प्रारंभिक परीक्षा के लिए - अट्टापडी अटुकोम्बु अवारा (बीन्स), अट्टापडी थुवारा (लाल चना), ओनाट्टुकरा एलु (तिल), कंथल्लूर-वट्टावदा वेलुथुल्ली (लहसुन), कोडुंगल्लूर पोट्टुवेलारी (स्नैप मेलन), अन्य नवीनतम जीआई टैग मुख्य परीक्षा के लिए : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 - बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषय |
संदर्भ
- हाल ही में, केरल के पांच कृषि उत्पादों को भौगोलिक संकेतक(जीआई टैग) प्रदान किया गया -
- अट्टापडी अटुकोम्बु अवारा (बीन्स)
- अट्टापडी थुवारा (लाल चना)
- ओनाट्टुकरा एलु (तिल)
- कंथल्लूर-वट्टावदा वेलुथुल्ली (लहसुन)
- कोडुंगल्लूर पोट्टुवेलारी (स्नैप मेलन)
- इन उत्पादों को, भौगोलिक क्षेत्र की कृषि-जलवायु परिस्थितियों द्वारा प्रदान की जाने वाली विशिष्ट विशेषताएं, इनके जीआई टैग प्राप्त करने का आधार हैं।
अट्टापडी अटुकोम्बु अवारा (बीन्स)
- बीन्स की इस प्रजाति की खेती केरल के पलक्कड़ जिले के अट्टापडी क्षेत्र में की जाती है।
- अन्य बीन्स की तुलना में, इसमें एंथोसायनिन की मात्रा अधिक होती है, जिसके कारण इसके तने और फलों का रंग बैंगनी हो जाता है।
- एंथोसायनिन अपने एंटीडायबिटिक गुणों के साथ हृदय रोग के खिलाफ भी उपयोगी होता है।
- अट्टापडी अटुकोम्बु अवारा में कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर भी पाया जाता है।
- इसमें पाई जाने वाली, उच्च फिनोल सामग्री इसे रोगों और कीटों से प्रतिरोधकता प्रदान करती है, जिससे यह जैविक खेती के लिए एक उपयुक्त फसल हो जाती है।
अट्टापडी थुवारा (लाल चना)
- अन्य लाल चनों के बीजों की तुलना में, अट्टापडी थुवारा के बीज बड़े होते हैं तथा इनका वजन भी अधिक होता है।
- अट्टापडी थुवारा का प्रयोग सब्जी और दाल के रूप में किया जाता है।
- इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे तत्व पाये जाते हैं।
ओनाट्टुकरा एलु (तिल)
- ओनाटुकारा एलू और इसका तेल अपने अनोखे स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है।
- ओनाटुकारा एलू में पाई जाने वाली उच्च एंटीऑक्सीडेंट सामग्री मुक्त कणों से प्रतिरक्षा प्रदान करती है, जो शरीर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं।
- इसमें पाई जाने वाली असंतृप्त वसा, इसे हृदय रोगियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी बनाती है।
कंथल्लूर-वट्टावदा वेलुथुल्ली (लहसुन)
- इसकी खेती, इडुक्की जिले में देवीकुलम ब्लॉक पंचायत के कंथलूर-वत्तावदा क्षेत्र में की जाती है।
- इस लहसुन में सल्फाइड, फ्लेवोनोइड्स और प्रोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती है।
- कंथल्लूर-वट्टावदा वेलुथुल्ली में एलिसिन भी पाया जाता है, जो माइक्रोबियल संक्रमण, रक्त शर्करा, कैंसर, कोलेस्ट्रॉल, हृदय रोगों और रक्त वाहिकाओं को नुकसान के खिलाफ प्रभावी होता है।
कोडुंगल्लूर पोट्टुवेलारी (स्नैप मेलन)
- इसकी खेती, कोडंगलूर और एर्नाकुलम के कुछ हिस्सों में की जाती है।
- इसे सबसे पहले त्रिशूर के कोडुंगल्लूर में उगाया गया था।
- इसकी त्वचा पर दिखाई देने वाली दरारों के कारण इसे पोट्टू (जिसका मलयालम में अर्थ होता है दरार) वेल्लारी कहा जाता है।
- कोडुंगल्लूर पोट्टुवेलारी में, विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फाइबर और वसा जैसे पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
जीआई टैग
- जीआई टैग मुख्य रूप से कृषि संबंधी, प्राकृतिक या विनिर्मित्त वस्तुओं के लिए प्रदान किया जाता है, जिनमें अनूठे गुण, ख्याति या इसके भौगोलिक उद्भव के कारण जुड़ी अन्य लक्षणगत विशेषताएं होती है।
- जीआई टैग एक प्रकार का बौद्धिक संपदा अधिकार(आईपीआर) होता है, जो आईपीआर के अन्य रूपों से भिन्न होता है, क्योंकि यह एक विशेष रूप से निर्धारित स्थान में समुदाय की विशिष्टता को दर्शाता है।
- वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन (WIPO) के अनुसार जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी उत्पाद को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है।
- जीआई टैग वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड द्वारा दिया जाता है।
- भारत में, जीआई टैग के पंजीकरण को ‘वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 द्वारा विनियमित किया जाता है।
- इसका पंजीकरण 10 वर्ष के लिए मान्य होता है, तथा 10 वर्ष बाद पंजीकरण का फिर से नवीनीकरण कराया जा सकता है।
जीआई टैग के लाभ
- यह भारत में भौगोलिक संकेतों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, दूसरों द्वारा पंजीकृत भौगोलिक संकेतों के अनधिकृत उपयोग को रोकता है।
- यह भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित/निर्मित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।