संदर्भ
निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित 72,000 करोड़ रुपए की मेगा बुनियादी ढांचा उन्नयन परियोजना को संरक्षणवादियों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है नीति आयोग की मेगा परियोजना
- मार्च 2021 में नीति आयोग ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप के समग्र विकास के लिए ₹72,000 करोड़ की योजना का अनावरण किया था।
- इस योजना को अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- इस वृहत अवसंरचना परियोजना शामिल प्रमुख अवसंरचनाएं :
- अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT)
- 4,000 यात्रियों को संभालने की क्षमता वाला एक ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा
- एक टाउनशिप
- 16,610 हेक्टेयर का एक गैस और सौर आधारित बिजली संयंत्र
- ग्रेट निकोबार द्वीप मलक्का जलडमरूमध्य के करीब है, जो हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ने वाला मुख्य जलमार्ग है।
- आई.सी.टी.टी. ग्रेट निकोबार को कार्गो ट्रांसशिपमेंट के ज़रिए क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था में भाग लेने की मदद करेगा।
- प्रस्तावित आई.सी.टी.टी. और बिजली संयंत्र के लिए ग्रेट निकोबार द्वीप के दक्षिण-पूर्वी किनारे पर गैलाथिया खाड़ी का चयन किया गया है जहाँ कोई मानव निवास नहीं है।
ग्रेट निकोबार की स्थिति एवं समुदाय
- यह निकोबार द्वीपसमूह का सबसे दक्षिणी और सबसे बड़ा द्वीप है।
- यह बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी भाग में मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय वर्षावन का 910 वर्ग किलोमीटर का विरल रूप से बसा हुआ क्षेत्र है।
- द्वीप पर भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु ‘इंदिरा पॉइंट, इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के सबसे बड़े द्वीप सुमात्रा के उत्तरी सिरे से केवल 90 समुद्री मील (170 किमी से कम) की दूरी पर है।
- ग्रेट निकोबार में दो राष्ट्रीय उद्यान, एक बायोस्फीयर रिजर्व, शोम्पेन और निकोबारी जनजातीय लोगों की छोटी आबादी और कुछ हजार गैर-आदिवासी निवासी हैं।
- ग्रेट निकोबार द्वीप में 600 से ज़्यादा द्वीप शामिल हैं।
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अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का सामरिक महत्त्व
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत की सुरक्षा के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। चीन की नौसेना के हिंदमहासागर में हस्तक्षेप को देखते हुए इन द्वीपों का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है।
- समुद्री सुरक्षा की पहली आवश्यकता द्वीपों के आस-पास के विशाल क्षेत्र को निगरानी में रखना
- नौसैनिक दुस्साहस के विरुद्ध एक मजबूत प्रतिरोधात्मक क्षमता सुनिश्चित करना
- भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले बुनियादी ढांचे का निर्माण करना
- यह द्वीप समूह हिंद महासागर से दक्षिण-पूर्व एशिया तक मुख्य शिपिंग मार्ग के निकट रणनीतिक रूप से स्थित है।
रणनीतिक बुनियादी ढांचे के धीमें विकास का कारण
- मुख्य भूमि से दूरी : मुख्य भूमि से दूरी और बुनियादी ढांचे के विकास की कठिनाइयों को विभिन्न परियोजनाओं में देरी और रुकावट डालने के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
- पर्यावरणीय मंज़ूरी : छोटी परियोजनाओं के लिए भी पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने की जटिल प्रक्रियाएँ बाधक रही हैं।
- वनों और मूल जनजातियों के संरक्षण संबंधी नियमों ने भूमि अधिग्रहण के मुद्दों को जटिल बना दिया है।
- समन्वय की कमी : द्वीपों और रणनीतिक बुनियादी ढांचे का विकास एक बहुआयामी परियोजना है जिसमें कई मंत्रालय, विभाग और एजेंसियां शामिल हैं, जो महत्वपूर्ण समन्वय चुनौतियां प्रस्तुत करती हैं।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी : दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टि और तात्कालिक राजनीतिक लाभ के बीच संघर्ष अक्सर तात्कालिक लाभ के पक्ष में झुका है।
क्यों हो रहा है परियोजना का विरोध
- इस विशाल परियोजना की पारिस्थितिकी लागत तथा जनजातीय अधिकारों के संभावित उल्लंघन के कारण भारी आलोचना की गई है।
