(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास-सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्यन, प्रश्नपत्र-2: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश; गरीबी एवं भूख से सम्बंधित विषय)
पृष्ठभूमि
- हाल ही में, ‘खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट, 2020’ जारी की गई है। यह रिपोर्ट, ग्लोबल नेटवर्क अगेंस्ट फूड क्राइसिस द्वारा तैयार की जाती है, जबकि विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), यूरोपीय संघ और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की सहायता से फूड सिक्योरिटी इन्फॉर्मेशन नेटवर्क (FSIN) द्वारा जारी की जाती है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण विश्व के कुछ हिस्सों को गम्भीर या चरम भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है। सयुंक्त राष्ट्र के मुताबिक, भुखमरी अब एक महामारी बनने की कगार पर पहुँच चुकी है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- रिपोर्ट के अनुसार, अगर खाद्य सुरक्षा की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2020 में 26.5 करोड़ लोगों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ेगा, उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में यह आँकड़ा 13 करोड़ लोगों तक ही सीमित था।
- गम्भीरता की दृष्टि से वर्ष 2019 में आर्थिक संकट का सर्वाधिक सामना निम्नलिखित 10 देशों को करना पड़ा- यमन, अफगानिस्तान, कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य, वेनेज़ुएला, सूडान, दक्षिण सूडान, इथोपिया, सीरिया, नाइजीरिया और हैती।
- इन देशों में खाद्य संकट के कारणों में मुख्यतः हिंसक संघर्ष, चरम मौसमी घटनाएँ तथा आर्थिक उथल-पुथल शामिल हैं। साथ ही, फसलों पर मरुस्थलीय टिड्डियों के हमलों ने भी इसे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- उपर्युक्त 10 देशों में 8 करोड़ से अधिक लोग अस्थाई रूप से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे जो कि खाद्य असुरक्षा से पीड़ित कुल लोगों की संख्या का 65 प्रतिशत हिस्सा हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, किसी अन्य क्षेत्र के देशों की तुलना में अस्थाई खाद्य असुरक्षा का सर्वाधिक प्रभाव अफ्रीकी देशों पर हुआ है।
- रिपोर्ट के एक अनुमान के मुताबिक, कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों के कारण वैश्विक स्तर पर खाद्य असुरक्षा में वृद्धि होगी।
- उल्लेखनीय है कि इस रिपोर्ट में जिन देशों का उल्लेख किया गया है वहाँ की स्वास्थ्य प्रणाली या आर्थिक सुरक्षा का ताना-बाना कोविड-19 महामारी जैसी विकराल चुनौती से निपटने में बेहद संवेदनशील है, इसलिये इन देशों को दी जाने वाली सहायता का स्तर बढाए जाने की आवश्यकता है।
- इन देशों में, दक्षिण सूडान की 60 प्रतिशत से भी अधिक आबादी ने वर्ष 2019 में खाद्य संकट का सामना किया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन तथा आर्थिक मंदी ने इस खाद्य संकट को और गहरा बना दिया है। साथ ही, दिहाड़ी- कामगारों पर इसका विशेष रूप से प्रभाव पड़ा है।
- रिपोर्ट में अत्यावश्यक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को किसी भी परिस्थिति में जारी रखने पर बल दिया गया है।
क्या है खाद्य असुरक्षा?
- जनसामान्य के लिये खाद्य पदार्थों की उचित आपूर्ति न होना; साथ ही, खाद्यान्नों तक लोगों की भौतिक एवं आर्थिक पहुँच न होना।
विश्व खाद्य कार्यक्रम
- विश्व खाद्य कार्यक्रम खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित सयुंक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो वैश्विक स्तर पर आपातकालीन स्थितियों में ज़रूरतमंदो को खाद्य सामग्री की आपूर्ति करती है, विशेषकर गृहयुद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के समय में।
- इसकी शुरुआत वर्ष 1963 में हुई थी। यह विश्व का सर्वाधिक व्यापक खाद्य सहायता संगठन है। खाद्य सहायता उपलब्ध कराने के साथ-साथ यह सामाजिक-आर्थिक विकास परियोजनाओं में भी सहायता प्रदान करता है।
- यह संगठन एक कार्यकारी बोर्ड द्वारा शासित होता है, जिसमें सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
- विभिन्न देशों की सरकारों, निगमों और निजी दाताओं के स्वैच्छिक दान द्वारा इस कार्यक्रम का वित्तपोषण होता है।
प्रमुख उद्देश्य
- खाद्य एवं पोषाहार सुरक्षा के साथ-साथ भोजन की पौष्टिकता में सुधार लाना।
- खाद्य आधारित सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को सशक्त करना।
- खाद्य सुरक्षा का मानचित्रण एवं विश्लेषण करना।
- जीवन के प्रथम 1,000 दिनों के दौरान पोषाहार सम्बंधी समस्याओं को दूर करना।
- किशोरियों, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और वृद्धजनों की पोषाहार आवश्यकताओं को पूरा करना।
- वर्ष 2030 तक ‘शून्य भुखमरी’ (Zero Hunger) के लक्ष्य को प्राप्त करना।
भविष्य की राह
- खाद्य सुरक्षा, पोषण व कृषि आधारित आजीविका को सशक्त बनाने के उद्देश्य से किये जाने वाले प्रयास न केवल खाद्य संकट के लक्षणों को बल्कि उनके साथ-साथ उनके मूल कारणों को भी हल करते हैं।
- अगर विश्व्यापी महामारी के कारण लोगों की आजीविका के साधन समाप्त हो गए तो स्वास्थ्य संकट ख़त्म होने के बाद एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।