(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: बुनियादी ढाँचा- ऊर्जा, पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
संदर्भ
ऊर्जा एक ऐसा संसाधन है, जिसमें किसी विकासशील अर्थव्यवस्था को गति देने की क्षमता होती है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों ने जलवायु-विज्ञान सम्मेलनों से लेकर आपदा राहत पर अरबों रुपए खर्च करने को मजबूर किया है। वैश्विक बाजार में कार्बन मुक्त उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। अर्थव्यवस्था के समक्ष उपस्थित खतरे को महसूस करते हुए कई देशों ने नेट-शून्य लक्ष्यों की घोषणा की है। ऐसे में हरित हाइड्रोजन ऊर्जा का एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत कर सकता है।
हरित हाइड्रोजन
- हाइड्रोजन एक रंगहीन, गंधहीन स्वादहीन गैस है। आवर्त सारणी में यह प्रथम स्थान पर है। सामान्यतः इसके दो परमाणुओं से मिलकर एक अणु (H2) बनता है। यह सबसे हल्का तत्त्व है। इसकी परमाणु संख्या 1 तथा परमाणु भार 008 है। हाइड्रोजन अत्यधिक कम ताप पर ठोस या द्रव में परिवर्तित हो जाता है।
- हरित हाइड्रोजन को प्रायः नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग करके जल से पृथक करके (जल-विघटन) बनाया जाता है। यह ऊर्जा का स्रोत न होकर ऊर्जा का वाहक है। ऊर्जा वाहक (Energy Carrier) से आशय है कि हाइड्रोजन ईंधन को प्रयोग करने से पहले फ्यूल सेल नामक उपकरण से विद्युत में बदलना आवश्यक होता है। विदित है कि फ्यूल सेल रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
ऊर्जा अर्थव्यवस्था की स्थिति
- सार्वजनिक स्तर पर ऊर्जा अर्थव्यवस्था में विद्युत अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।हालाँकि, इसका हिस्सा भारत की कुल ऊर्जा मांग का केवल 18% है और शेष 82% में अन्य ऊर्जा स्रोत, जैसे- कोयला, तेल व गैस और बायोमास शामिल हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत का ऊर्जा क्षेत्र अत्यधिक आयात पर निर्भर है। कच्चे तेल का 85%, गैस का 53% और कोयले का 24% आयात किया जाता है।इन ईंधनों की कीमतों में उतार-चढ़ाव का आयात बिल पर भारी प्रभाव पड़ता है। मांग बढ़ने पर इन बिलों के अगले दशक से दोगुना हो जाने की उम्मीद है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत वर्ष 2030 तक दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता के रूप में यूरोपीय संघ से आगे निकल जाएगा।साथ ही, अगले दो दशकों में ऊर्जा मांग में वृद्धि का सबसे बड़ा हिस्सा भारत से होगा।
भारत के लिये संभावनाएं
- हरित हाइड्रोजन ऊर्जा वाहक के रूप में भारत के ऊर्जा आयात को प्रतिस्थापित कर सकता है। भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के अत्यधिक कम कीमत के कारण हरित हाइड्रोजन का उत्पादन एक अच्छा विकल्प है। वैश्विक हाइड्रोजन परिषद ने एक अध्ययन में कम लागत वाले नवीकरणीय शुल्कों की बदौलत भारत को वर्ष 2030 से हरित हाइड्रोजन के निर्यातक के रूप में वर्गीकृत किया है।
- हाइड्रोजन लगभग 70 मिलियन टन के मौजूदा वैश्विक बाजार के साथ एक रासायनिक फीडस्टॉक भी है।भारत पहले से ही वार्षिक स्तर पर लगभग 6 मीट्रिक टन हाइड्रोजन (वैश्विक मांग का 5%) का उपभोग करता है।
- भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। हरित हाइड्रोजन उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ विकास संक्रमण में बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा, इस उद्योग के प्रारंभिक अवस्था को देखते हुए भारत के पास उच्च-मूल्य वाले हरित उत्पादों और इंजीनियरिंग सामानों, खरीद और निर्माण सेवाओं के निर्यात के लिये क्षेत्रीय हब बनाने का एक बड़ा अवसर है।
वैश्विक स्थिति
- वर्तमान में 25 से अधिक देशों ने हरित हाइड्रोजन के लिये रोडमैप तैयार किया है, जिसमें नियमन और वित्तीय प्रोत्साहन भी शामिल हैं।पवन और सौर ऊर्जा, विद्युत गृहों व इलेक्ट्रिक कारों को बिजली प्रदान कर सकते हैं परंतु ऊर्जा-गहन उद्योगों, जैसे- रिफाइनिंग, स्टील, सीमेंट और औद्योगिक हीटिंग के लिये हरित हाइड्रोजन एक आदर्श बिजली स्रोत हो सकता है।
