आस्ट्रेलिया एवं अमेरिका के शोधकर्ताओं ने ग्लियोब्लास्टोमा (Glioblastoma) का निदान (Diagnosis) करने के लिए एक रक्त आधारित परीक्षण किट विकसित की है। मस्तिष्क कैंसर को ही ग्लियोब्लास्टोमा कहते हैं।
इस उपकरण का परीक्षण मेलबर्न स्थित ओलिविया न्यूटन-जॉन कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के मस्तिष्क कैंसर अनुसंधान केंद्र द्वारा उपलब्ध कराए गए रक्त के नमूनों का उपयोग करके किया गया।
परीक्षण किट के बारे में
यह एक स्वचालित उपकरण है जो सर्जिकल बायोप्सी (शल्य चिकित्सा आधारित निदान) का एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत करता है।
इस तीव्र नैदानिक उपकरण का मुख्य भाग एक बायोचिप है जो विशेष प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कुछ बायोमार्कर्स (जैव संकेतक) जैसे सक्रिय एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर्स (EGFRs) का पता लगाता है।
EGFRs प्राय: ग्लियोब्लास्टोमा और अन्य कैंसरों में उच्च स्तर पर पाए जाते हैं और ये कोशिकाओं द्वारा स्रावित सूक्ष्म कणों में मौजूद होते हैं, जिन्हें बाह्यकोशिकीय पुटिकाएं (Extracellular vesicles) कहा जाता है।
यह उपकरण सक्रिय EGFRs का पता लगाने के लिए छोटे सिंथेटिक कणों का उपयोग करता है तथा वोल्टेज में बदलाव का कारण बनता है, जो ग्लियोब्लास्टोमा की उपस्थिति का संकेत देता है।
प्रत्येक परीक्षण के लिए केवल 100 ml रक्त की आवश्यकता होती है। यह एक घंटे के भीतर निदान में सक्षम है।
यह तकनीक ग्लियोब्लास्टोमा के लिए विकसित की गई है। हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तकनीक का प्रयोग अन्य बीमारियों में बायोमार्कर्स का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है, जिनमें अग्नाशय कैंसर, हृदय रोग, मनोभ्रंश एवं मिर्गी शामिल आदि हैं।
यह परीक्षण ग्लियोब्लास्टोमा के हर संभावित मामले का निदान नहीं कर सकता है तथा कैंसर के प्रकार, शरीर में इसके स्थान या कैंसर के चरण को भी निश्चित रूप से निर्धारित नहीं कर सकता है।
ऐसे में अधिक सटीक परीक्षण विकसित करने के लिए, शोधकर्ताओं को रोगियों के बड़े समूह का अध्ययन करने की आवश्यकता है ताकि उनके रक्त में अद्वितीय बायोमार्कर की पहचान की जा सके।
ग्लियोब्लास्टोमा
ग्लियोब्लास्टोमा एक प्रकार का कैंसर है जो मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी में कोशिकाओं की वृद्धि के रूप में शुरू होता है। यह तेजी से बढ़ता है और स्वस्थ ऊतकों पर आक्रमण करके उन्हें नष्ट कर सकता है।
यह एस्ट्रोसाइट्स नामक कोशिकाओं से बनता है जो मस्तिष्क को पोषक तत्व प्रदान करने के साथ उसे आकार देने का काम करती हैं।
ये कोशिकाएं न्यूरॉन्स को एक दूसरे से भी बचाती हैं और मस्तिष्क में एक स्थिर रासायनिक वातावरण बनाती हैं।
वर्तमान में ग्लियोब्लास्टोमा का कोई इलाज नहीं है। आमतौर पर निदान के बाद किसी रोगी के जीवित रहने की औसतन अवधि 15-18 महीने है।