(प्रारम्भिक परीक्षा: पर्यावरण पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) द्वारा वाणिज्यिक भूजल के उपयोग हेतु सख्त प्रावधान तय किये गए हैं यह आदेश भूजल स्तर में गिरावट की जाँच करने की दिशा में माँग करने वाली एक याचिका के संदर्भ में आया है। एन.जी.टी. द्वारा केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के वर्ष 2020 के दिशानिर्देशों को अनुचित बताते हुए कहा कि ये कानून के अनुपालन हेतु पर्याप्त नहीं हैं।
एन.जी.टी. के नए प्रावधान
- वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए भू-जल की निकासी से सम्बंधित परमिट सभी शर्तों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के पश्चात ही जारी किये जाएँ।
- अधिकरण द्वारा वाणिज्यिक संस्थाओं के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment) के बिना भूजल कि निकासी पर प्रतिबंध लगाया गया है।
- भूजल निकासी के लिए परमिट जल कि निर्दिष्ट मात्रा के लिए ही जारी किये जाने चाहिये और डिजिटल मीटर कि सहायता से इनकी निरंतर निगरानी की जानी चाहिये साथ ही तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट भी किया जाना चाहये।
- ऑडिट में विफल होने वाली संस्थाओं और इकाइयों पर अभियोजन और प्रतिबंध सहित सख्त कार्यवाही की जानी चाहिये।
- भूजल का दोहन करने वाली इकाइयों को जल मानचित्रण (Water Mapping) की प्रक्रिया से गुज़रना होगा इसके लिए अधिकारीयों को तीन माह का समय दिया जाएगा ताकि वे भूजल की उपलब्धतता के अनुसार क्षेत्रों को ध्यान में रखकर एक जल प्रबंधन योजना तैयार कर सकें।
- भूजल- भूजल वह जल होता है, जो चट्टानों और मिटटी से रिस जाता है और भूमि के नीचे जमा हो जाता है। जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत (एक़्विफर) कहा जाता है। सामान्य तौर पर जलभृत बजरी, रेत, बलुआ पत्थर या चुना पत्थर से बने होते हैं।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)
- ग्लोबल वार्मिंग के एक वैश्विक चिंता के रूप में उभरने के साथ ही भारत में भी एक विशेष पर्यावरण अदालत की आवश्यकता महसूस की गई। इसी दिशा में वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) की स्थापना कि गई।
- एनजीटी की मुख्य शाखा नई दिल्ली में स्थित है तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के मामलों को तीव्र गति से निपटाना तथा उच्च न्यायलय के मुकदमों के भार को काम करना है।
नए प्रावधानों से उत्पन्न समस्याएँ
- एन.जी.टी. द्वारा जारी की गई नई शर्तें वर्तमान समय में लॉकडाउन के कारण व्यवसाइयों की समस्याओं को और अधिक बढ़ा देंगी, जिससे देश में व्यावसायिक वातावरण के ख़राब होने की आशंका है।
- इन नए सख्त प्रावधानों से वाणिज्यिक निकायों का आर्थिक शोषण होने की सम्भावना है। अगर भूजल स्तर किसी और कारण से गिरता है तो अधिकारियों द्वारा इसका आरोप वाणिज्यिक इकाइयों पर लगाकर उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है।
- एन.जी.टी. का यह कदम जल शक्ति मंत्रालय के विधायी कार्यों में हस्तक्षेप करता है, जिससे शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा को ठेस पहुँचती है साथ ही यह एक नए विवाद को जन्म दे सकता है।
- अब तक भूजल स्तर में सुधार से सम्बंधित कोई दावा नहीं किया गया है और न ही भविष्य में इसके सुधार का आकलन जारी किया गया है।
- भारत की जल गुणवत्ता सूचकांक में स्थिति काफी चिंताजनक है 122 देशों की इस सूची में भारत का 120 वाँ स्थान है
