संदर्भ
- प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा फ़रवरी 2024 में जारी 24 लोकतांत्रिक देशों के एक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रतिनिधि लोकतंत्र दुनिया भर में शासन की एक पसंदीदा प्रणाली बनी हुई है, लेकिन दुनिया के अधिकांश हिस्सों में चुनावों से पूर्व इसकी अपील में कमी आ रही है।
- गोथेनबर्ग स्थित वी-डेम द्वारा जारी 'डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2024' के अनुसार, भारत, जिसे 2018 में "चुनावी निरंकुशता" की स्थिति में डाउनग्रेड किया गया था, कई मेट्रिक्स पर और भी गिरावट आई है और "सबसे खराब निरंकुशों में से एक" के रूप में उभरा है।
- ईआईयू के लोकतंत्र सूचकांक के अनुसार, दुनिया की लगभग आधी आबादी(45.4%) किसी न किसी प्रकार के लोकतंत्र में रहती है , लेकिन केवल 7.8% ही "पूर्ण लोकतंत्र" में रहते हैं। विश्व की एक तिहाई से अधिक जनसंख्या (39.4%) सत्तावादी शासन के अधीन रहती है।

वैश्विक लोकतांत्रिक मंदी (Global Democratic Recession)
- लोकतंत्र के प्रति संतुष्टि में गिरावट का रुझान 2005 के बाद से खास तौर पर तेज रहा है, जो कुछ लोगों द्वारा 'वैश्विक लोकतांत्रिक मंदी' कहे जाने का प्रतीक है।
- लगभग सभी लोकतांत्रिक सर्वे एवं रिपोर्ट्स के परिणाम वैश्विक बदलाव को उजागर करते हैं, जो लोकतांत्रिक प्रणालियों में विश्वास में स्पष्ट कमी का संकेत देते हैं।
- प्यू रिसर्च सेंटर के वैश्विक सर्वेक्षण में, 77% उत्तरदाताओं ने प्रतिनिधि लोकतंत्र के बारे में आशावाद व्यक्त किया। लेकिन, वैकल्पिक शासन मॉडल (जैसे-अधिनायकवादी एवं सत्तावादी सरकारी मॉडल) के प्रति उनकी ग्रहणशीलता चिंताजनक है, जिससे लोकतंत्र के प्रति स्पष्ट मोहभंग दिखता है।
- सर्वे के अनुसार जब प्रतिनिधि लोकतंत्र की तुलना प्रत्यक्ष लोकतंत्र के 70% मजबूत समर्थन से की जाती है, इस व्यवस्था में अधिकारी निर्वाचित नेताओं को दरकिनार करते हुए सीधे प्रमुख निर्णयों को प्रभावित करते हैं। इससे 2017 के बाद से प्रतिनिधि लोकतंत्र के लिए कम होता समर्थन और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है।
- 2017 से 2023 तक इन लोकतांत्रिक देशों में एक खतरनाक परिवर्तन सामने आया है, जो विशेषज्ञों द्वारा शासन के प्रति बढ़ते झुकाव(58%) और सत्तावादी सरकारी मॉडल (26%) की बढ़ती स्वीकार्यता द्वारा चिह्नित है। इस बदलाव के पीछे तर्क इस धारणा में निहित है कि लोकतंत्र में चर्चा और आम सहमति बनाने की आवश्यकता के कारण देरी होती है, जबकि केंद्रित शक्ति त्वरित निर्णय लेने और त्वरित आर्थिक विकास की सुविधा प्रदान करती है।
- रिपोर्ट के अनुसार, कम आय और कम शिक्षा वाले देशों के उत्तरदाता ऐसे 'मजबूत' नेताओं का समर्थन करते हैं, जो अधिनायकवादी एवं अत्यधिक केंद्रीकृत सत्ता मॉडल का पालन करते है। खासकर मध्यम आय वाले देशों में एक उल्लेखनीय वर्ग (15%) सैन्य शासन का भी समर्थन करता है।
- जाहिर है, ऐसी प्राथमिकताएँ विश्व स्तर पर शासन की उभरती धारणाओं को आकार देने वाले कारकों की जटिल परस्पर क्रिया पर प्रकाश डालती हैं, और वैश्विक लोकतांत्रिक मंदी की ओर इशारा करती है।

भारत में लोकतंत्र की स्थिति:-
- वी-डेम लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स "लिबरल कंपोनेंट इंडेक्स और इलेक्टोरल डेमोक्रेसी इंडेक्स” में शामिल 71 संकेतकों के आधार पर लोकतंत्र के उदारवादी और चुनावी दोनों पहलुओं को दर्शाता है।" भारत इस मामले में .28 के स्कोर के साथ 104वें स्थान पर है और पिछली बार की तुलना में यह और भी खराब हो गया है। संदर्भ के लिए पाकिस्तान 119वें स्थान पर है और उसका स्कोर .21 है।
- इकोनामिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की ओर से विश्व में लोकतंत्र की स्थिति पर डेमोक्रेसी इंडेक्स 2023 रिपोर्ट जारी की गई है। सूचकांक में भारत पिछले वर्ष के मुकाबले पांच अंकों के सुधार के साथ 41वें स्थान पर पहुंच गया है। वर्ष 2022 में इसका स्थान 46वां था।
- प्यू सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 2017 में, 44% भारतीयों ने प्रतिनिधि लोकतंत्र का समर्थन किया था, जो 2023 में घटकर 36% हो गया है। इसके विपरीत, महत्वपूर्ण अधिकार वाले एक शक्तिशाली नेता के प्रति झुकाव 2017 में 55% से बढ़कर 2023 में 67% हो गया है।