- वैश्विक स्तर पर सरकारें मौजूदा हाइड्रोजन उद्योग को ‘ग्रे हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र’ से एक स्वच्छ ऊर्जा-आधारित ‘हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र’ में बदलने पर जोर दे रही हैं। उल्लेखनीय है कि जीवाश्म ईंधन से उत्पादित हाइड्रोजन को ‘ग्रे हाइड्रोजन’ कहा जाता है। वर्तमान में इससे अधिक मात्रा में हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है।
- गैस और पेट्रोलियम के समृद्ध भंडार वाले कुछ देश ‘नीली-हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था’ (Blue-Hydrogen Economy) पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि यह उनके लिये नए प्रकार के बाज़ार की संभावनाएं खोल रहा है।दूसरी ओर, भारत स्थानीय स्तर पर सीमित हाइड्रोकार्बन संसाधनों और विशाल नवीकरणीय क्षमता एवं इनकी कम कीमतों के कारण ‘हरित हाइड्रोजन’ का एक प्रमुख उत्पादक बन सकता है।
- पश्चिम एशियाई देश, चिली और ऑस्ट्रेलिया का हरित हाइड्रोजन में अग्रणी बनने का लक्ष्य है।ऑस्ट्रेलिया में एक ऊर्जा संघ ने पिलबारा में ‘एशियाई अक्षय ऊर्जा हब’ नामक एक परियोजना के निर्माण की योजना की घोषणा की है जो सिंगापुर के लिये हरित हाइड्रोजन का निर्माण करेगी।
लाभ
- वर्ष 2030 तक भारत के 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने के लिये भी हरित हाइड्रोजन महत्त्वपूर्ण है। पीक-जनरेशन (उच्च उत्पादन) समय में नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन अधिशेष के कारण इसका प्रयोग हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
- हरित हाइड्रोजन के उत्पादन लागत में बिजली की हिस्सेदारी आमतौर पर 70% होती है। इसलिये, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों से अधिशेष बिजली हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में वृद्धि कर सकती है।इससे ग्रिड की सुरक्षा भी होगी।
- हरित हाइड्रोजन एक उभरता हुआ उद्योग है और यह भारतीय उद्यमियों को विकास के नवीन मार्ग पर ले जाने में सक्षम करेगा। साथ ही, स्थानीय रूप से उपलब्ध हरित हाइड्रोजन उच्च-मूल्य वाले हरित उद्योगों, जैसे- स्टील और रसायनों के उत्पादन को भारत में स्थानांतरित करने के लिये आकर्षित कर सकता है।
- हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं का विकास और इलेक्ट्रोलाइजर (जल के विघटन में सहायक) उत्पादन का स्थानीयकरण भारत में लगभग 18-20 बिलियन डॉलर का एक नया ‘ग्रीन टेक्नोलॉजी मार्केट’ का निर्माण कर सकता है और घरेलू स्तर पर रोज़गार सृजन कर सकता है।
भारत द्वारा किये जा सकने वाले प्रयास
- सर्वप्रथम भारत को नवीकरणीय ऊर्जा की तरह वर्ष 2030 तक हरित हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता के लिये महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा करनी चाहिये।
- दूसरा, तेल शोधन और उर्वरक जैसे क्षेत्रों में मौजूदा अनुप्रयोगों के लिये ग्रे हाइड्रोजन के साथ एक निश्चित मात्रा में हरित हाइड्रोजन को भी शामिल करने और भविष्य में एक निश्चित समय-सीमा के साथ तेल शोधन और उर्वरक क्षेत्रों को केवल हरित हाइड्रोजन के उपयोग को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- तीसरा, भारत को चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम द्वारा हाइड्रोजन आधारित उत्पाद निर्यात उद्योग (जैसे ग्रीन स्टील) का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये।
- चौथा, भारत को दक्षिण कोरिया, जापान और सिंगापुर के साथ एक क्षेत्रीय गठबंधन का निर्माण करना चाहिये और इन देशों के नेट-ज़ीरो महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति में सहयोग के लिये भारत के तटीय क्षेत्रों से हरित हाइड्रोजन का निर्यात करना चाहिये।
- अंतिम, भारत को विशाल वैश्विक आपूर्ति बाधाओं को दूर करने के लिये इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना शुरू करने की योजना बनानी चाहिये।
निष्कर्ष
इस प्रकार, भारत में स्वच्छ और स्थायी उत्पादों की मांग के अनुरूप अपनी ऊर्जा अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से पुनर्कल्पित और पुनर्व्यवस्थित करने की क्षमता है। भारत को स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में दशकों के नवाचार का भी लाभ उठाना चाहिये। इस प्रक्रिया में, भारत विकसित देशों को तेज़ वृद्धि के साथ सतत विकास का रास्ता दिखा सकता है। हरित हाइड्रोजन ऊर्जा का भविष्य है। इसमें आयात को कम करने और जलवायु-कार्रवाई की दिशा में भारत के प्रयास को गति प्रदान करने की क्षमता है।