प्रारम्भिक परीक्षा: RPA 1951, 10वीं अनुसूची, अनुच्छेद 102(1) और 191(1) मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र:2 - जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ, संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय |
सुर्खियों में क्यों ?
- हाल ही में, सूरत की सेशन कोर्ट ने “मोदी उपनाम” को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे मानहानि के मामले में दो साल की सजा सुनाई है।
प्रमुख बिन्दु
मुद्दा क्या है ?
- मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा ने राहुल गांधी को 2019 के मानहानि मामले में यह कहने के लिए दोषी ठहराया कि 'सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों होता है, चाहे वह नीरव मोदी हो, ललित मोदी या नरेंद्र मोदी।
- यह टिप्पणी 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए कर्नाटक के कोलार में एक रैली के दौरान की गई थी।
- अदालत ने 15,000 रुपये के मुचलके पर राहुल गांधी की जमानत को भी मंजूरी दे दी और उन्हें अपील करने की अनुमति देने के लिए सजा को 30 दिनों के लिए निलंबित कर दिया।
क्या है मानहानि ?
- भारत में मानहानि एक सिविल दोष (Civil Wrong) और आपराधिक कृत्य दोनों हो सकते हैं और इसका अंतर इनके द्वारा प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों में अंतर्निहित होता है।
- सिविल दोष के अंतर्गत - मुआवज़े के माध्यम से क्षतिपूर्ति की जाती है और कृत्य में सुधार का प्रयास किया जाता है और वहीं मानहानि के आपराधिक मामलों में किसी गलत कृत्य के लिये अपराधी को दंडित किया जाता है।
मानहानि से संबंधित कानून क्या है ?
- भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 में मानहानि के लिए साधारण कारावास का प्रावधान है, जिसकी अवधि "दो साल सजा या जुर्माना या दोनों।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार निम्न आधारों पर मानहानि का मामला हो सकता है;
- जो कोई भी बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य द्वारा यह जानते हुए कि ऐसे लांछन से उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँच सकती है फिर भी ऐसे कृत्य करता है, तो परिणामस्वरूप अपवादित दशाओं के सिवाय उसके द्वारा उस व्यक्ति की मानहानि करना कहलाएगा।
अपवाद - धारा 499 के अनुसार, सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिये हो तो इसे मानहानि नहीं माना जाएगा ।
संसद सदस्य पद की अयोग्यता का प्रश्न
- अयोग्यता से संबंधित प्रावधानों का वर्णन तीन अलग जगहों पर की गई है
पहला
- संसद के सदस्य और विधान सभा के सदस्य की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 102(1) और 191(1) में वर्णित हैं ।
- एक MP/MLA की अयोग्यता तीन स्थितियों के आधार पर निर्धारित होती हैं;
- लाभ का पद धारण करना,
- दिमागी रूप से अस्वस्थ होना या दिवालिया होना
- वैध नागरिकता का न होना
दूसरा
- अयोग्यता से संबंधित कुछ प्रावधान संविधान की दसवीं अनुसूची में वर्णित हैं,
- इसमें दल-बदल के आधार पर सदस्यों की अयोग्यता का प्रावधान शामिल है।
तीसरा
- अयोग्यता के बारे में कुछ प्रावधान द रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट (RPA), 1951 में वर्णित हैं।
- यह कानून आपराधिक मामलों में सजा के लिए अयोग्यता का प्रावधान करता है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 दोषी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकती है।
- परन्तु ऐसे व्यक्ति जिन पर केवल मुक़दमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं, चाहे उन पर लगा आरोप कितना भी गंभीर हो।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(1) और (2) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य (सांसद अथवा विधायक) अस्पृश्यता, हत्या, बलात्कार, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा तथा 6 वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी साबित किया जाता है तथा उसे न्यूनतम दो वर्ष से अधिक के कारावास की सज़ा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से आयोग्य माना जाएगा तथा ऐसे व्यक्ति को सज़ा समाप्त होने की तिथि के बाद 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य माना जाएगा।
धारा 9 - भ्रष्टाचार या निष्ठाहीनता के लिए बर्खास्तगी के लिए अयोग्यता से संबंधित है । धारा 10- चुनाव खर्च का लेखा-जोखा दर्ज करने में विफल रहने पर अयोग्यता से संबंधित है।
धारा 11- भ्रष्ट आचरण के लिए अयोग्यता से संबंधित है।
यह कानून कैसे बदल गया है?
- RPA के तहत, धारा 8(4) में कहा गया है कि दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्यता केवल "तीन महीने बीत जाने के बाद" प्रभावी होती है। उस अवधि के भीतर, MP/MLA उच्च न्यायालय के समक्ष सजा के खिलाफ अपील दायर कर सकते थे।
- हालांकि, 2013 में 'लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' के ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने आरपीए की धारा 8 (4) को असंवैधानिक करार दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिली थॉमस बनाम भारत संघ के मामले में निर्णय दिया था कि कोई भी संसद सदस्य, विधान सभा का सदस्य या विधान परिषद का सदस्य जिसे किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम दो साल के कारावास की सजा दी जाती है, तो वह तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है।
- वर्ष 2018 में 'लोक प्रहरी बनाम भारत संघ' के एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अयोग्यता "अपीलीय अदालत द्वारा दोषसिद्धि पर रोक की तारीख से लागू नहीं होगी।"
प्रश्न – सांसदों की अयोग्यता संबंधी विवाद पर कौन निर्णय देता है?
- राष्ट्रपति
- संबंधित सदन
- निर्वाचन आयोग
- निर्वाचन आयोग के परामर्श से राष्ट्रपति
उत्तर : D
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