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वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण एवं भारत

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण में भारत की हिस्सेदारी पांचवें हिस्से के बराबर है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष 

  • भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5.8 मिलियन टन (MT) प्लास्टिक का दहन होता है और 3.5 MT प्लास्टिक मलबे के रूप में पर्यावरण (भूमि, वायु, जल) में उत्सर्जित हो जाता है। 
  • वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण में भारत की हिस्सेदारी 9.3 MT वार्षिक है, जो इस सूची में सम्मिलित नाइजीरिया (3.5 MT), इंडोनेशिया (3.4 MT) और चीन (2.8MT) की तुलना में काफी अधिक होने के साथ-साथ विगत अनुमानों से अधिक है।
  • अध्ययन के अनुसार, कचरे को खुले में जलाने की प्रथा व्यापक रूप से प्रचलित है, जो विश्व भर में कुल प्लास्टिक प्रदूषण में 57% के लिए जिम्मेदार है।

प्रदूषण की दर के अनुसार देशों का विभाजन

  • इस अध्ययन में एक ऐसी प्रवृत्ति देखी गई है कि प्लास्टिक प्रदूषण में भी वैश्विक उत्तर एवं वैश्विक दक्षिण का विभाजन उल्लेखनीय है। 
    • प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन दक्षिणी एशिया, उप-सहारा अफ्रीका एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में सर्वाधिक है।
  • वस्तुत: दुनिया के प्लास्टिक प्रदूषण के लगभग 69% के लिए 20 देश जिम्मेदार हैं। इनमें से कोई भी उच्च आय वाला देश नहीं है (विश्व बैंक के अनुसार जिनकी प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय $13,846 या उससे अधिक है)। 
  • उच्च आय वाले देशों में दक्षिण के देशों की तुलना में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन दर अधिक है फिर भी एक भी उच्च आय वाले देश शीर्ष 90 प्रदूषकों में शामिल नहीं हैं, क्योंकि अधिकांश देशों में 100% संग्रह कवरेज और नियंत्रित निपटान की व्यवस्था है।
  • वैश्विक दक्षिण में प्लास्टिक प्रदूषण का प्रमुख रूप खुले में दहन है, हालाँकि, उप-सहारा अफ्रीका में अनियंत्रित मलबा प्रदूषण का बड़ा स्रोत है। वैश्विक उत्तर में प्लास्टिक प्रदूषण में अनियंत्रित मलबे से प्रदूषण होता है। 
    • यह अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के अपर्याप्त होने या पूर्णतया अनुपस्थित होने और इसके लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की कमी का लक्षण है।

अप्रबंधित अपशिष्ट की समस्या

  • लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अध्ययन में अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष लगभग 251 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। 
  • इस कचरे का लगभग पाँचवाँ हिस्सा पर्यावरण में उत्सर्जित हो जाता है, जिसका प्रबंधन नहीं किया जाता है।
  • अप्रबंधित अपशिष्ट में से लगभग 43% बिना दहन के मलबे के रूप में है और शेष या तो कूड़ा स्थलों पर या स्थानीय स्तर पर जला दिया जाता है।

प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव 

  • प्लास्टिक प्रदूषण पारिस्थितिक तंत्र, जैव-विविधता, जलवायु एवं मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव के साथ एक ग्रहीय संकट पैदा करता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण आवासों एवं प्राकृतिक प्रक्रियाओं को परिवर्तित कर सकता है और पारितंत्र की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की क्षमता को कम कर सकता है।
  • यह लोगों की आजीविका, खाद्य उत्पादन क्षमताओं एवं सामाजिक कल्याण को सीधे प्रभावित कर सकता है। 
  • समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मछली पकड़ने के उपकरण जैसी वस्तुओं में इनके उलझने से समुद्री स्तनधारियों की मौत हो सकती है और इसको निगलने से भी मौत हो सकती है। 

इसे भी जानिए!

