प्रारंभिक परीक्षा
(समसामयिक घटनाक्रम, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता)
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संदर्भ
एलन मस्क के स्वामित्व वाली स्पेसएक्स कंपनी के ‘फाल्कन 9’ रॉकेट ने 19 नवंबर, 2024 को फ्लोरिडा के केप कैनावेरल से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के GSAT-N2 सैटेलाइट (कृत्रिम उपग्रह) को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।
GSAT-N2 के बारे में
- क्या है : एक संचार सैटेलाइट
- इसे GSAT-20 भी कहा जाता है।
- निर्माण : इसरो के सैटेलाइट सेंटर तथा लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर द्वारा विकसित।
- उद्देश्य : भारत की बढ़ती कनेक्टिविटी आवश्यकताओं की पूर्ति
- जीवन काल : 14 वर्ष
- वजन : 4,700 किलोग्राम
- स्थिति : भूस्थिर कक्षा (35,786 किलोमीटर की ऊँचाई पर)
GSAT-N2 की प्रमुख विशेषताएं
- उच्च डाटा क्षमता : 32 उपयोगकर्ता बीम्स (User Beams) पर 48 जी.बी.पी.एस. की थ्रूपुट (किसी प्रणाली या प्रक्रिया से गुजरने वाली सामग्री या वस्तुओं की मात्रा) के साथ यह सैटेलाइट मजबूत ब्रॉडबैंड कवरेज सुनिश्चित करता है जो अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपसमूह जैसे दूरदराज के क्षेत्रों तक विस्तारित सेवा प्रदान करेगा।
- 32 उपयोगकर्ता बीम में से पूर्वोत्तर क्षेत्र पर 8 नैरो स्पॉट बीम (Narrow Spot Beam) और शेष भारत पर 24 वाइड स्पॉट बीम (Wide Spot Beam) शामिल हैं।
- का-बैंड प्रौद्योगिकी: का-बैंड (Ka-Band) आवृत्ति का उपयोग करते हुए GSAT-20 को उड़ान के दौरान (In-Flight) इंटरनेट सेवाओं एवं स्मार्ट सिटी पहलों का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- स्थायित्व एवं दक्षता : इस सैटेलाइट को 14 वर्ष के मिशन काल के लिए तैयार किया गया है और इसमें कार्बन फाइबर वाली पॉलिमर संरचनाओं एवं लिथियम आयन बैटरियों सहित उन्नत सामग्री का उपयोग किया गया है।
- मांग-संचालित मॉडल : यह प्रक्षेपण भारत सरकार के वर्ष 2020 अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों का हिस्सा है जिसके तहत NSIL को सेवा मांग के आधार पर सैटेलाइट विकसित करने का अधिकार दिया गया है।
इसरो-स्पेसएक्स सहयोग
- यह पहला अवसर है जब इसरो द्वारा निर्मित कोई सैटेलाइट स्पेसएक्स द्वारा लॉन्च किया गया है।
- इसरो एवं स्पेसएक्स के बीच इस प्रक्षेपण सहयोग का उद्देश्य भारत में दूरदराज के क्षेत्रों के साथ-साथ इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी सहित इंटरनेट सेवाओं को बढ़ाना है।
- ऐतिहासिक रूप से भारत भारी सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए फ्रांसीसी एरियनस्पेस रॉकेट पर निर्भर रहा है।
- हालांकि, 4,700 किलोग्राम का GSAT-20 भारत के लॉन्च वाहनों की क्षमता से अधिक था, जिसके कारण NSIL को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 को चुनना पड़ा।
- फाल्कन-9 रॉकेट स्पेसएक्स द्वारा निर्मित एक रियूजेबल (पुनर्प्रयोग) रॉकेट है।
- फाल्कन-9 से सैटेलाइट के साथ-साथ लोगों को भी स्पेस में ले जा सकते हैं।
- इसके रियूजेबल होने से कंपनी के प्रोजेक्ट्स की लागत काफी कम हो जाती है।
NSIL के बारे में
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) इसरो की वाणिज्यिक शाखा है।
- इसकी स्थापना 6 मार्च, 2019 (कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत) को हुई थी।
- इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी वाली अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों को शुरू करने में सक्षम बनाना है।
- यह भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के उत्पादों एवं सेवाओं के प्रचार व वाणिज्यिक दोहन के लिए भी जिम्मेदार है।
- जून 2022 में NSIL ने अपना पहला मांग-संचालित सैटेलाइट मिशन GSAT-24 (जिसे अब GSAT-N1 कहा जाता है) सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जिसे पूरी तरह से केवल एक कंपनी टाटाप्ले द्वारा पट्टे पर लिया गया है।
- हालांकि, GSAT-24 के विपरीत GSAT-20 कई उपयोगकर्ताओं को सेवा प्रदान करेगा।
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इस प्रक्षेपण के निहितार्थ
- GSAT-N2 का सफल प्रक्षेपण अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए भारत के उभरते दृष्टिकोण को दर्शाता है जिसमें घरेलू विशेषज्ञता को वैश्विक भागीदारी के साथ जोड़ा गया है।
- स्पेसएक्स के साथ साझेदारी न केवल NSIL के लिए एक नया अध्याय शुरू करती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी को भी दर्शाती है।
- स्मार्ट सिटीज, इन-फ्लाइट इंटरनेट एवं दूरदराज के क्षेत्रों के लिए कनेक्टिविटी लगातार महत्वपूर्ण होती जा रही है, ऐसे में GSAT-20 भविष्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।