(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: आंतरिक सुरक्षा, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन, विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, रक्षा मंत्रालय ने 101 रक्षा वस्तुओं की नकारात्मक सूची तैयार की है, जिन पर निर्धारित समय-सीमा के बाद उनके आगे के आयात पर प्रतिबंध होगा।
पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री ने मई 2020 में पाँच स्तम्भों अर्थात अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढाँचा, व्यवस्था तंत्र, जनसांख्यिकी और माँग के आधार पर आत्म-निर्भर भारत का आह्वान किया। इससे संकेत लेते हुए सैन्य मामलों के विभाग (डी.एम.ए.), रक्षा मंत्रालय ने 101 वस्तुओं की एक सूची तैयार की है। इन वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध को वर्ष 2020 से 2024 के बीच धीरे-धीरे लागू करने की योजना है। इसका अर्थ यह है कि सशस्त्र सेनाएँ इन वस्तुओं की खरीद केवल घरेलू निर्माताओं से करेंगी। निर्माता निजी क्षेत्र से या रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम (डी.पी.एस.यू.) हो सकते हैं।
प्रतिबंध में शामिल वस्तुएँ
- आयात पर प्रतिबंध लगाई जाने वाली वस्तुओं की सूची में न केवल हल्की वस्तुएँ शामिल हैं, बल्कि आर्टिलरी गन, असॉल्ट राइफलें, लड़ाकू जलपोत, सोनार प्रणाली, मालवाहक विमान भी शामिल हैं। साथ ही, इस सूची में हल्के लड़ाकू विमान (एल.सी.एच.), रडार जैसी कुछ उच्च प्रौद्योगिकी हथियार प्रणालियाँ और भारत की रक्षा सेवाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिये कई अन्य वस्तुएँ भी शामिल हैं।
- रक्षा मंत्रालय ने भारत में विभिन्न गोला-बारूद / हथियारों / प्लेटफार्मों / उपकरणों के निर्माण के लिये भारतीय उद्योग क्षेत्र की मौजूदा और भावी क्षमताओं का आकलन करने के लिये यह सूची तीनो सेनाओं, डी.आर.डी.ओ, सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों, आयुध निर्माण बोर्ड (ओ.एफ.बी.) और निजी उद्योग सहित सभी हितधारकों के साथ कई दौर की मंत्रणा के बाद तैयार की है।
- इसलिये, इस सूची में सरल वस्तुओं से लेकर उन्नत तकनीकों तक की अत्यधिक जटिल वस्तुएँ भी शामिल हैं। सैन्य मामलों के विभाग (डी.एम.ए.) द्वारा आगे भी विभिन्न सलाहों के आधार पर आयात प्रतिबंध के लिये वस्तुओं की पहचान की जाएगी।
कारण
- वर्षों से भारत विश्व के शीर्ष तीन रक्षा आयातकों में से एक रहा है। सरकार रक्षा क्षेत्र में आयातित वस्तुओं पर निर्भरता कम करना चाहती है और घरेलू रक्षा विनिर्माण उद्योग को आगे बढ़ाना चाहती है।
- विश्व स्तर पर रक्षा निर्यात और आयात को ट्रैक करने वाले स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान के अनुसार, भारत वर्ष 2014 से 2019 के दौरान लगभग 6.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यय के साथ दूसरा सबसे बड़ा आयातक रहा है और कुल सैन्य खर्च के मामले में तीसरे स्थान पर है।
- इस सूची के उद्घोषणा के पीछे का उद्देश्य भारतीय रक्षा उद्योग को सशस्त्र बलों की अपेक्षित आवश्यकताओं के बारे में बताना है ताकि वे स्वदेशीकरण के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बेहतर रूप से तैयार हो सकें।
- इस नीति के अनुसार, रक्षा मंत्रालय आत्मनिर्भर भारत पहल के लिये एक बड़ा भागीदार बनने के लिये तैयार है। सरकार को उम्मीद है कि रक्षा विनिर्माण क्षेत्र केवल घरेलू बाज़ार की ज़रुरतों के लिये ही नहीं है, बल्कि निर्यातक बनकर अर्थव्यवस्था को भी बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
