(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 आर्थिक विकास; भारतीय अर्थव्यवस्था; प्रगति, रोज़गार, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)
संदर्भ
विश्व असमानता रिपोर्ट-2022 के अनुसार, विश्व में आर्थिक असमानता अभी भी 200 वर्ष पूर्व के स्तर पर बनी हुई है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली ने इसे दूर करने में कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई है।
विश्व असमानता रिपोर्ट-2022: प्रमुख तथ्य
- इसे विश्व असमानता लैब के अर्थशास्त्री और सह-निदेशक लुकास चांसल द्वारा अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी, इमैनुएल सैज़ और गेब्रियल ज़ुकमैन के साथ मिलकर तैयार किया गया है।
- रिपोर्ट में न सिर्फ असमानता में हो रही वृद्धि की गति को मापा गया है, बल्कि इसकी मात्रा भी निर्धारित की गई है।
- विश्व में सर्वाधिक असमानता मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्र में है, जबकि यूरोप में असमानता का स्तर सबसे कम है। यूरोप में शीर्ष 10% आबादी के पास आय का लगभग 36% भाग है, जबकि मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में यह 58% है। पूर्वी एशिया में शीर्ष 10% आबादी के पास कुल आय का 43% भाग है, जबकि लैटिन अमेरिका में यह 55% है।
- वर्ष 1990 के बाद से दुनिया की शीर्ष 1% आबादी के पास विश्व की एक-तिहाई से अधिक संपत्ति है। वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान विश्व में अरबपतियों की संख्या में अब तक की सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि,“अमीर और अमीर हो रहे हैं व गरीब और गरीब।”
- भारत एक समृद्ध अभिजात वर्ग के साथ गरीब और अत्यधिक असमानता वाले देश के रूप में उभरा है, जहाँ शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% और 22% भाग है, जबकि निम्न वर्ग की 50% आबादी को कुल राष्ट्रीय आय में केवल 13% हिस्सा प्राप्त है।
वर्तमान आर्थिक मॉडल और बढ़ती असमानता
- रिपोर्ट के अनुसार, लोकतंत्र के उदय, आर्थिक उदारीकरण और मुक्त बाज़ार के साथ-साथ आय और संपत्ति दोनों में व्यापक असमानता बनी हुई है। असमानता के संदर्भ में वर्तमान में वही स्थिति है जो 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी साम्राज्यवाद के समय विद्यमान थी।
- वर्ष 1820 से 2020 के दौरान शीर्ष 10% आबादी के पास कुल आय का 50-60% हिस्सा है, जबकि निम्न आय वर्ग की 50% आबादी के पास सिर्फ 5 से 15% ही आय है।
- चांसल कहते हैं कि “यह असमानता लोकतंत्र से ज़्यादा लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये हमारे द्वारा चुने गए विकल्पों पर सवाल उठाती है।“
- इस रिपोर्ट में निजी क्षेत्र द्वारा धन के संकेंद्रण का मुद्दा भी उठाया गया है। इसमें बताया गया है कि विभिन्न देशों में निजी क्षेत्र के पास सरकार से अधिक संपत्ति और आय है। पिछले चार दशकों में देश तो अमीर बन गए हैं, लेकिन उनकी सरकारों ने लगातार संपत्ति में गिरावट दर्ज की है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक अभिकरणों के पास संपत्ति का हिस्सा शून्य के करीब या नकारात्मक तक पहुँच गया है अर्थात् इन देशों में धन का संकेंद्रण निजी हाथों में है। वर्ष 2020 तक अमीर देशों में निजी संपत्ति का मूल्य वर्ष 1970 के स्तर से दोगुना हो गया है।
- ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय संपत्ति में पूर्ण रूप से निजी संपत्ति ही है, क्योंकि इन देशों में शुद्ध सार्वजनिक संपत्ति नकारात्मक हो गई है।
- वैश्विक असमानता आज भी उतनी ही व्यापक समस्या है, जितनी 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी साम्राज्यवाद के दौरान थी। रिपोर्ट के अनुसार, कुल वैश्विक आबादी की नीचे से 50% आबादी के पास कुल वैश्विक संपत्ति का सिर्फ 2% भाग है, जबकि वैश्विक आबादी के सबसे अमीर 10% के पास कुल संपत्ति का 76% हिस्सा है।
आर्थिक मॉडल से उपजी असमानता
- रिपोर्ट के अनुसार, 1980 के दशक के मध्य से विनियमन और उदारीकरण नीतियों के परिणामस्वरूप दुनिया में आय और धन असमानता में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है। इस दौरान समृद्ध अभिजात वर्ग के साथ भारत एक गरीब और अत्यधिक असमानता वाले देश के रूप में उभरा है।
- आय और संपत्ति की असमानता के संदर्भ में भारत में नीचे की 50% आबादी की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 53,610 रुपए, जबकि शीर्ष 10% आबादी की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय इसका लगभग 20 गुना (11,66,520 रुपए) है।
- इसी तरह देश की शीर्ष 1% आबादी को राष्ट्रीय आय के पाँचवें हिस्से से अधिक हिस्सा प्राप्त है, जबकि निम्न वर्ग की 50% आबादी के पास केवल 13% भाग है जो हाल के दशकों में निरंतर कम हो रहा है।
- भारत का संपत्ति वितरण संकेत देता है कि देश में असमानता तेज़ी से बढ़ रही है। भारत में परिवार की औसत संपत्ति 9,83,010 रुपए है, लेकिन निम्न वर्ग की 50% आबादी के पास कुल औसत संपत्ति का लगभग 6% अर्थात् 66,280 रुपए ही है।
निष्कर्ष
विश्व असमानता रिपोर्ट-2022 के अनुसार, देशों के भीतर शीर्ष 10% और निम्न वर्ग की 50% आबादी की औसत आय के बीच का अंतर लगभग दोगुना है। देशों के भीतर असमानताओं में इस तेज़ वृद्धि का आशय है कि उभरते देशों में आर्थिक विकास के बावजूद, वर्तमान में दुनिया असमान बनी हुई है।