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ग्रीनलैंड के स्वामित्व संबंधी मुद्दा

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)

संदर्भ

हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड पर अमेरिका के स्वामित्व एवं अधिग्रहण के लिए डेनमार्क की प्रधानमंत्री मैते फ्रेडरिक्सन से वार्ता की।

ग्रीनलैंड के बारे में

  • अवस्थिति : यह उत्तरी गोलार्द्ध में आर्कटिक एवं अटलांटिक महासागर के बीच कनाडा के आर्कटिक द्वीपसमूह के पूर्व में स्थित है।
  • अवस्थिति : भू-राजनीतिक रूप से ग्रीनलैंड यूरोप का हिस्सा है। हालांकि, भौगोलिक रूप से यह उत्तर अमेरिका महाद्वीप का भाग है।
  • क्षेत्रफल : 2.166 million km² (क्षेत्रफल में दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप) 
  • राजनीतिक नियंत्रण : यह ‘डेनमार्क राजशाही’ के अधीन एक स्वायत्त प्रांत है।
    • ग्रीनलैंड यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है।
  • जनसंख्या : ग्रीनलैंड की जनसंख्या लगभग 56,600 है।
  • इस द्वीप के 80% हिस्से पर स्थाई रूप से बर्फ़ की मोटी परत जमी रहती है। 
  • इतिहास
    • वर्ष 1721 से 1953 तक ग्रीनलैंड, डेनमार्क का उपनिवेश रहा। 
    • वर्ष 1953 से 1979 तक इसे डेनमार्क के एक प्रांत के रूप में दर्जा दिया गया।
    • वर्ष 1979 में डेनमार्क ने ग्रीनलैंड को स्वशासन प्रदान किया।
    • वर्ष 2008 में ग्रीनलैंड ने स्थानीय सरकार को अधिक शक्ति हस्तांतरण के पक्ष में मतदान किया और राजशाही के अधीन एक स्वायत्त प्रांत के रूप में मान्यता प्राप्त की।
    • इसके साथ ही डेनमार्क राजशाही सरकार केवल विदेशी मामलों, सुरक्षा एवं आर्थिक नीति तक ही सीमित रह गई है।

अमेरिका द्वारा अधिग्रहण प्रस्ताव 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1946 में पहली बार अमेरिकी अधिकारियों ने डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीदने का प्रस्ताव रखा था।
    • यह प्रस्ताव ग्रीनलैंड की सुरक्षा के लिए अमेरिका एवं डेनमार्क के बीच 1941 के समझौते के बाद प्रस्तुत किया गया था, जिसके तहत पहली बार अमेरिकी सैनिकों को ग्रीनलैंड पर तैनात किया गया था। 
    • उस समय, जर्मन सेना पहले ही डेनमार्क पर कब्ज़ा कर चुकी थी और ग्रीनलैंड पर भी हमले का खतरा था।
  • डेनमार्क ने वर्ष 1946 में इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
  • हालाँकि, बाद के समझौतों के माध्यम से अमेरिका ने ग्रीनलैंड में न केवल सैन्य अड्डे स्थापित किए, बल्कि एक परमाणु रिएक्टर एवं परमाणु कचरा निपटान सुविधा भी स्थापित किया।
  • वर्ष 2019 में भी डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को खरीदने का प्रस्ताव दिया था। 

अमेरिका द्वारा ग्रीनलैंड के अधिग्रहण के प्रमुख कारण

  • भू राजनीतिक हित : सोवियत संघ और वर्तमान में उसके उत्तराधिकारी रूस के साथ अमेरिका की  प्रतिस्पर्धा अब उतनी तीव्र नहीं रह गई है किंतु आर्कटिक के रणनीतिक महत्त्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • खनिज से समृद्ध होना : ग्रीनलैंड खनिज-समृद्ध है, जहाँ सोना, निकल एवं कोबाल्ट जैसे पारंपरिक संसाधनों के वृहत भंडार के साथ-साथ डिस्प्रोसियम, प्रेजोडियम, नियोडिमियम एवं टेरबियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी खनिजों (Rare Earth Minerals) के कुछ सबसे बड़े भंडार भी हैं। 
  • 34 वर्गीकृत दुर्लभ पृथ्वी खनिजों में से लगभग 23 ग्रीनलैंड में उपलब्ध हैं।
  • अक्षय ऊर्जा क्षेत्र, नए सैन्य अनुप्रयोगों और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स में महत्वपूर्ण उभरती प्रौद्योगिकियों में उपयोग के कारण दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया है। 
  • ग्रीनलैंड के बाहर ये महत्वपूर्ण खनिज चीन में भारी मात्रा में केंद्रित हैं जो वैश्विक उत्पादन एवं आपूर्ति के बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है।
  • चीन का ग्रीनलैंड में बड़े पैमाने पर प्रवेश : चीनी कंपनियाँ इन खनिज संसाधनों के खोज, खनन एवं प्रसंस्करण में अत्यधिक सक्रियता से शामिल हैं।
  • ग्रीनलैंड में खनिज क्षेत्र में निवेश में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 11% है जो ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका से कुछ ही कम है।
  • व्यापारिक हित : जलवायु परिवर्तन एवं भू-तापन से आर्कटिक एवं ग्रीनलैंड बर्फ पिघलने से इस क्षेत्र में व्यापार में वृद्धि होगी और ग्रीनलैंड की स्थिति इस पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।

दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के बारे में 

  •  परिचय : दुर्लभ पृथ्वी खनिज ऐसे ठोस पदार्थ होते हैं जिनमें मुख्य धातु घटक के रूप में दुर्लभ पृथ्वी तत्व होते हैं।
    • दुर्लभ पृथ्वी तत्व (Rare Earth Elements) आवर्त सारणी के तृतीय समूह में आते हैं।
      • इनमें 15 तत्व हैं जिनकी परमाणु संख्या 57 से 71 के बीच है।
  • विशेषता : दुर्लभ पृथ्वी खनिजों में अद्वितीय गुण होते हैं जो इन्हें अत्यधिक तापमान या रासायनिक एजेंटों का सामना करने की क्षमता के कारण इनको विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए आदर्श बनाते हैं।
  • अनुप्रयोग : यह कई तकनीकी उत्पादों के आवश्यक घटक हैं, जिनमें मोबाइल फोन, कंप्यूटर, बैटरियां, इलेक्ट्रिक वाहन एवं पवन टर्बाइन आदि शामिल हैं।
  • वैश्विक माँग : दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की वैश्विक मांग में तेजी से वृद्धि हुई है जिसका अनुमानित वैश्विक बाजार मूल्य वर्ष 2020 में 10 बिलियन डॉलर से अधिक है।
  • प्रमुख भण्डारक देश : चीन, वियतनाम, रूस, ब्राज़ील, भारत एवं अमेरिका 

भारत में दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की स्थिति

  • भारत में दुर्लभ पृथ्वी संसाधनों का दुनिया में पाँचवां सबसे बड़ा संसाधन होने का अनुमान हैं। 
  • भारत में पाए जाने वाले दुर्लभ खनिज इल्मेनाइट, सिलिमेनाइट, गार्नेट, जिरकोन, मोनाजाइट एवं रूटाइल हैं।
  • भारतीय दुर्लभ पृथ्वी संसाधन काफी कमज़ोर ग्रेड के है और रेडियोधर्मिता से जुड़े होने के कारण इनका निष्कर्षण लंबा, जटिल एवं महंगा हो जाता है। 
  • ये मुख्यतया आंध्र प्रदेश, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा व तमिलनाडु की तटीय रेत में और झारखंड, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल के अंतर्देशीय क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं।
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