New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 20 Jan, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 5 Jan, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124 GS Foundation (P+M) - Delhi: 20 Jan, 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 5 Jan, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124

न्यायिक जीवन मूल्य के मार्गदर्शक सिद्धांत

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के आवास पर गणपति पूजा में भाग लेने के लिए की गई यात्रा के औचित्य के बारे में सार्वजनिक मंचों और कानूनी विशेषज्ञों द्वारा की गई टिप्पणियां 7 मई, 1997 को सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण न्यायालय बैठक में न्यायिक मूल्यों पर अपनाए गए 16-सूत्रीय दस्तावेज पर आधारित हैं।

न्यायिक मूल्यों पर 16-सूत्रीय दस्तावेज

  • सर्वोच्च न्यायालय ने 7 मई, 1997 को ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन’ नामक एक चार्टर अपनाया। 
    • यह एक न्यायिक आचार संहिता है जो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
  • यह दस्तावेज़ सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा अपेक्षित व्यवहार का उल्लेख करता है। 

इसमें शामिल 16 प्रमुख बिंदु 

  1. यह दस्तावेज़ इस सिद्धांत पर आधारित है कि लोगों को आश्वस्त किया जाना चाहिए कि न्याय किया गया है और न्याय होते हुए देखा गया है। उच्च न्यायपालिका के सदस्यों के व्यवहार एवं आचरण से न्यायपालिका की निष्पक्षता में लोगों के विश्वास की पुष्टि होनी चाहिए।
    1.1 सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का कोई भी आधिकारिक या व्यक्तिगत कार्य जो इस धारणा की विश्वसनीयता को नष्ट करता हो, उससे बचना चाहिए।

  2. किसी न्यायाधीश को किसी क्लब, सोसायटी या अन्य एसोसिएशन के किसी भी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। साथ ही, न्यायाधीश कानून से संबंधित किसी सोसायटी या एसोसिएशन को छोड़कर किसी अन्य में ऐसा निर्वाचित पद धारण नहीं करेंगे।

  3. न्यायाधीश द्वारा बार के व्यक्तिगत सदस्यों, विशेषकर उसी न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले सदस्यों के साथ निकट संबंध रखने से परहेज करना चाहिए।

  4. एक न्यायाधीश को अपने निकट परिवार के किसी भी सदस्य को, जैसे- पति/पत्नी, पुत्र, पुत्री, दामाद या पुत्रवधू या किसी अन्य निकट संबंधी को यदि वह बार का सदस्य हो, अपने समक्ष उपस्थित होने या यहां तक ​​कि किसी मामले में किसी भी तरह से संबद्ध होने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

  5. न्यायाधीश के परिवार के किसी भी सदस्य को जो बार काउंसिल का सदस्य है, उस आवास का या पेशेवर कार्य के लिए अन्य सुविधाओं के उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जिसमें न्यायाधीश वास्तव में रहता है।

  6. न्यायाधीश को अपने पद की गरिमा के अनुरूप एक हद तक अलगाव का अभ्यास करना चाहिए।

  7. कोई न्यायाधीश ऐसे मामले की सुनवाई और निर्णय नहीं करेगा जिसमें उसके परिवार का कोई सदस्य, कोई करीबी रिश्तेदार या कोई मित्र शामिल हो। 

  8. कोई भी न्यायाधीश सार्वजनिक बहस में शामिल नहीं होगा या राजनीतिक मामलों या ऐसे मामलों पर सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त नहीं करेगा जो लंबित हैं या जिसके न्यायिक निर्णय के लिए न्यायालय के समक्ष आने की संभावना है।

  9. एक न्यायाधीश से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने निर्णय स्वयं ही बोले। उसे मीडिया को साक्षात्कार नहीं देना चाहिए।

  10. एक न्यायाधीश को अपने परिवार, निकट संबंधियों और मित्रों को छोड़कर किसी से उपहार या आतिथ्य स्वीकार नहीं करना चाहिए।

  11. कोई न्यायाधीश किसी ऐसे कंपनी से संबंधित मामले की सुनवाई और निर्णय नहीं करेगा जिसमें उसके शेयर हों जब तक कि उसकी रूचि उस कंपनी में समाप्त न हो गई हो तथा मामले की सुनवाई एवं निर्णय पर कोई आपत्ति न उठाई गई हो।

  12. कोई न्यायाधीश शेयरों, स्टॉक या इस तरह की चीज़ों में सट्टा नहीं लगाएगा।

  13. किसी न्यायाधीश को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के सहयोग से, व्यापार या व्यवसाय में संलग्न नहीं होना चाहिए।
    13.1 हालाँकि किसी कानूनी ग्रंथ का प्रकाशन या शौक के रूप में कोई गतिविधि व्यापार या व्यवसाय के रूप में नहीं समझी जाएगी।

    1. किसी भी न्यायाधीश को किसी भी उद्देश्य के लिए धन जुटाने के लिए न तो अनुरोध करना चाहिए, न ही योगदान स्वीकार करना चाहिए और सक्रिय रूप से इसमें शामिल भी नहीं होना चाहिए।

    2. किसी न्यायाधीश को अपने पद से जुड़ी किसी भी तरह की सुविधा या विशेषाधिकार के रूप में कोई वित्तीय लाभ नहीं मांगना चाहिए जब तक कि यह स्पष्ट रूप से उपलब्ध न हो।

    3. इस संबंध में किसी भी संदेह का समाधान एवं स्पष्टीकरण मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से किया जाना चाहिए।
      16.1 न्यायाधीश को हर समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह जनता की नज़रों में है और उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य या चूक नहीं होनी चाहिए जो उसके पद के प्रति या पद के सार्वजनिक सम्मान के प्रतिकूल हो।

    न्यायिक आचरण के पूर्व उदाहरण 

    • न्यायिक आचरण की स्थापित प्रथाएँ उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों के बीच बातचीत में ईमानदारी के माध्यम से जनता का विश्वास बनाए रखने पर बल देती हैं।
    • जैसा कि तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वेंकटचलैया ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से कहा था न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संबंध सही होने चाहिए, सौहार्दपूर्ण नहीं। 
    • न्यायालय एवं सरकार के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का हमारे संवैधानिक नियंत्रण  एवं संतुलन की योजना में कोई स्थान नहीं है। 
    • संविधान की रक्षा करने और बिना किसी भय या पक्षपात के न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी रखने वाली न्यायपालिका को कार्यपालिका शाखा से पूरी तरह स्वतंत्र माना जाना चाहिए।
    « »
    • SUN
    • MON
    • TUE
    • WED
    • THU
    • FRI
    • SAT
    Have any Query?

    Our support team will be happy to assist you!

    OR