- साथ ही, यह कवायद महात्मा गाँधी के स्वदेशी को आगे बढ़ाने के मकसद के रूप में देखा जा रहा है।
- हालाँकि, इस प्रकार की घोषणा अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि सरकार ने पहले ही रक्षा क्षेत्र के लिये एक नकारात्मक आयात सूची बनाने की बात कही थी। साथ ही, सरकार द्वारा स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा विनिर्माण में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को 49% से बढ़ाकर 74% करने की भी घोषणा की गई थी।
अवसर
- यह रक्षा क्षेत्र में आत्म-निर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह भारतीय रक्षा उद्योग को भविष्य में सशस्त्र बलों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये स्वयं के डिज़ाइन और विकास क्षमताओं का उपयोग करके या डी.आर.डी.ओ. द्वारा डिज़ाइन और विकसित प्रौद्योगिकियों को अपनाकर नकारात्मक सूची में शामिल वस्तुओं का निर्माण करने के लिये एक बड़ा अवसर प्रदान करेगा।
- रक्षा मंत्रालय ने रक्षा उत्पादन संस्थाओं द्वारा 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' को प्रोत्साहित करने और सुविधाएँ प्रदान करने के लिये कई प्रगतिशील उपाय अपनाए हैं जिसका भी लाभ निर्माण क्षेत्र को प्राप्त होगा।
- नकारात्मक आयात सूची में शामिल वस्तुओं की कमी को दूर करने के लिये उपकरणों का उत्पादन दी गई समय-सीमा में पूरा किया जाए, इसको सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। इसके लिये रक्षा सेवाओं द्वारा उद्योग क्षेत्र के साथ तालमेल बैठाने के लिये एक समन्वित तंत्र को भी शामिल किया जाएगा।
- एक अन्य आवश्यक कदम के रूप में रक्षा मंत्रालय ने 2020-21 के लिये पूँजी खरीद बजट को घरेलू और विदेशी पूँजी खरीद मार्गों के बीच विभाजित किया है।
- नकारात्मक सूची में कुछ वस्तुओं को डालकर और घरेलू पूँजी खरीद के लिये एक अलग बजट शीर्ष बनाकर सरकार ने स्वदेशी उद्योग के लिये एक सकारात्मक संकेत भेजा है।
- चूँकि यह सूची अन्य हितधारकों के साथ-साथ सेनाओं की सलाह पर तैयार की गई है, जिससे सेना भी इस योजना में समान रूप से महत्त्वपूर्ण हितधारक बन गई है। ऐसी स्थिति में स्वदेशी रक्षा उत्पादकों के पास इस क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ने के कई अवसर उपलब्ध होंगे।
प्रभाव
- सेना के तीनों अंगों द्वारा अप्रैल 2015 से अगस्त 2020 के बीच लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर ऐसी वस्तुओं की लगभग 260 योजनाओं को अनुबंधित किया गया था। आयात पर नवीनतम प्रतिबंध के साथ, यह अनुमान है कि अगले 5 से 7 वर्षों के भीतर भारतीय उद्योग समूहों के साथ लगभग चार लाख करोड़ रुपये के अनुबंध होंगे।
- इनमें से लगभग 1,30,000 करोड़ रुपये की वस्तुएँ थल सेना और वायु सेना दोनों के लिये अनुमानित हैं, जबकि नौसेना के लिये लगभग 1,40,000 करोड़ रुपये की वस्तुओं के अनुबंध का अनुमान लगाया गया है।
- पिछले दो दशकों में बढ़ते रक्षा आयात के कारण भारत की रणनीतिक वृद्धि में बाधा उत्पन्न हुई है। विशेषकर वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के बाद रक्षा उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रक्षा मंत्रालय की प्राथमिकता सूची में रहा है। इस प्रकार, यह प्रयास रणनीतिक और आर्थिक वृद्धि में सहायक सिद्ध होगा।
चुनौतियाँ
