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ग्लासगो सम्मेलन (कोप-26) - भारत द्वारा निर्धारित लक्ष्य

(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और मौसम परिवर्तन से संबंधित सामान्य मुद्दे)

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन: प्रश्न पत्र-3: विषय-संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)    

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कोप-26 का आयोजन  ग्लासगो (ब्रिटेन) में 31 अक्तूबर से 12 नवंबर, 2021 के मध्य हो रहा है। इस सम्मेलन में भारत ने जलवायु परिवर्तन पर चिंता व्यक्त करते हुए वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का महत्त्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया।

भारत द्वारा निर्धारित प्रमुख लक्ष्य

  • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावाट करना।
  • वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करना।
  • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना।
  • वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से भी कम करना।
  • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करना।

अप्रत्याशित निर्णय

  • भारत द्वारा वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने का लक्ष्य समूचे विश्व जगत के लिये चौकाने वाला निर्णय था, क्योंकि भारत ने इस सम्मेलन से पूर्व ऐसे किसी लक्ष्य को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया था। इसके साथ ही भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में भी इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये किसी प्रयास को अद्यतन नहीं किया था।
  • हाल ही में रोम में संपन्न हुए G-20 शिखर सम्मेलन में भी भारत ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया था। इस सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि ने स्पष्ट किया कि भारत शुद्ध कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये किसी वर्ष विशेष का निर्धारण नहीं कर सकता।
  • रोम में भारत के प्रतिनिधि ने यह भी स्पष्ट किया था कि ऐसे किसी लक्ष्य की प्राप्ति तब तक संभव नहीं है जब तक विकसित देश भारत के ऊर्जा संक्रमण के लिये वित्त एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये प्रतिबद्ध न हों।
  • रोम सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि ने कहा था कि भारत की कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को समाप्त कर गैर-जीवाश्म ईंधनों तक पहुँच तब तक संभव नहीं है जब तक उसे परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य नहीं बनाया जाता। उल्लेखनीय है कि भारत की परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता में चीन एवं अन्य देशों द्वारा बाधा उत्पन्न की जा रही है।

भारत द्वारा प्रयास

  • वर्ष 2014 में भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता मात्र 20 गीगावाट थी। इसे वर्ष 2022 तक बढ़ाकर 100 गीगावाट करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। अगस्त 2021 में भारत ने अपनी कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता 100 गीगावाट कर ली है। वर्तमान में भारत अक्षय ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा क्षमता के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर तथा सौर ऊर्जा में पाँचवें स्थान पर है। ग्लासगो सम्मेलन में वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावाट करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • वर्ष 2014 में भारत में सौर ऊर्जा की लागत 16 रुपए प्रति यूनिट थी, जो अब घटकर 2 रुपए प्रति यूनिट हो गई है। भारत द्वारा सौर ऊर्जा के साथ ही पवन ऊर्जा एवं बायो एनर्जी में भी भारी मात्रा में निवेश किया जा रहा है।
  • उत्सर्जन की तीव्रता को 35 प्रतिशत से कम करके 45 प्रतिशत करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। भारतीय उद्योग संस्थानों ने भी वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिये वे स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में भी निवेश कर रहे हैं।
  • भारतीय रेल ने वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है। इससे कार्बन उत्सर्जन में लगभग 60 मिलियन टन की कमी आएगी। 

चुनौतियाँ

  • विकसित देशों द्वारा जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में विकासशील देशों की सहायता हेतु अनुदान के रूप में प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। परंतु विकसित देशों द्वारा अपने इस दायित्व का निर्वहन नहीं किया जा रहा है। इससे जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा आ रही है।
  • जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कम लागत वाली एवं उन्नत प्रौद्योगिकी की भी आवश्यकता है, जिस पर विकसित देशों का एकाधिकार है। अतः विकसित देशों को अपनी तकनीकों को विश्व के अन्य देशों के साथ साझा करना चाहिये।      

प्रमुख योजनाएँ

  • प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्तम महाभियान (पीएम-कुसुम)- इस योजना को वित्त-वर्ष 2018-19 में प्रारंभ किया गया था। इसके अंतर्गत किसानों को सब्सिडी पर सोलर पैनल उपलब्ध कराए जाते हैं। इससे किसानों को जल एवं ऊर्जा सुरक्षा दोनों उपलब्ध होती है तथा वे अतिरिक्त विद्युत उत्पादन कर ग्रिडों को बेचकर अपनी आय में भी वृद्धि कर सकते हैं।
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना- इस योजना को वर्ष 2016 में प्रारंभ किया गया था। इसके अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं को रियायती दर पर एलपीजी गैस कनेक्शन उपलब्ध कराया जाता है, ताकि जैव-ईंधन पर उनकी निर्भरता को कम किया जा सके। इससे स्वास्थ्य समस्याओं, वायु प्रदूषण एवं वनों की कटाई में कमी आएगी। बजट 2021-22 में इस योजना के अंतर्गत 1 करोड़ और लाभार्थियों को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन- इस मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से अपने संबोधन में की। बजट 2021-22 में भी इस मिशन का उल्लेख किया गया था। उल्लेखनीय है कि हरित हाइड्रोजन को भविष्य का सबसे बेहतर ऊर्जा विकल्प माना जा रहा है। इसके उपयोग से जैव-ईंधन के प्रयोग में कमी आएगी तथा इनके आयात पर निर्भरता भी घटेगी। इसके साथ ही यह प्रदूषण में कमी लाने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।

आगे की राह  

  • वर्तमान संदर्भ में भारत वर्ष 2030 तक कार्बन की तीव्रता में 40 प्रतिशत की कमी करने की राह पर है। इसे बढ़ाकर 45 प्रतिशत करने के लिये भारत को परिवहन क्षेत्र, ऊर्जा आधारित औद्योगिक क्षेत्र विशेष रूप से सीमेंट, लोहा एवं इस्पात, रसायन आदि में उत्सर्जन को कम करने के उपाय करने होंगे।
  • भारत ने वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 अरब टन की कमी करने का लक्ष्य निर्धरित किया है। वर्तमान में भारत का कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन 2.88 गीगाटन है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत का कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन 4.48 गीगाटन होगा। अतः वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 1 टन की कटौती के लिये भारत को 22 प्रतिशत की कमी करनी होगी।         

निष्कर्ष  

भारत की ऐतिहासिक उत्सर्जन में भागीदारी बहुत ही कम है तथा यहाँ पर विश्व की कुल आबादी का लगभग छठा भाग निवास करता है। यहाँ बड़ी संख्या लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं। इन सभी चुनौतियों के बावजूद भारत द्वारा ग्लासगो सम्मेलन में निर्धारित लक्ष्य भारत की जलवायु चुनौतियों के प्रति गंभीरता को दर्शाते हैं। हालाँकि वित्तीय अवरोध एवं तकनीक की कमी के कारण भारत के लिये इन लक्ष्यों की प्राप्ति आसान नहीं होगी। इसके लिये आवश्यक है कि विकसित देश अपने दायित्वों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करें।

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