(प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य अध्ययन से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - सामाजिक सशक्तीकरण से संबंधित प्रश्न; प्रश्नपत्र 2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप, शासन व्यवस्था से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा वैश्विक आत्महत्या रिपोर्ट, 2019 प्रकाशित की गई है।
प्रमुख बिंदु
- कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर मानसिक तनाव को बढ़ावा दिया है।
- प्रतिवर्ष 7 लाख से भी अधिक लोगों की मृत्यु का कारण आत्महत्या है।
- वर्ष 2019 में लगभग 7.3 लाख या 100 में से प्रत्येक 1 व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से हुई है। इसमें से अधिकांश मामले युवा वर्ग से संबंधित हैं।
- वैश्विक आत्महत्याओं में आधे से अधिक (58%) आत्महत्याएँ 50 वर्ष से कम आयु वर्ग की दर्ज की गई हैं।
- वर्ष 2019 में, वैश्विक आत्महत्याओं के मामलों मे से 77% मामलें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में दर्ज किये गए हैं।
- वर्ष 2019 में, वैश्विक स्तर पर 15 से 29 आयु वर्ग में मृत्यु का चौथा सबसे प्रमुख कारण आत्महत्या है। साथ ही, महिला एवं पुरुषों में आत्महत्या, मृत्यु का क्रमशः तीसरा तथा चौथा प्रमुख कारण है।
रिपोर्ट में अधूरे लक्ष्य
- संयुक्त राष्ट्र के अनिवार्य सतत विकास लक्ष्यों में एक लक्ष्य (मानसिक स्वास्थ्य के लिये) के रूप में वैश्विक मृत्युदर में आत्महत्या को एक-तिहाई तक कम करना शामिल हैं। परंतु, डब्ल्यू.एच.ओ. की नई रिपोर्ट के आधार पर विश्लेषण करें, तो इस लक्ष्य को प्राप्त करना अत्यंत कठिन है।
- सतत विकास लक्ष्यों के माध्यम से देशों से कहा गया है कि वर्ष 2030 तक, वे ‘रोकथाम तथा उपचार’ के माध्यम से ‘गैर-संचारी रोगों’ से समय से पहले होने वालीं मृत्युदर में ‘एक-तिहाई की कमी’ करें और ‘मानसिक स्वास्थ्य तथा कल्याण’ को बढ़ावा दें।
- रिपोर्ट में बताया गया है कि कुछ देशों ने आत्महत्या रोकथाम को अपने एजेंडे में उच्च स्थान दिया है, फिर भी बहुत से देश इसके लिये प्रतिबद्ध नहीं हैं।
- वर्तमान में केवल 38 देशों में आत्महत्या से होने वाली मृत्यु दर में कमी के लिये ‘राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति’ को अपनाया गया है।
आत्महत्या के तरीके
कीटनाशक (Pesticide), फाँसी (Hanging) तथा आग्नेयास्त्रों (Firearms) का प्रयोग वैश्विक स्तर पर आत्महत्या के सबसे प्रचलित तरीकों में से एक है।
भारत में आत्महत्या
- रिपोर्ट के अनुसार भारत में आत्महत्या की दर सर्वाधिक है।
- ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ के अनुसार भारत में वर्ष 2018 में आत्महत्या के कुल 1,34,516 मामले दर्ज किये गए।भारत में वर्ष 2017 में जहाँ आत्महत्या की दर 9.9% थी, वहीं यह दर वर्ष 2018 में बढकर 10.2% हो गई।
अन्य क्षेत्रीय आँकड़े
- रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका, यूरोप तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में आत्महत्या की दर वैश्विक औसत से अधिक दर्ज की गई। आत्महत्या की सर्वाधिक दर अफ्रीका क्षेत्र में (11.2%), इसके बाद यूरोप (10.5) और दक्षिण-पूर्व एशिया में (10.2%) रही।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि 20 वर्षों (2000-2019) में वैश्विक आत्महत्या दर में 36% की कमी दर्ज की गई है। यह कमी पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में 17% से लेकर यूरोपीय क्षेत्र में 47% और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में 49% तक थी।
- इस अवधि के दौरान अमेरिकी क्षेत्र में आत्महत्या की दर में 17% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, जो एक अपवाद रहा है।
सतत विकास लक्ष्य:3
- लक्ष्य 3.1 - वर्ष 2030 तक, रोकथाम और उपचार के माध्यम से गैर-संचारी रोगों से समयपूर्व मृत्यु दर में एक-तिहाई मामलों की कमी करना और मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना।
- लक्ष्य 3.5 - मादक द्रव्यों के सेवन और शराब के हानिकारक उपयोग सहित मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम और उपचार को सुदृढ़ बनाना।
- लक्ष्य 3.8 - सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना, जिसका ‘मानसिक स्वास्थ्य’ हिस्सा है।
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आत्महत्याओं के नियंत्रण के लिये डब्ल्यू.एच.ओ. के दिशा-निर्देश