- सबसे महत्वपूर्ण बदलाव एक सत्तावादी नेता द्वारा सैन्य शासन या शासन के प्रति भारतीयों की अत्यधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया में स्पष्ट है, जिसमें आश्चर्यजनक रूप से 85% लोग इसे पसंद करते हैं।
- वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था आरएसएफ द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार,विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 प्रकाशित किया गया था। 180 देशों के इस सूचकांक में 36.62 अंक के साथ भारत 161वें स्थान पर है, वर्ष 2022 में भारत की रैंक 150 थी।
- लोकतंत्र की निगरानी करने वाले संगठन समकालीन भारत को "संकर शासन" के रूप में चित्रित करते हैं, जिसमें "स्वतंत्र से लेकर आंशिक रूप से मुक्त" से लेकर "चुनावी निरंकुशता" तक शामिल है, और यहां तक कि इसे "त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र" भी कहा जाता है।
- गोथेनबर्ग स्थित वी-डेम इंस्टीट्यूट की हालिया डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2024 ने 2018 में अपने मूल्यांकन की तुलना में कई मैट्रिक्स में भारत को डाउनग्रेड किया है, जो इन धारणाओं की पुष्टि करता है।
मजबूत लोकतंत्र की विशेषताएं-
- जन सहभागिता
- स्वतंत्रता और समानता
- शिक्षित और जागरूक जनता
- शासन की जवाबदेहिता
- पारदर्शिता
- किसी भी लोकतंत्र के वास्तविक रूप में कार्य करने के लिए शासन में इन मूलभूत विशेषताओं को शामिल करना अनिवार्य है, न कि केवल एक लोकतंत्र के रूप में लेबल किए जाने के लिए।
वैश्विक लोकतांत्रिक मंदी के मुख्य कारण:- अगर लोकतंत्र में भरोसा कम हो रहा है, तो इसका कारण यह है कि लोकतांत्रिक संस्थाएँ हमारे दौर के कुछ बड़े संकटों, आर्थिक मंदी से लेकर ग्लोबल वार्मिंग के खतरे तक, का समाधान करने में विफल रही हैं। निम्नलिखित कारकों के द्वारा इसे समझा जा सकता है:-
- अधिनायकवादी मूल्यों का अत्यधिक प्रचार
- लोकलुभावनवाद की नीति
- आर्थिक असमानता और सामाजिक असंतोष में बढ़ोतरी
- ध्रुवीकरण, गलत सूचना प्रसार
- न्यायिक स्वतंत्रता का सीमित होना
- वैश्विक युद्धों एवं संघर्षो में वृद्धि
- covid के बाद बदलता वैश्विक परिदृश्य
- भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी के कारण घटता विश्वास
- चुनावी संदेह एवं विदेशी दखल अंदाजी
- नागरिक स्वतंत्रता उल्लंघन के मुद्दे
- पिछड़े देशों में सैन्य तख्तापलट की प्रवृत्ति
आगे की राह:-
- भ्रष्टाचार, घटते विश्वास, बेरोजगारी, अक्षमता, चुनावी संदेह, नागरिक स्वतंत्रता के उल्लंघन और आर्थिक असमानताओं के कारण मौजूदा मोहभंग के बावजूद, लोकतांत्रिक नींव को मजबूत करना सर्वोपरि है।
- एक मजबूत 'नागरिक सौदेबाजी प्रणाली' लोकतंत्र को फलने-फूलने में मदद कर सकती है।
- शासन को राजनीतिक ध्रुवीकरण से निपटने और आर्थिक असमानता, सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय स्थिरता जैसी विविध सामाजिक आवश्यकताओं को संबोधित करते समय समावेशिता और एकता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- आलोचनात्मक सोच, मीडिया साक्षरता और संघर्ष समाधान प्रशिक्षण में निवेश के साथ शिक्षा को बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
- संविधान के अध्ययन को पाठ्यक्रम में एकीकृत करने से परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सकता है।
- संवाद और बातचीत को बढ़ावा देने से लोकतंत्र की नींव मजबूत होती है।
निष्कर्ष
लोकतंत्र में विश्वास को बढ़ावा देना एक सतत और सहयोगात्मक प्रयास है जो नागरिकों और सरकारों से अटूट प्रतिबद्धता की मांग करता है। यह एक समावेशी परिवेश बनाने के इर्द-गिर्द घूमता है जहां हर किसी को लगता है कि उनकी आवाज़ को स्वीकार किया जाता है और सक्रिय रूप से सुना जाता है, और उनकी चिंताओं का समाधान किया जाता है। यदि हम अगले कुछ वर्षों में लोकतंत्र में जनता के विश्वास को फिर से मजबूत कर सके तो इस बढ़ती वैश्विक लोकतांत्रिक मंदी को रोका जा सकता है।