सकल स्थिर पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation - GFCF) क्या है ?
सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) किसी अर्थव्यवस्था में एक निश्चित अवधि के दौरान निवेश की गई स्थिर परिसंपत्तियों (जैसे मशीनरी, उपकरण, अवसंरचना, भवन आदि) का शुद्ध मूल्य है।
यह आर्थिक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है, जो दीर्घकालिक विकास और उत्पादकता में वृद्धि हेतु किए गए निवेश को दर्शाता है।
भारत में GFCF का विकास
पूर्व 1991 काल:
निवेश स्तर कम था, और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 10% पर बना रहता था।
अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित और सीमित औद्योगिकीकरण वाली थी।
1990 का दशक (उदारीकरण के बाद):
GFCF में वृद्धि हुई, और दशक के अंत तक यह GDP के लगभग 18% तक पहुँच गया।
2000 का दशक:
तेजी से औद्योगिक विकास और अवसंरचना निवेश के कारण GFCF में भारी उछाल आया।
वर्ष 2007 में GFCF GDP के 35.81% के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
2010 का दशक:
वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और घरेलू चुनौतियों के कारण GFCF में गिरावट देखी गई।
वर्ष 2020 तक यह घटकर GDP के 27.32% पर आ गया।
वर्ष 2023:
GFCF ने फिर से सुधार करते हुए GDP के 30.83% तक वापसी की, जो निवेशकों के बढ़ते विश्वास को दर्शाता है।
निजी और सार्वजनिक GFCF
निजी GFCF (Private GFCF) : व्यवसायों और घरेलू इकाइयों द्वारा स्थिर परिसंपत्तियों में किए गए निवेश।
सार्वजनिक GFCF (Public GFCF): सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा अवसंरचना और सार्वजनिक वस्तुओं में किया गया निवेश।
विशेष तथ्य:-यद्यपि सार्वजनिक निवेश आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है, अत्यधिक सरकारी खर्च से "भीड़-बहिर्गमन प्रभाव (Crowding Out Effect)" हो सकता है, जिससे निजी निवेश प्रभावित होता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में GFCF
2022-23 में:GFCF ₹54.35 लाख करोड़ (स्थिर 2011-12 मूल्यों पर) रहा।
2014-15 में: यह ₹32.78 लाख करोड़ था।
यह आंकड़ा भारत में निवेश के मजबूत विकास को दर्शाता है।
क्षेत्रीय वितरण (Sectoral Distribution):निवेश का मुख्य केंद्र अवसंरचना, निर्माण (Manufacturing) और सेवाओं के क्षेत्र रहे।परिवहन, ऊर्जा, और डिजिटल अवसंरचना में महत्वपूर्ण निवेश हुआ।
चुनौतियाँ और चिंताएँ
उच्च पूंजी-उत्पादन अनुपात (Capital-Output Ratio):बढ़ते निवेश के बावजूद पूंजी की दक्षता कम बनी हुई है।
निजी निवेश में गिरावट:-2011 के बाद से निजी निवेश में गिरावट देखी गई, जिसका कारण नीतिगत अनिश्चितता, ऋण संकट और नियामकीय बाधाएँ हैं।
अवसंरचनात्मक बाधाएँ: अपर्याप्त अवसंरचना के कारण निवेशित पूंजी का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
आगे का रास्ता (Way Forward)
नीति सुधार (Policy Reforms):नियमों को सरल बनाना और व्यवसाय करने में आसानी (Ease of Doing Business) को बढ़ावा देना।
अवसंरचना विकास (Infrastructure Development): उद्योगों और आर्थिक गतिविधियों के समर्थन हेतु महत्वपूर्ण अवसंरचना में निवेश को प्राथमिकता देना।
वित्तीय क्षेत्र को सशक्त करना (Financial Sector Strengthening):ऋण संबंधी बाधाओं को दूर करना और वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) को बढ़ावा देना।
सतत विकास पर ध्यान (Focus on Sustainability):ग्रीन टेक्नोलॉजी और डिजिटल टेक्नोलॉजी को पूंजी निर्माण में शामिल करना।