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वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक, 2024

(प्रारंभिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)

संदर्भ 

  • वैश्विक संरक्षण प्रयासों का व्यवस्थित रूप से आकलन करने के लिए प्रकृति संरक्षण सूचकांक (Nature Conservation Index : NCI) को  24 अक्टूबर, 2024 को पहली बार जारी किया गया।
  • विकास : इजराइल के नेगेव स्थित बेन-गुरियन विश्वविद्यालय के गोल्डमैन सोनेनफेल्ड स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज (Goldman Sonnenfeldt School of Sustainability and Climate Change) और जैव विविधता डेटा पर केंद्रित एक गैर-लाभकारी संगठन BioDB.com द्वारा।
  • सूचकांक में भारत को किरिबाती (180), तुर्की (179), इराक (178) और माइक्रोनेशिया (177) के साथ पाँच सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक माना गया है।

NCI के बारे में 

  • कुल 4 मूल्यांकन मानदंड :  
    • भूमि प्रबंधन
    • जैव विविधता के लिए खतरे
    • क्षमता और शासन
    • भविष्य के रुझान।
  • उद्देश्य : डाटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदान करना जो सरकारों और संगठनों को संरक्षण चुनौतियों की पहचान करने, नीतियों में सुधार करने एवं दीर्घकालिक रूप से जैव विविधता संरक्षण को बढ़ाने में मदद करती है।

भारत की स्थिति 

  • रैंक : भारत 180 देशों में से 176वें स्थान पर है। 
  • स्कोर : 100 में से 45.5 अंक के साथ भारत सबसे निचले रैंक वाले देशों में शामिल है। 

भारत संबंधी चुनौतियाँ

  • अकुशल भूमि प्रबंधन : भारत की 53% भूमि का उपयोग शहरी, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए किया जा रहा है, जिसके कारण असंधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा मिलने से  जैव विविधता की क्षति हो रही है।
  • जैव विविधता के लिए खतरा : देश में कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता मृदा प्रदूषण  को बढ़ावा दे रहा है।  ऐसे में मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • समुद्री संरक्षण : भारत के केवल 0.2% राष्ट्रीय जलमार्ग संरक्षित हैं और इनमें से कोई भी अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic zone : EEZ) इसमें शामिल नहीं है। यह समुद्री जैव विविधता संरक्षण में गंभीर कमी को दर्शाता है।
    • गौरतलब है कि भारत के कुल स्थलीय क्षेत्र का 7.5% संरक्षित है। 
  • आवास की हानि : वर्ष 2001 और 2019 के मध्य, भारत  में वनों की कटाई के कारण लगभग 23,300 वर्ग किमी. वृक्ष क्षेत्र का नुकसान हुआ जिससे वन्यजीवों के आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • जनसंख्या भार : भारत दुनिया के सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाले देशों में से एक है , जहां 1970 के दशक के बाद से जनसंख्या दोगुनी हो चुकी है। 
    • तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण भारत के पारिस्थितिक संसाधन निरंतर खतरे में हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन प्रभाव : अल्पाइन क्षेत्रों और प्रवाल भित्तियों जैसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों को जलवायु परिवर्तन से खतरा है, जिससे मौजूदा जैव विविधता संबंधी समस्याएं और भी गंभीर हो रही हैं।
  • जैव विविधता संबंधी चिंताएँ :  40% समुद्री प्रजातियाँ और 65% स्थलीय प्रजातियाँ के संरक्षित क्षेत्रों में मौजूद होने के बावज़ूद उनकी जनसंख्या में चिंताजनक गिरावट आ रही है। 
    • सूचकांक  के अनुसार 67.5% समुद्री प्रजातियाँ और 46.9% स्थलीय प्रजातियाँ संख्या में महत्वपूर्ण गिरावट का अनुभव कर रही हैं।
  • सतत विकास लक्ष्य  : भारत को सतत विकास लक्ष्य 14 (जल के नीचे जीवन) और 15 (भूमि पर जीवन) को पूरा करने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

अनुशंसाएँ

  • सफल संरक्षण रणनीतियों को लागू करने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यक है। 
    • इसमें सतत विकास का समर्थन करने के लिए प्रभावी कानून पारित करना और दबावपूर्ण चुनौतियों से निपटने के लिए पर्यावरण पहलों के लिए पर्याप्त धन जुटाना शामिल है।
  • उल्लिखित गंभीर चुनौतियों के बावजूद, NCI इस बात पर बल देता है कि प्रतिबद्ध दृष्टिकोण के साथ, भारत अपने संरक्षण संबंधी मुद्दों से निपट सकता है और अधिक टिकाऊ एवं पारिस्थितिकी अनुकूल भविष्य की ओर बढ़ सकता है।
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