवांस्ड लाइफ साइंसेज़ टेक्नोलॉजीज़’, ‘एस.आर.एम. इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, तमिलनाडु’ के वैज्ञानिकों ने पहली बार अत्यधिक नमक सहिष्णु और नमक-स्रावित ट्रू-मैंग्रोव प्रजाति के संदर्भ-ग्रेड के एक पूरे जीनोम अनुक्रम की जानकारी दी है। इस प्रजाति का नाम ‘एविसेनिया मरीना’ (Avicennia Marina) है।
मैंग्रोव
- मैंग्रोव दलदले अंतर-ज्वारीय मुहाना क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों का एक अनूठा समूह है। यह अपने अनुकूलनीय तंत्रों के माध्यम से उच्च स्तर की लवणता से सुरक्षित रहते हैं।
- मैंग्रोव तटीय क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं और ये पारिस्थितिक एवं आर्थिक मूल्य के मामले में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। ये समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के मध्य एक कड़ी (लिंक) का निर्माण करते हैं। मैंग्रोव वनस्पति तटरेखाओं की रक्षा करती है और विभिन्न प्रकार के स्थलीय जीवों को आवास भी प्रदान करती है।
एविसेनिया मरीना
- ‘एविसेनिया मरीना’ भारत में सभी मैंग्रोव संरचनाओं में पाई जाने वाली सबसे प्रमुख मैंग्रोव प्रजातियों में से एक है। यह एक नमक-स्रावित और असाधारण रूप से नमक-सहिष्णु मैंग्रोव प्रजाति है। यह 75% समुद्री जल में भी बेहतर तरीके से विकसित हो सकती है और 250% समुद्री जल को भी सहन करने में सक्षम है।
- यह दुर्लभ पौधों की प्रजातियों में से है, जो जड़ों में नमक के प्रवेश को बाहर करने की असाधारण क्षमता के अलावा पत्तियों में नमक ग्रंथियों के माध्यम से 40% नमक का उत्सर्जन कर सकती है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT)
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, पशु विज्ञान, पर्यावरण और उद्योग में इसके विस्तार और अनुप्रयोग के माध्यम से भारत में जैव प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को प्रोत्साहित करता है।
डी.बी.टी.-आई.एल.एस.
जीव विज्ञान संस्थान का जीवन विज्ञान के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता पूर्ण बहु-विषयक अनुसंधान करने का एक व्यापक दृष्टिकोण है। इसका लक्ष्य मानव स्वास्थ्य, कृषि एवं पर्यावरण का समग्र विकास व उन्नति करना है। संस्था का घोषित मिशन मानव समाज के उत्थान की दिशा में कार्य करना और भविष्य के भारत के लिये कुशल मानव संसाधन का सृजन करना है।
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अध्ययन का महत्त्व
- इससे संबंधित अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस बायोलॉजी के हालिया अंक में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन इसलिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादकता सीमित जल की उपलब्धता और मृदा व जल के लवणीकरण जैसे अजैविक दबाव कारकों के कारण प्रभावित होती है।
- शुष्क क्षेत्रों में फसल उत्पादन के लिये जल की उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है, जो विश्व की कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 40 प्रतिशत है। विश्व स्तर पर लवणता लगभग 900 मिलियन हेक्टेयर (भारत में अनुमानित 6.73 मिलियन हेक्टेयर) है और इससे लगभग 27 बिलियन अमरीकी डॉलर की वार्षिक क्षति होने का अनुमान है।
- अध्ययन में उत्पन्न जीनोमिक संसाधन शोधकर्ताओं के लिये तटीय क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण फसल प्रजातियों की सूखी और लवणता सहिष्णु किस्मों के विकास के लिये पहचाने गए जीन की क्षमता का अध्ययन करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। यह भारत के 7,500 किलोमीटर समुद्र तट और दो प्रमुख द्वीपों के लिये महत्त्वपूर्ण है।