(प्रारम्भिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 ; संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने ‘ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट’ (GRIHA) काउंसिल द्वारा आयोजित 12वीं जी.आर.आई.एच.ए. समिट का उद्घाटन करते हुए भारत में हरित भवनों की अवधारणा को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया।
हरित भवन
हरित भवन एक ऐसी निर्माण परियोजनाएँ होती हैं, जो अपने डिज़ाइन, निर्माण या संचालन में पर्यावरण से सम्बंधित नकारात्मक प्रभावों को कम करने के साथ ही हमारे प्राकृतिक वातावरण और जलवायु पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
हरित भवनों की विशेषताएँ
- इन इमारतों में ऊर्जा, जल और अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया जाता है। साथ ही, इनमें स्वच्छ ऊर्जा के रूप में अक्षय ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, जैसे- सौर ऊर्जा।
- इनमे प्रदूषण और अपशिष्ट पदार्थों में कमी के पर्याप्त उपायों को अपनाने के साथ-साथ , अपशिष्ट पदार्थों को पुनर्चक्रण भी किया जाता है।
- इन भवनों के अंदर प्राकृतिक रूप से वायु के आवागमन (Ventilation) की बेहतर व्यवस्था की जाती है।
- इन भवनों के निर्माण में पर्यावरण के अनुकूल निर्माण सामग्री का उपयोग किया जाता है, जिससे ये इमारतें बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर हमारे जीवन स्तर में सुधार लाती हैं।
- उपरोक्त सूचीबद्ध विशेषताओं के आधार पर किसी भी इमारत को चाहे वह घर, कार्यालय, स्कूल, अस्पताल, सामुदायिक केंद्र या किसी अन्य प्रकार की संरचना हो, उसे हरित भवन की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है।
हरित भवनों के निर्माण से सम्बंधित चुनौतियाँ
- जागरूकता का अभाव : भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी हरित इमारतों और इसके दीर्घकालिक लाभों से अवगत नहीं है। इसके अतिरिक्त, इन इमारतों के संदर्भ में एक गलत धारणा यह भी है कि इन इमारतों की निर्माण लागत बहुत अधिक है।
- अपर्याप्त सरकारी नीतियाँ और प्रक्रियाएँ : हरित भवनों के निर्माण की स्वीकृति के लिये बिल्डर्स और डेवलपर्स को एक जटिल और लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस प्रकार, प्रशासनिक जटिलताओं के चलते निर्माणकर्ता हतोत्साहित होते हैं।
- कुशल कार्यबल और विशेषज्ञों का अभाव : भारत में हरित भवनों के निर्माण और रखरखाव के लिये कुशल कार्यबल तथा विशेषज्ञों की भारी कमी है। वर्तमान में भारत में नीति निर्माताओं से लेकर आर्किटेक्ट, इंजीनियर, ठेकेदार और श्रमिकों तक किसी भी समूह के पास हरित इमारतों के निर्माण के लिये पर्याप्त ज्ञान और कौशल उपलब्ध नहीं है।
सुझाव
- हरित भवनों के लाभों के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिये एक ‘जन जागरूकता अभियान’ शुरू किये जाने की आवश्यकता है।
- निजी और सरकारी दोनों ही क्षेत्रों की सहायता से हरित भवनों के निर्माण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जिसमें निजी क्षेत्र पर्याप्त पूँजी तथा नवाचारी प्रौद्योगिकी उपलब्धता कराएगा तथा सरकारी क्षेत्र कुशल नीति निर्माण में सहायता प्रदान करेगा।
- वित्तीय संस्थानों द्वारा आसान ऋण उपलब्धता तथा सरकार द्वारा कर राहत प्रोत्साहन के माध्यम से हरित भवनों के निर्माण को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- हरित इमारतों के निर्माण तथा नियमों के अनुपालन से संबंधित स्वीकृतियों के लिये ‘एकल खिड़की मंजूरी’ (Single Window Clearance) प्रदान करने के लिये एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया जाना चाहिये।
अन्य प्रमुख तथ्य
- अगर पारम्परिक अकुशल निर्माण प्रक्रियाओं को जारी रखा जाता है, तो वर्ष 2050 तक ये इमारतें 70% ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये उत्तरदायी होंगी, जो भारत की हरित महत्वाकांक्षाओं के लिये बड़ी बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
- भारत की कुल ऊर्जा खपत का 40% से अधिक का उपयोग आवासीय और वाणिज्यिक भवनों में किया जाता है तथा इसमें वार्षिक रूप से 8% की वृद्धि हो रही है।
- ‘ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट’ (GRIHA ): ऊर्जा और संसाधन संस्थान (The Energy and Resources Institute-TERI) द्वारा विकसित भारत में हरित भवनों के निर्माण के लिये यह एक राष्ट्रीय रेटिंग प्रणाली है, जिसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 2007 में मान्यता दी गई थी।