- वर्ष 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ योजना की घोषणा स्वदेशी रक्षा उद्योग को विकसित करने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन यह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है।
- अगले 5-7 वर्षों में घरेलू उद्योग को लगभग 4 लाख करोड़ रुपये के अनुबंध का वादा एक प्रभावशाली कदम तो लगता है परंतु ‘मेक इन इंडिया’ योजना के तहत 3.5 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएँ पाइप लाइन में अटकी हैं, जो दर्शाता है कि प्रमुख चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
- नकारात्मक वस्तुओं की सूची का चुनाव सावधानीपूर्वक किया गया है परंतु इनमें से कम से कम एक तिहाई वस्तुएँ पहले से ही भारत में उत्पादित की जा रही हैं। हालाँकि, इस घोषणा में केवल स्वदेशी विक्रेताओं से इन वस्तुओं की खरीद के लिये प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गई है, परंतु इसमें किसी प्रकार के नए विकास या उत्पादन क्षमता को शामिल नहीं किया गया है।
- अमेठी में रूस के सहयोग से आयुध कारखाना बोर्ड द्वारा निर्मित की जाने वाली असॉल्ट राइफल (AK-203 राइफल) जैसी कुछ वस्तुएँ मूल्य निर्धारण के मुद्दों का भी सामना कर रहीं हैं।
आलोचना
- इस सूची में कुछ अन्य वस्तुएँ ऐसी भी हैं जिनको केवल घरेलू उद्योग क्षेत्र द्वारा विकसित किया जा रहा है, किसी अन्य देश द्वारा नहीं। इनमें लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर और हल्के परिवहन विमान शामिल हैं और घरेलू स्तर पर किसी भी प्रकार की माँग स्वचालित रूप से पूरी हो जाएगी, अतः इसको सूची में शामिल करने की आवश्यकता नहीं थी।
- इसके अतिरिक्त, इस सूची में प्रत्येक वस्तु के लिये एक निश्चित समयावधि का उल्लेख किया गया है। डर है कि तब तक इनकी माँग को विदेशी विक्रेताओं द्वारा पूरा किया जाएगा। ऐसी स्थिति में, घरेलू उत्पादकों के पास माँग के बहुत कम विकल्प बचेंगे। हालाँकि, इससे घरेलू निर्माताओं को वस्तुओं का उत्पादन करने की क्षमता और क्षमता निर्माण का समय भी मिल सकता है।
- पहले से सिद्ध प्रौद्योगिकियों को इस सूची में शामिल किया गया हैं। अगली पीढ़ी के हथियार प्रणाली या प्लेटफॉर्म के लिये किसी भी महत्त्वपूर्ण या अत्याधुनिक तकनीक को शामिल नहीं किया गया है।
- इस सूची में शामिल ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल में रूसी घटकों की हिस्सेदारी महत्त्वपूर्ण है। भारत में पूरी तरह से उत्पादित होने के बजाय यह रक्षा क्षेत्र के पी.एस.यू. द्वारा भारत में असेम्बल किया जाने वाला उत्पाद है।
आगे की राह
- यह सूची कुछ मायनों में पूर्व-उदारीकरण युग के लाइसेंस परमिट राज के लिये एक असफलता है, लेकिन उद्योग जगत से मज़बूत प्रतिक्रिया ने सरकार को अधिक जटिल रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में हस्तक्षेप करने के लिये मजबूर किया है।
- घरेलू रक्षा उद्योग जगत की प्रमुख शिकायत व समस्या भारत में विकसित व उत्पादित किये जा रहे रक्षा वस्तुओं की खरीद में सशस्त्र बलों की प्रतिबद्धता की कमी थी। इसका निवारण किये जाने की आवश्यकता है।
- दो अन्य आशंकाओं को भी दूर किये जाने की ज़रुरत है। इसमें पहला है, पर्याप्त मात्रा में ख़रीद आदेशों का आश्वासन जो उत्पादन को किफायती बना सकता है। दूसरा, स्वदेशी रूप से उत्पादित वस्तुओं की कीमत का आयात से कम होना।
- नकारात्मक आयात सूची ‘रक्षा में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम’ साबित हो सकता है।