- आत्महत्या के साधनों जैसे ‘खतरनाक कीटनाशक और आग्नेयास्त्र’ तक पहुँच को सीमित करना।
- मीडिया को आत्महत्या की ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग करने के लिये शिक्षित करना।
- किशोरों में सामाजिक-भावनात्मक जीवन कौशल को बढ़ावा देना।
- आत्महत्या के व्यवहार से प्रभावित किसी व्यक्ति की प्रारंभिक पहचान, मूल्यांकन, प्रबंधन और अनुवर्ती कार्रवाई करना।
भारत में आत्महत्या को नियंत्रित करने संबंधी प्रयास
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, ‘किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा’। अर्थात, संविधान में ‘जीवन की स्वतंत्रता’ का अधिकार शामिल है, जबकि इसमें ‘मरने का अधिकार’ शामिल नहीं है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के अनुसार, जो भी कोई आत्महत्या करने का प्रयास करता है अथवा इस तरह का कोई कृत्य करता है, तो उसे साधारण कारावास से, जिसे एक वर्ष तक के लिये बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
- ध्यातव्य है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, और उसे आत्महत्या के लिये कोई व्यक्ति उकसाता है तो उस व्यक्ति को किसी एक अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिस अवधि को दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और वह ज़ुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा।
- साथ ही, भारतीय दंड संहिता की धारा 305 के अनुसार यदि अठारह वर्ष से कम आयु का कोई व्यक्ति, एक पागल व्यक्ति या कोई भी व्यक्ति जो नशे की स्थिति में है, आत्महत्या करता है अथवा ऐसा कृत्य करने के लिये उसे कोई प्रेरित करता है, तो उस व्यक्ति को मृत्युदंड, आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक का कारावास और ज़ुर्माने की सज़ा का प्रावधान है।
- ‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017’ की धारा 115(1) में प्रावधान है कि आई.पी.सी. की धारा 309 में कुछ भी शामिल होने के बावजूद, कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करता है, जब तक कि अन्यथा साबित न हो, गंभीर तनाव माना जाएगा और उक्त संहिता के तहत मुकदमा चलाया जाएगा और उसे दंडित किया जाएगा।
- हालाँकि, यह कानून केवल मानसिक रोग से पीड़ित लोगों पर लागू होता है।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP), 1982
इस कार्यक्रम का उद्देश्य निकट भविष्य में सभी के लिये, विशेष रूप से आबादी के सबसे कमज़ोर और वंचित वर्गों के लिये ‘न्यूनतम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल’ की उपलब्धता और पहुँच को सुनिश्चित करना है।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2017
यह अधिनियम ‘मानसिक बीमारी’ को एक ‘विकलांगता’ के रूप में स्वीकार करता है और विकलांगों के अधिकारों को बढ़ाने का प्रयास करता है। साथ ही, समाज में उनका सशक्तीकरण और समावेश सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी तंत्र प्रदान करता है।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017
- इस अधिनियम को वर्ष 2017 में पारित और वर्ष 2018 में लागू किया गया तथा इस अधिनियम के माध्यम से वर्ष 1987 के ‘मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम’ में संशोधन किया गया।
- इस अधिनियम ने मानसिक रोगों के वर्गीकरण में डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा जारी किये गए दिशा-निर्देशों को भी शामिल किया है।
- अधिनियम के अंतर्गत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रावधान ‘विकसित निर्देश’ था, जिसने मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों को अपने इलाज की कार्यप्रणाली को तय करने और किसी को भी अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने की अनुमति प्रदान की।
- इस अधिनियम ने ‘इलेक्ट्रो-कंवल्सिव थेरेपी (ECT)’ के उपयोग को और साथ ही, नाबालिगों पर इसके उपयोग को भी प्रतिबंधित कर दिया।
मनोदर्पण पहल
यह ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है, जिसका उद्देश्य छात्रों को उनके मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिये मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता प्रदान करना है।
किरण
‘सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय’ द्वारा चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये एक 24/7 टोल फ्री हेल्पलाइन शुरू की है।