(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र– 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अंतर्गत आने वाली ‘पर्यावरण मूल्यांकन समिति’ (EAC) ने ग्रेट निकोबार द्वीप में क्रियान्वित की जाने वाली नीति आयोग की महत्त्वाकांक्षी परियोजना के संबंध में गंभीर चिंताएँ व्यक्त की हैं।
मुख्य बिंदु
- यद्यपि ‘पर्यावरण मूल्यांकन समिति’ ने परियोजना के क्रियान्वयन में आने वाली प्रथम बाधा को समाप्त कर दिया है तथा परियोजना के संबंध में ‘पर्यावरण प्रभाव आकलन’ संबंधी अध्ययन के लिये ‘संदर्भ शर्तें जारी करने’ की सिफारिश की है। इसके तहत प्रथम तीन माह में परियोजना संबंधी आधारभूत अध्ययन किये जाएँगे।
- इस परियोजना के तहत 75,000 करोड़ रुपए व्यय किये जाने का अनुमान है। इस राशि के उपयोग से ग्रेट निकोबार द्वीप क्षेत्र में एक अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, एक अंतर्राष्ट्रीय ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, एक विद्युत संयंत्र, प्राचीन तटीय प्रणाली एवं उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र के 166 वर्ग कि.मी. में एक टाउनशिप कॉम्प्लेक्स का निर्माण किये जाने की योजना है।
परियोजना के संबंध में चिंताएँ
- परियोजना संबंधी दस्तावेज़ों में भूकंप तथा सुनामी से उत्पन्न खतरों, ताजे जल की आपूर्ति तथा विशालकाय लेदरबैक कछुओं पर पड़ने वाले प्रभावों का कोई ज़िक्र नहीं किया गया है।
- इस परियोजना तहत भारत के 130 वर्ग कि.मी. उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र को भी शामिल किया गया है, जबकि इसके विवरण में परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान काटे जाने वाले वृक्षों की कोई जानकारी नहीं दी गई है।
- इसके अतिरिक्त, ‘पर्यावरण मूल्यांकन समिति’ ने गैलाथिया की खाड़ी जैसे कई अन्य मुद्दों पर भी प्रश्न चिह्न लगाया है। ‘गैलाथिया की खाड़ी’ क्षेत्र एक ऐसा बंदरगाह स्थल है, जिसका नीति आयोग ने प्रमुखता से उल्लेख किया है। गौरतलब है कि यह खाड़ी भारत में विश्व के सबसे विशालकाय समुद्री कछुए ‘जायंट लेदरबैक’ के प्रजनन स्थल के रूप में प्रसिद्द है।
- साथ ही, इस परियोजना के प्रस्तावक ‘अंडमान एवं निकोबार द्वीप एकीकृत विकास निगम’ (ANIIDCO) द्वारा 5 अप्रैल को इन चिंताओं पर एक बिंदुवार प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी।
समिति द्वारा प्रस्तावित मुख्य बिंदु
- ‘पर्यावरण मूल्यांकन समिति’ ने स्थलीय एवं समुद्री जैव विविधता के स्वतंत्र मूल्यांकन, तेल रिसाव सहित तलकर्षण (Dredging), भूमि-सुधार तथा बंदरगाह परिचालन के प्रभाव के अध्ययन आदि बिंदुओं पर विशेष बल दिया है।
- इसमें लेदरबैक कछुओं के समक्ष उपस्थित संभावित खतरे, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी प्रभाव का आकलन तथा बंदरगाह हेतु वैकल्पिक स्थलों की तलाश करने पर ज़ोर दिया गया है।
- इसके अतिरिक्त, इसमें भूकंप एवं सुनामी से उत्पन्न होने वाले खतरों का मानचित्रण करना, आपदा प्रबंधन योजना, भू-वैज्ञानिक अध्ययन, सतही जल परियोजना के संचयी प्रभाव का आकलन, श्रम विवरण, श्रम शिविरों तथा उनकी आवश्यकताओं के अध्ययन आदि को भी शामिल किया गया है।
कॉर्पोरेट नीति
- ‘पर्यावरण मूल्यांकन समिति’ ने कॉर्पोरेट पर्यावरण नीति का कार्यान्वयन करने वाली एजेंसी eसे माँग की है कि वह कंपनी की पर्यावरण नीति का ब्यौरा प्रस्तुत करे। इसके अलावा, पर्यावरण एवं वन कानूनों के उल्लंघन से निपटने के लिये निर्धारित की गई मानक प्रक्रिया का भी विवरण दे।
- निकोबार द्वीप परियोजना का प्रस्तावक ‘अंडमान एवं निकोबार द्वीप एकीकृत विकास निगम’ एक सरकारी उपक्रम है, जिसका प्रमुख कार्य पर्यटन, व्यापार (लोहा, इस्पात, दूध, पेट्रोलियम उत्पाद, शराब आदि) तथा मत्स्यपालन के लिये बुनियादी ढाँचे का विकास करना है।
- अमेरिकी बहुराष्ट्रीय इंजीनियरिंग फर्म (AECOM) की प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इस क्षेत्र में वर्ष 2022-23 कार्य आरंभ किया जाना है। लेकिन द्वीप विशेषज्ञों के अनुसार यह संभव नहीं है। यदि सरकार तथा परियोजना के प्रस्तावक ‘समिति’ की सिफारिशों का सही ढंग से पालन करते हैं, तो इसके लिये एक वर्ष का समय पर्याप्त नहीं है।
- पारिस्थितिक सर्वेक्षणों में पिछले कुछ वर्षों में कुछ नई प्रजातियों के खोजे जाने की सूचना भी दी गई है, इनमें से कई तो केवल गैलाथिया क्षेत्र में ही सीमित हैं। इनमें गंभीर रूप से संकटग्रस्त निकोबार छछूँदर (Nicobar Shrew), ग्रेट निकोबार क्रेक, निकोबार मेंढक, निकोबार कैट स्नेक (Nicobar Cat Snake), एक नया स्किंक (Lipinia Sp), छिपकली की एक नई प्रजाति (Dibamus Sp) तथा लाइकोडोन एसपी (Lycodon Sp) का एक साँप भी शामिल है, जिसे अभी वर्गीकृत नहीं किया गया है।
- इनमें से किसी का भी ए.ई.सी.ओ.एम. की पूर्व-व्यवहार्यता रिपोर्ट या समिति के समक्ष उल्लेख नहीं किया गया है। ग्रेट निकोबार की जटिल प्रणालियों के नाजुक अंतर-संबंधों को समझने के लिये यहाँ मौजूद विभिन्न प्रजातियों की जानकारी होना आवश्यक है।