- इस परियोजना के लिए लगभग 130 वर्ग किलोमीटर वन भूमि का उपयोग किया जाना है और लगभग 10 लाख पेड़ काटे जाने हैं।
- जनवरी, 2021 में ही भारत सरकार ने परियोजना को आगे बढाने के लिए के लिए दो वन्यजीव अभयारण्यों गैलेथिया खाड़ी वन्यजीव अभयारण्य और मेगापोड वन्यजीव अभयारण्य को गैर-अधिसूचित किया था।
- जबकि गैलेथिया खाड़ी भारत सरकार के “राष्ट्रीय समुद्री कछुआ कार्य योजना” का हिस्सा भी है।
- गैलाथिया खाड़ी को ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल के रूप में विकसित किया जाना है, जो विशाल चमड़े वाले कछुए (Giant Leatherback Turtle) के लिए दुनिया के सबसे बड़े घोंसले के स्थलों में से एक है।
- लेदरबैक कछुए और निकोबार मेगापोड दोनों वन्यजीव (संरक्षण अधिनियम), 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध हैं।
- नवंबर 2022 में, ग्रेट निकोबार और लिटिल निकोबार की जनजातीय परिषद ने परियोजना के लिए प्रदान किए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) को वापस ले लिया।
- जनजातीय परिषद का कहना है कि प्रशासन ने आदिवासी आरक्षित भूमि के उपयोग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई थी और जल्दबाजी में आदिवासी समुदायों की सहमति प्राप्त की थी।
- नीति आयोग की योजना में “निर्वासित” के रूप में वर्गीकृत कुछ भूमि ग्रेट निकोबारी लोगों की पैतृक भूमि का भी हिस्सा है।
- सुनामी के बाद से ही वे अपने पुनर्वास के लिए बार-बार इन ज़मीनों पर वापस जाने की मांग कर रहे हैं - लेकिन उन्हें प्रशासनिक उदासीनता का सामना करना पड़ा है। आज, यह मेगा प्रोजेक्ट भी उनकी वापसी की मांग के रास्ते में बाधा बन रहा है।
- यहाँ आदम जनजाति ‘शोम्पेन’ का बाहरी दुनिया से बहुत कम संपर्क होने के कारण उनमें संक्रामक बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हुई है।
- कुछ शोम्पेन बस्तियाँ उन क्षेत्रों से भी मौजूद हैं, जिसे ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल के लिए इस्तेमाल के लिए चिन्हित किया गया है।
- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र “रिंग ऑफ फायर” में स्थित है। इस क्षेत्र में पिछले दशक में अलग-अलग तीव्रता के लगभग 500 भूकंपों का अनुभव किया गया है। यह क्षेत्र सबसे अधिक भूकंपीय खतरे वाला भौगोलिक क्षेत्र (श्रेणी V) के रू में वर्गीकृति किया गया है।
द्वीपों पर बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सुझाव
- समुद्री सुरक्षा की पहली आवश्यकता द्वीपों के आसपास के वृहत क्षेत्र को निगरानी में रखना है।
- सभी 836 द्वीपों, चाहे वे आबाद हों या गैर-आबाद, की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि उन पर अवैध गतिविधियों में लिप्त संस्थाओं द्वारा कब्जा करने या उनका उपयोग करने का प्रयास न किया जा सके।
- पूर्व से किसी भी नौसैनिक दुस्साहस के विरुद्ध एक मजबूत प्रतिरोध सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- इसके लिए यहाँ सेना, नौसेना और वायु सेना की मजबूत उपस्थिति अति महत्वपूर्ण है।
- भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले बुनियादी ढांचे का निर्माण दक्षिणी द्वीप समूह पर किया जाना चाहिए, जो कि भारतीय महासागर से दक्षिण पूर्व एशिया तक मुख्य शिपिंग मार्ग के निकट रणनीतिक रूप से स्थित है।
- द्वीपों के बीच और मुख्य भूमि से द्वीप तक की यात्रा को आसान बनाना महत्वपूर्ण है। लोगों और वस्तुओं की तीव्र आवाजाही के बिना विकास की गति धीमी रहेगी।
- बेहतर परिवहन से द्वीपों की पर्यटन क्षमता को बढ़ाने और बनाए रखने में मदद मिलेगी।
- मुख्य भूमि के समर्थन पर द्वीपों की निर्भरता, चाहे वह खाद्य पदार्थों के संबंध में हो या रखरखाव, मरम्मत और अन्य सेवाओं का समर्थन करने वाले प्रासंगिक स्थानीय उद्योगों के संबंध में हो, को यथासंभव कम किया जाना चाहिए।
- गैलेथिया खाड़ी (ग्रेट निकोबार द्वीप) ट्रान्सशिपमेंट पोर्ट पर काम में तेजी लाई जानी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय शिपिंग के लिए मरम्मत और लॉजिस्टिक्स जैसी समुद्री सेवाओं को विकसित किया जाना चाहिए।
- वन एवं पर्यावरण संबंधी मंजूरी न्यूनतम लालफीताशाही के साथ दी जानी चाहिए।
- भारत की उत्तरी सीमाओं पर रक्षा अवसंरचना के लिए दी जाने वाली रियायतों को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तक बढ़ाया जाना चाहिए।