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ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट

(प्रारम्भिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 3: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।)

संदर्भ 

  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ (Summit of the Future) के दौरान सदस्य देशों ने ‘ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट’ (GDC) को अपनाया।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी तरह का पहला साधन है जो डिजिटल प्रौद्योगिकियों की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करता है। 

ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट के बारे में 

  • GDC संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू की गई एक पहल है जिसका उद्देश्य डिजिटल सहयोग एवं शासन के लिए एक साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। 
  • GDC क़ानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है बल्कि यह सुरक्षित, भरोसेमंद एवं टिकाऊ डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए एक कूटनीतिक साधन है। 
    • यह सरकारों, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • GDC इस विचार पर आधारित है कि डिजिटल तकनीकें सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को सक्षम कर संभावित लाभ प्रदान करने के साथ ही गंभीर चुनौतियाँ भी उत्पन्न कर रही हैं।

कार्यप्रणाली 

  • GDC अंतर्राष्ट्रीय कानून, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और संयुक्त राष्ट्र 2030 एजेंडा के मानदंडों के आधार पर डाटा और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के शासन में वैश्विक सहयोग का प्रस्ताव करता है।
  • GDC के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने दो पैनल स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई है – 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक पैनल 
    • AI शासन पर वैश्विक संवाद के लिए पैनल

GDC के संभावित लाभ

  • डिजिटल समावेशन को बढ़ावा : इसका उद्देश्य डिजिटल अंतराल को समाप्त करने के साथ ही हाशिए पर स्थित समुदायों की तकनीक तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
    • डिजिटल डिवाइड को संबोधित करने के लिए GDC ने "डिजिटल पब्लिक गुड्स" का प्रस्ताव रखा है। 
    • इसमें ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर, ओपन डाटा और ओपन AI मॉडल के साथ ही गोपनीयता व सर्वोत्तम पद्धतियों का पालन भी शामिल होगा।
  • वैश्विक सहयोग को बढ़ाना : यह देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के साथ ही डिजिटल गवर्नेंस में ज्ञान साझा करने तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को सुविधाजनक बनाता है।
  • नैतिक मानकों की स्थापना : यह गोपनीयता और डाटा सुरक्षा से संबंधित चिंताओं को संबोधित करते हुए नैतिक प्रौद्योगिकी उपयोग के लिए दिशानिर्देश विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • साइबर सुरक्षा चुनौतियों का समाधान : यह वैश्विक साइबर सुरक्षा लचीलेपन में सुधार के लिए रूपरेखा तैयार करता है।
  • नवाचार को प्रोत्साहित करना : साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर यह डिजिटल प्रौद्योगिकियों में नवाचार एवं निवेश को प्रोत्साहित करता है।
  • सतत विकास को बढ़ावा देना : GDC डिजिटल पहलों को SDG के साथ जोड़ता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति होती है।
  • जवाबदेही पर बल : देशों को सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध होने के लिए प्रोत्साहित कर यह डिजिटल शासन में जवाबदेही को बढ़ाता है।

GDC में विद्यमान कमियाँ 

  • बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं का अभाव : GDC मुख्य रूप से लागू करने योग्य प्रतिबद्धताओं के बजाय दिशा-निर्देश प्रदान करता है। 
  • डिजिटल विभाजन : GDC में विकसित और विकासशील देशों के बीच डिजिटल पहुँच एवं साक्षरता में महत्वपूर्ण असमानताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया है।
    • उदाहरण के लिए, कई अफ्रीकी देशों में इंटरनेट तक पहुँच सीमित है जिससे वैश्विक डिजिटल पहलों में इन देशों की भागीदारी में बाधा आ सकती है।
  • गोपनीयता और डाटा सुरक्षा : गोपनीयता पर GDC के प्रावधान अस्पष्ट होने के कारण इसके प्रभावी क्रियान्वयन में चुनौती आ सकती है।
    • उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ का सामान्य डाटा संरक्षण विनियमन (GDPR) एक मजबूत मानक निर्धारित करता है, लेकिन कई देशों में समान मजबूत गोपनीयता कानूनों का अभाव है, जिससे वैश्विक स्तर पर असंगत सुरक्षा होती है।
  • विनियामक चुनौतियाँ : विभिन्न देशों में अलग-अलग नियामक ढाँचे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को जटिल बना सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए,  AI को विनियमित करने का दृष्टिकोण व्यापक रूप से भिन्न है, कुछ देश इसे अपनाते हैं जबकि अन्य सख्त प्रतिबंध लगाते हैं, जिससे आम सहमति बनाना मुश्किल हो जाता है।
  • हाशिये पर पड़े समूहों का बहिष्कार : GDC हाशिये पर पड़ी आबादी, जैसे महिलाओं, विकलांग व्यक्तियों और स्वदेशी समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं को अनदेखा करता है।
  • कार्यान्वयन संसाधन का अभाव : देशों के पास समझौते के लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए अपर्याप्त संसाधन या समर्थन हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए, कई विकासशील देश डिजिटल बुनियादी ढांचे के लिए बजट आवंटित करने के लिए संघर्ष करते हैं।
  • तकनीकी तटस्थता : समझौता AI और निगरानी जैसी कुछ तकनीकों के संभावित नुकसानों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करता है।

आगे की राह 

  • ठोस शासन ढाँचा विकास पर बल : AI गवर्नेंस और डाटा प्रबंधन के लिए विशिष्ट, कार्रवाई योग्य दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए। 
  • क्षेत्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाने पर बल  : साझा डिजिटल शासन चुनौतियों पर सहयोग करने के लिए देशों के लिए क्षेत्रीय मंच स्थापित किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, अफ्रीकी संघ की डिजिटल परिवर्तन रणनीति GDC की क्षेत्रीय पहलों के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है।
  • डाटा संप्रभुता को बढ़ावा : एक संतुलित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो अंतर्राष्ट्रीय डाटा प्रवाह को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रीय डाटा संप्रभुता का सम्मान करता हो।
    • GDC,  EU-U.S. डाटा गोपनीयता ढाँचा जैसे द्विपक्षीय समझौतों की वकालत कर सकता है जो सीमा पार डाटा हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करते हुए डाटा कानूनों के लिए पारस्परिक सम्मान सुनिश्चित करता है।
  • क्षमता निर्माण पहल को बढ़ावा : डिजिटल साक्षरता और कौशल को बढ़ाने के लिए विशेषकर विकासशील देशों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश किया जाना चाहिए ।
  • निगरानी और जवाबदेही तंत्र पर बल : GDC के सिद्धांतों को लागू करने में सदस्य राज्यों के बीच प्रगति और जवाबदेही की निगरानी के लिए ढाँचे स्थापित किए जाने चाहिए।  
  • सभी क्षेत्रों के हितधारकों से समन्वय : सरकारों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के बीच समावेशी संवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि विविध दृष्टिकोणों पर विचार सुनिश्चित हो सके।

संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएन)

  • स्थापना : द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1945 में गठन। 
  • उद्देश्य : अंतर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखना, मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करना और सहयोग को बढ़ावा देना। 
  • मुख्यालय : न्यूयॉर्क शहर में (संयुक्त राज्य अमेरिका)। 
  • सदस्य : 193 सदस्य देश। 

6 मुख्य अंग

  • महासभा 
  • सुरक्षा परिषद 
  • आर्थिक और सामाजिक परिषद 
  • ट्रस्टीशिप काउंसिल (निष्क्रिय)
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय 
  • सचिवालय 
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