(प्रारंभिक परीक्षा : भूगोल; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।आपदा और आपदा प्रबंधन।)
संदर्भ
- हाल ही में, उत्तराखंड में नंदा देवी पर हिमनदों के पिघलने से उत्पन्न एक जल प्रलय के वजह से ऋषिगंगा (Rishiganga) नदी में बाढ़ आ गई औरदो पनबिजली परियोजनाओं, 2 मेगावाट की ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना तथा धौलीगंगा नदी (अलकनंदा की सहायक) पर 520 मेगावाट की तपोवन परियोजना, को क्षतिग्रस्त कर दिया।
- साथ ही इस बात का खतरा भी उत्पन्न हो गया कि अतिरिक्त पानी अलकनंदा नदी में मिलकर नीचे की ओर बसे गाँवों और पनबिजली परियोजनाओं के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है।
- वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद यह दूसरी बड़ी आपदा मानी जा रही है।
प्रमुख बिंदु
- पर्यावरण विशेषज्ञों ने ग्लेशियर (हिमनद) के पिघलने के लिये ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को ज़िम्मेदार ठहराया है।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियरों के स्थान छोड़ने और और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की वजह से पहाड़ी ढलानों की स्थिरता में कमी और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्र में वृद्धि होने का अनुमान है।
- इस बात की भी प्रबल संभावना है कि ग्लेशियर झीलों की संख्या और उनके क्षेत्र आने वाले दशकों में बढ़ते रहेंगे। खड़ी ढलान वाले और अस्थिर पहाड़ों के निकट नई झीलों के विकसित होने की संभावना है तथा झीलों में आने वाले प्रलय की संभावना भी बढ़ सकती है।
- ग्लेशियोलॉजी और हाइड्रोलॉजी विशषज्ञों के अनुसार इस तरह का हिमस्खलन एक "अत्यंत दुर्लभ घटना" थी।
- “सैटेलाइट और गूगल अर्थ की तस्वीरों के अनुसार इस क्षेत्र के पास कोई हिमाच्छादित झील नहीं दिख रही लेकिन इस बात की संभावना है कि इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के अन्दर पानी का एक बड़ा संग्रह हो सकता है, जिसकी वजह से यह घटना घटित हुई हो।
- ध्यातव्य है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अनियमित मौसम पैटर्न ( जैसे बर्फ़बारी, बारिश और सर्दियों का तुलनात्मक रूप से गर्म होना) बढ़ा है, जो बर्फ पिघलने का प्रमुख कारण हो सकता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार बर्फ का ‘थर्मल प्रोफाइल’ बढ़ रहा है, पहले यह -6 से -20℃ था जो अब -2℃ के आसपास हो गया है, जो ग्लेशियरों को पिघलने के लिये अधिक सुभेद्य बना रहा है।
नंदादेवी ग्लेशियर
- नंदादेवी, कंचनजंघा के बाद भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है। इसे भारत स्थित सबसे ऊँचा पर्वत भी कहते हैं, क्योंकि कंचनजंघा नेपाल के साथ लगी सीमा पर स्थित है।
- नंदादेवी ग्लेशियर/ हिमनद के ऊपर दक्षिण क्षेत्र को दक्किनी नंदादेवी ग्लेशियर और उत्तर क्षेत्र को उत्तरी नंदादेवी ग्लेशियर कहा जाता है।
- ये पूरी तरह बर्फ से ढका हुआ है और इसी के एक हिस्से के टूटने की वजह से जोशीमठ के करीब के इलाकों में बाढ़ आ गई थी।
- ग्लेशियरों के टूटने से बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है। दरअसल ग्लेशियर ठोस रूप में बर्फीला पानी होता है, जो पहाड़ की तरह जमा होता है। इसके टूटने से पानी का प्रवाह शुरू हो जाता है और बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है।
ग्लेशियर कैसे टूटते हैं?
- ग्लेशियर कई कारणों से टूट सकता है, जैसे प्राकृतिक क्षरण, पानी का दबाव बनना, बर्फीला तूफान या चट्टान खिसकने आदि की वजह से।
- इसके साथ ही बर्फीली सतह के नीचे भूकंप आने पर भी ग्लेशियर टूट सकता है। बर्फीले इलाकों में पानी के विस्थापन से भी ग्लेशियर टूट सकते हैं।
- वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड में ज़्यादातर ग्लेशियर अल्पाइन ग्लेशियर हैं।
- अल्पाइन ग्लेशियर स्नो एवलांच व टूटने के लिहाज़ से सबसे ज्यादा सुभेद्य होते हैं।
- ऐसे में अधिकठंड के मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली बारिश और बर्फबारी के चलते अल्पाइन ग्लेशियर कई लाख टन बर्फ का भार बढ़ जाता है। इसकी वजह से ग्लेशियर के खिसकने व टूटने का बड़ा खतरा रहता है।
क्या है एवलांच
- एवलांच हिमालयी ग्लेशियर को बड़े आकार का एक टुकड़ा होता है, जो किसी कारण ग्लेशियर से टूटकर नीचे की ओर लुढ़कने लगता है।
- ग्लेशियर का यह टुकड़ा अपनी राह में काफी तबाही मचाता है। नीचे उतरने के साथ एवलांच पिघलने लगता है और इसका पानी अपने साथ मिट्टी, गाद आदि को समेट लेता है।
- निचले क्षेत्रों में पहुँचते-पहुँचते इसकी तीव्रता बढ़ जाती है और यह काफी मारक हो जाता है।
हिमनद और उनकी निगरानी
- उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर में लगभग 200 ग्लेशियर हैं और सर्दियों के दौरान ग्लेशियरों की निगरानी मौसम की वजह से मुश्किल होती है क्योंकि सामन्यतः क्षेत्र बंद रहता है। इनकी निगरानी केवल मार्च से सितंबर के बीच की जाती है, उस समय मौसम अनुकूल होता है और ग्लेशियरों की निगरानी की जा सकती है।
- हिमालय में लगभग 8,800 हिमनद (ग्लेशियल) झीलें फैली हुई हैं और इनमें से 200 से अधिक झीलों को खतरनाक श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
- हाल के वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि हिमालय में उत्पन्न होने वाली बाढ़ बड़े पैमाने पर भूस्खलन के कारण होती है, जो अस्थाई रूप से पहाड़ी नदियों को रोक देती है।"
आगे की राह
- अन्य पर्वत श्रृंखलाओं की तुलना में हिमालय तेज़ी से गर्म हो रहा है, इसकी वजह यह है कि स्थानीय लोगों में घर बनाने के लिए पारंपरिक लकड़ी और पत्थर की चिनाई की बजाय कंक्रीट का इस्तेमाल बढ़ा है, इससे स्थानीय तापमान का स्तर बढ़ रहा है। स्थानीय स्तर पर प्रशासन को ध्यान देना चाहिये कि भवन निर्माण से जुड़ी गतिविधियों का विधिक और पर्यावरणीय रूप से विनियमन किया जा सके।
- सरकार केवल आपदा के बाद हरकत में आती है, लेकिन उससे पहले कुछ नहीं किया जाता। वर्ष 2004 की सुनामी के बाद तटीय क्षेत्रों में जैसी चेतावनी प्रणाली स्थापित की गई, हम हिमालय में भी वैसी ही प्रणाली स्थापित करने की बात लगातार की जा रही है, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। सरकार को यथाशीघ्र इन चेतावनी प्रणालियों के विकास से जुड़े प्रयास शुरू करने चाहिये।