(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहलें आदि)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 – मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता।)
संदर्भ
खरीफ फसलों के आगामी मौसम के दौरान दालों के उत्पादन में वृद्धि करने के उद्देश्य से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक विशेष खरीफ रणनीति तैयार की है।
सरकार की रणनीति
- इस विस्तृत योजना का उद्देश्य अरहर, मूँग तथा उड़द जैसी दलहन फसलों के उत्पादन क्षेत्र तथा उत्पादकता में वृद्धि करना है। इसके तहत अंतर-फसल प्रणाली के माध्यम से प्रोटीन युक्त फसल क्षेत्र का 05 लाख हेक्टेयर तक विस्तार किया जाएगा।
- कृषि मंत्रालय ने इस उदेश्य की प्राप्ति के लिये कृषकों को अरहर, मूँग तथा उड़द जैसी विभिन्न खरीफ फसलों के 20.27 लाख बीज किट वितरित करने का प्रस्ताव दिया है। बीज किटों यह संख्या पिछले खरीफ मौसम में किसानों को वितरित किये गए बीज किटों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक है।
- इस रणनीति के तहत केंद्र तथा राज्यों की बीज एजेंसियों में उपलब्ध उच्च उपज वाली किस्मों के बीज किसानों को मुफ्त में वितरित किये जाएँगे। इन बीजों का उपयोग अंतर-फसल या एकल फसल प्रणाली के माध्यम से किया जाएगा।
- अरहर की अंतर-फसल के लिये मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान सहित 11 राज्यों के कुल 187 ज़िलों की पहचान की गई है, जबकि मूँग की फसल के लिये आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश सहित 9 राज्यों के कुल 85 ज़िलों का चयन किया गया है। इसके अतिरिक्त, उड़द की फसल के लिये 6 राज्यों के करीब 60 ज़िलों को चुने जाने की उम्मीद है।
- इस पहल का उदेश्य भारत को दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। यद्यपि दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, भारत ने वर्ष 2020-21 में 24.42 मिलियन टन दालों का उत्पादन किया था, इसके बावजूद भी लगभग 4 लाख टन अरहर, 3 लाख टन उड़द तथा 0.6 लाख टन मूँग की दालों का आयात किया गया था।
- इस रणनीति के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये कृषकों को प्रशिक्षित भी किया जाएगा और इस हेतु ‘कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान’ (ATARI) तथा ‘कृषि विज्ञान केंद्रों’ का सहयोग लिया जाएगा।
दलहन फसलों की उपयोगिता और भारत
- दलहन के क्षेत्र में ‘भारत’ विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक, आयातक तथा उपभोक्ता देश है। वैश्विक दलहन उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी लगभग 25% तथा वैश्विक उपभोग में इसकी हिस्सेदारी लगभग 27% है।
- दलहन फसलें जलवायु परिवर्तन के संबंध में अनुकूलन और शमन के रूप में दोहरी भूमिका निभाती है। इसके अतिरिक्त, ये फसलें नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मृदा की उर्वरता बनाए रखने में भी अत्यंत सहायक होती हैं।
- भारत में दलहन फसलों को अवशिष्ट फसल के रूप में जाना जाता है, जो फलीदार पादप परिवार (Legume Family) से संबंधित हैं। इन फसलों में प्रोटीन, फाइबर, खनिज तथा विटामिन प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं।
- लाल चना, अरहर, उड़द, मूँग तथा मसूर को भारत की प्रमुख दलहन फसलों के अंतर्गत शामिल किया गया है, जबकि राजमा, लोबिया, मोठ, खोसारी एवं कुल्थी को फलीदार दलहन फसलों के अंतर्गत गौण फसलों में शामिल हैं।
निष्कर्ष
सरकार की इस रणनीति से दालों के उत्पादन, उत्पादन क्षेत्र तथा उत्पादकता में वृद्धि होगी। इससे न सिर्फ भारत द्वारा किये जाने वाले दलहन के आयात में कमी आएगी, बल्कि भारत दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भी बन सकेगा।