- भारत द्वारा बड़े स्तर पर भूजल की निकासी की गई है भारत द्वारा कुल निकाले गए सालाना वैश्विक जल का 25 % हिस्सा निकाला गया है।
भूजल स्तर में गिरावट के कारण
- भारत के 54 % भूजल कुओं के जल स्तर में कमी आई है तथा वर्ष 2020 तक भारत के 21 प्रमुख शहरों में भूजल स्तर में अत्यधिक गिरावट की आशंका है।
- पिछले चार दशकों में कुल सिंचित क्षेत्र में लगभग 84 % की वृद्धि का मुख्य कारण भूजल है अतिदोहन का मुख्य कारण कृषि के लिए भूजल की बढ़ती माँग है। इसके आलावा अधिकांश क्षेत्रों में भूजल उपलब्धता पर ध्यान दिये बिना फसलों के पैटर्न और मात्रा के सम्बन्ध में फैसले लिये गए।
- भूजल स्त्रोतों में बढ़ते प्रदूषण और आर्सेनिक, नाइट्रेट, फ्लोराइड, लवणता, जैसे संदूषकों की मौजूदगी के बावजूद प्रदूषण को नियंत्रित और भूजल को बहाल करने के लिये केंद्र या राज्यों द्वारा कोई प्रभावी कार्यक्रम लागू नहीं किया गया।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नदियों, झीलों, और भूजल स्त्रोतों में होने वाले जल प्रदूषण की निरंतर निगरानी नहीं की जाती है।
- वर्ष 2014 में भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन पर शांता कुमार की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय समीति ने पाया कि 23 फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य कि घोषणा में प्रभावी मूल्य समर्थन केवल धान और गेहूं पर दिया गया है, जोकि जल सघन फसलें हैं। इन्हें पनपने के लिये बहुत अधिक हद तक भूजल पर निर्भर रहना पड़ता है।
भूजल स्तर में सुधार हेतु सुझाव
- भूजल के अतिदोहन की समस्या से निपटने हेतु कृषि में माँग प्रबंधन का प्रयोग किया जाना चाहिये। इससे कृषि में भूजल पर निर्भरता कम होगी।
- भूजल निकासी, मानसून में वर्षा और जल स्तर को देखते हुए किसी विशिष्ट क्षेत्र के लिये शुष्क मौसम की फसल की योजनाएँ बनानी चाहियें। इसमें उच्च मूल्य वाली और कम जल का उपभोग करने वाली फसलों को भी चुना जा सकता है।
- ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली जैसी आधुनिक सिंचाई की तकनीकों को अपनाना, जिससे वाष्पीकरण और कृषि में जल के गैर लाभकारी प्रयोग को कम किया जा सके।
- विनियामक उपायों के माध्यम से भूजल के पृथक्करण या प्रयोग को नियंत्रित करने हेतु प्रतिबंध लगाना जैसे, सिंचाई के कुओं की गहराई को निर्धारित करना, कुओं के बीच की न्यूनतम दूरी को तय करना एवं उसे कठोरता से अमल में लाना।
- राष्ट्रीय जल प्रारूप विधयेक, 2013 में यह सुझाव दिया गया था कि भूजल निकासी के लिये बिजली के प्रयोग को विनियमित करके भूजल के अत्यधिक दोहन को कम किया जा सकता है।
- किसानों कि आवश्यकताओं और भूजल के उपयोग के मध्य संतुलन के सम्बंध में राष्ट्रीय जल नीति, 2020 में सुझाव दिया गया था कि भूजल निकासी हेतु विद्युत सब्सिडी पर पुनर्विचार किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- भूजल का प्रबंधन सामुदायिक संसाधन के रूप में किये जाने कि आवश्यकता है तथा अत्यधिक दोहन के परिणामस्वरुप जल संसाधन को होने वाले नुकसान के लिये भूस्वामी को कानूनी रूप से ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिये।
- सरकार का यह उत्तरदियत्त्व है कि वह सार्वजानिक प्रयोग के लिये निर्धारित संसाधनों को निजी स्वामित्व में परिवर्तित होने से रोके तथा लाभार्थियों तक गुणवत्तापूर्ण जल कि पहुँच को भी सुनिश्चित करे, जोकि प्रत्येक नागरिक का मूलभूत अधिकार भी है।