‘प्रबंधित’ कचरे का अर्थ है कि नगर निगम निकायों द्वारा इन्हें एकत्रित किया जाता है और या तो इसे रीसाइकिल किया जाता है या लैंडफिल में भेज दिया जाता है। ‘अप्रबंधित’ कचरे का अर्थ है प्लास्टिक को खुले में अनियंत्रित रूप से जलाया जाना, जिससे कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे सूक्ष्म कण एवं ज़हरीली गैसें उत्सर्हित होती है, जो हृदय रोग, श्वसन संबंधी विकार, कैंसर और तंत्रिका संबंधी समस्याओं को जन्म देती हैं। इसमें बिना जले मलबे के रूप में पर्यावरण में पहुंचने वाला प्लास्टिक भी शामिल है जो पहाड़ से लेकर महासागर तक पृथ्वी पर हर संभावित स्थान को प्रदूषित करता है।

वैश्विक स्तर पर समाधान संबंधी चिंताए 

  • एक तरफ जीवाश्म ईंधन के उत्पादक देश एवं उद्योग समूह प्लास्टिक प्रदूषण को ‘अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या’ के रूप में देखते हैं और उत्पादन पर अंकुश की बजाय प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। दूसरी तरफ यूरोपीय संघ एवं अफ्रीकी देश एकल उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना चाहते हैं और उत्पादन पर अंकुश लगाना चाहते हैं।
  • अपशिष्ट प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्थानीय स्व-सरकारी निकायों का अधिकांश राज्यों में निष्क्रिय होना एक बड़ी समस्या है
  • ‘हाई एम्बिशन कोएलिशन’ के अनुसार, प्लास्टिक कचरे को इस तरह ‘प्रबंधित’ करना संभव नहीं है कि इससे बिल्कुल भी प्रदूषण न हो क्योंकि प्लास्टिक कचरे का उत्सर्जन अत्यधिक होता है जबकि रीसाइक्लिंग का आकार एवं जटिलता अत्यधिक है। 
  • साइंस एडवांसेज नामक जर्नल के एक अध्ययन में प्लास्टिक उत्पादन में वृद्धि एवं प्लास्टिक प्रदूषण के बीच एक प्रत्यक्ष व रैखिक संबंध पाया गया है। इसका अर्थ है कि उत्पादन में 1% की वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रदूषण में 1% की वृद्धि हुई। 

प्लास्टिक प्रदूषण नियंत्रण के लिए सम्मिलित प्रयास 

  • वर्ष 2014 में सरकार ने भारत को स्वच्छ एवं खुले में शौच और कचरा मुक्त बनाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान (स्वच्छ भारत मिशन) शुरू किया। इस मिशन में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के प्रावधान शामिल हैं, जैसे- स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण को बढ़ावा देना और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2021 के माध्यम से 1 जुलाई, 2022 से पॉलीस्टाइनिन और विस्तारित पॉलीस्टाइनिन सहित एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री एवं उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • वैश्विक पेय पदार्थ निर्मात कंपनी कोका-कोला टिकाऊ पैकेजिंग एवं प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।
  • अमेज़न ने फ्रस्ट्रेशन-फ्री पैकेजिंग कार्यक्रम शुरू किया है, जो अत्यधिक पैकेजिंग को कम करने और ग्राहकों के लिए पैकेजों को आसानी से खोलने व रीसाइकिल को आसान बनाने पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य अनावश्यक पैकेजिंग के रूप में अत्यधिक प्लास्टिक रैप या टेप के प्रयोग को समाप्त करना है।

क्या किया जाना चाहिए 

  • प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए टिकाऊ पैकेजिंग, कॉर्पोरेट उत्तरदायित्त्व एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। 
  • रीसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करके, जागरूकता बढ़ाकर, टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देकर और वैश्विक भागीदारी का निर्माण करके भारत प्लास्टिक प्रदूषण से निपट सकता है।
  • अभिनव समाधान अपनाकर और जिम्मेदार उपभोग एवं निपटान को बढ़ावा देकर, कंपनियाँ अधिक टिकाऊ व चक्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं जिससे भारत के लिए एक हरित भविष्य को बढ़ावा मिलता है।
  • नागरिकों को भी अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा और कचरा पृथक्करण एवं प्रबंधन में मदद करना होगा। 

हाई एम्बिशन कोएलिशन

  • इसकी शुरुआत जनवरी 2021 में पेरिस में ‘वन प्लैनेट समिट’ के दौरान की गयी थी इस गठबंधन का उद्देश्य वर्ष 2030 तक दुनिया की कम-से-कम 30% भूमि एवं महासागर के संरक्षण  के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते को बढ़ावा देना है। 
  • यह 70 से अधिक देशों का एक समूह है और 30x30 की रक्षा के लिए वैश्विक लक्ष्य को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर रहा है। भारत भी इस गठबंधन में शामिल है।
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