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ग्राम न्यायालय (Gram Nyayalayas)

ग्राम न्यायालयों की मुख्य विशेषताएं

उद्देश्य:

  • नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय से वंचित होने से बचाना।

वैधानिक प्रावधान:

  • ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत गठित।
    नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और कुछ निर्दिष्ट जनजातीय क्षेत्रों को अधिनियम से छूट दी गई है।

स्थान और स्थिति:

  • मध्यवर्ती पंचायत के मुख्यालय में स्थित होता है।
  • इसे प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय माना जाता है।
  • राज्य सरकार हाईकोर्ट के परामर्श से 'न्यायाधिकारी' नियुक्त करती है।

अधिकार-क्षेत्र:

  • सिविल और क्रिमिनल दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई कर सकता है।
  • यह एक मोबाइल कोर्ट के रूप में कार्य करता है।

विवाद समाधान प्रक्रिया:

  • सुलह-समझौते के माध्यम से विवादों का निपटारा किया जाता है।
  • सामाजिक कार्यकर्ताओं को सुलहकार (Conciliators) के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
  • यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर कार्य करता है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 से बाध्य नहीं है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित कर दिया है।

अपील प्रक्रिया:

  • क्रिमिनल मामलों में अपील → सत्र न्यायालय (Session Court)।
  • सिविल मामलों में अपील → जिला न्यायालय (District Court)।
  • अपील का निपटारा 6 महीने के भीतर किया जाएगा।
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