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हेग सेवा अभिसमय तथा भारत

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।)

संदर्भ 

हाल ही में अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (Securities and Exchange Commission : SEC)  ने न्यूयॉर्क के एक न्यायालय को सूचित किया कि प्रतिभूति और वायर धोखाधड़ी मामले में भारतीय अरबपति गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी को समन देने के लिए उसने हेग सर्विस कन्वेंशन के तहत भारत सरकार से सहायता मांगी है । 

हालिया वाद 

  • अमेरिकी न्याय विभाग और एस.ई.सी. ने गौतम अडानी पर अडानी समूह की सौर परियोजनाओं के समर्थन के लिए भारतीय सरकारी अधिकारियों को कथित तौर पर 250 मिलियन डॉलर से अधिक की रिश्वत देने के आरोप लगाए गए थे।
  • एस.ई.सी. ने न्यायालय को सूचित किया कि उसने भारत के विधि एवं न्याय मंत्रालय से प्रतिवादियों को समन भेजने में सुविधा प्रदान करने का अनुरोध करने के लिए कन्वेंशन के अनुच्छेद 5(ए) का हवाला दिया है। 
  • संघीय सिविल प्रक्रिया नियम 4(एफ) के तहत एस.ई.सी. अनुमत वैकल्पिक सेवा विधियों की खोज कर रहा है, जो अमेरिकी संघीय न्यायालयों में दीवानी मुकदमेबाजी को नियंत्रित करता है। 
  • 10 फरवरी, 2025 को, ट्रम्प प्रशासन ने विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (Foreign Corrupt Practices Act : FCPA) के प्रवर्तन को 180 दिनों के लिए रोक दिया था। 
    • एफ.सी.पी.ए. अमेरिकी संस्थाओं और व्यक्तियों को व्यापार हासिल करने के लिए विदेशी सरकारों, राजनीतिक दलों या अधिकारियों को रिश्वत देने से रोकता है।
    • यह उन कानूनों में से एक है जिसके तहत अडानी पर आरोप लगाए गए हैं। 
  • ट्रंप प्रशासन के कार्यकारी आदेश के अनुसार, अटॉर्नी जनरल को सभी मौजूदा एफ.सी.पी.ए. जांच या प्रवर्तन कार्रवाइयों की समीक्षा करने के साथ ही इसके प्रवर्तन पर उचित सीमाएं बहाल करने के लिए कदम उठाने चाहिए। 
    • हालाँकि, यह आदेश पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होता है। परिणामस्वरूप, जब तक कानून में संशोधन नहीं किया जाता, अडानी परिवार के खिलाफ एजेंसी की जाँच जारी रहने की संभावना है।

हेग अभिसमय के बारे में 

  • सीमा पार मुकदमेबाजी में वृद्धि के साथ, विदेशी अधिकार क्षेत्रों में रहने वाले पक्षों को न्यायिक एवं न्यायेत्तर समन प्रदान करने के लिए एक प्रभावी और विश्वसनीय तंत्र की आवश्यकता अनिवार्य हो गई। 
    • इसके परिणामस्वरूप, वर्ष 1965 में देशों ने निजी अंतर्राष्ट्रीय कानून पर हेग अभिसमय को अपनाया। 
    • इसे औपचारिक रूप से सिविल या वाणिज्यिक मामलों में न्यायिक और न्यायेतर समन की विदेश में सेवा पर कन्वेंशन, 1965 के रूप में जाना जाता है।
  • यह बहुपक्षीय संधि यह सुनिश्चित करती है कि विदेशी अधिकार क्षेत्रों में मुकदमा चलाने वाले प्रतिवादियों को कानूनी कार्यवाही की समय पर और वास्तविक सूचना के साथ ही समन के तामील होने के प्रमाण की भी सुविधा मिले।
  • भारत और अमेरिका सहित 84 देश इस अभिसमय के पक्षकार हैं। 

कार्यप्रणाली

  • हेग अभिसमय की प्रक्रियाएँ तभी लागू होती हैं जब समन भेजने वाले और प्राप्त करने वाले दोनों देश इसके हस्ताक्षरकर्ता हों। 
  • अभिसमय के अनुसार प्रत्येक सदस्य देश को अनुरोधों को संसाधित करने और अन्य हस्ताक्षरकर्ता देशों से समन तामील करने की सेवा को सुविधाजनक बनाने के लिए एक केंद्रीय प्राधिकरण भी नामित किया जाना चाहिए।
  • अभिसमय के हस्ताक्षरकर्ता देश अपने अधिकार क्षेत्र में दस्तावेज़ों/ समन के प्रेषण के लागू होने वाले के तरीकों का चयन कर सकते हैं। 
  • अभिसमय  के तहत, प्राथमिक तरीका नामित केंद्रीय अधिकारियों के माध्यम से समन प्रेषित करने का है। 
    • हालाँकि, वैकल्पिक चैनल भी उपलब्ध हैं, जिनमें डाक सेवा, राजनयिक एवं कांसुलरी चैनल, दोनों  देशों के न्यायिक अधिकारियों के बीच सीधा संचार, इच्छुक पक्ष व प्राप्तकर्ता राज्य के न्यायिक अधिकारियों के बीच सीधा संपर्क तथा सरकारी प्राधिकारियों के बीच सीधा संचार शामिल हैं।

भारत में प्रतिवादियों पर अभिसमय का लागू होना 

  • 23 नवंबर, 2006 को कुछ शर्तों के साथ भारत हेग अभिसमय में शामिल हुआ। भारत की शर्तों में  अनुच्छेद 10 के तहत समन तामील करने की सभी वैकल्पिक सेवा विधियों का स्पष्ट रूप से विरोध किया गया था। 
  • भारत राजनयिक या कांसुलर चैनलों के माध्यम से न्यायिक दस्तावेजों से संबंधित समन सेवा को प्रतिबंधित करता है, सिवाय इसके कि जब समन प्राप्तकर्ता अनुरोध करने वाले देश का नागरिक हो। 
    • उदाहरण के लिए, एक अमेरिकी अदालत भारत में अमेरिकी राजनयिक या कांसुलर चैनलों के माध्यम से दस्तावेजों को प्रेषित नहीं कर सकती है, जब तक कि प्राप्तकर्ता भारत में रहने वाला एक अमेरिकी नागरिक न हो। 
  • इसके अतिरिक्त, सभी सेवा अनुरोध अंग्रेजी में होने चाहिए या अंग्रेजी अनुवाद के साथ होने चाहिए।
  • भारत में समन से संबंधित वैध सेवा केवल भारत के नामित केंद्रीय प्राधिकरण, विधि एवं न्याय मंत्रालय के माध्यम से निष्पादित की जा सकती है। 
  • विधि एवं न्याय मंत्रालय को सेवा अनुरोध को अस्वीकार करने की अनुमति है, लेकिन उसे इस तरह के इनकार के कारणों को निर्दिष्ट करना होगा। 
    • उदाहरण के लिए, हेग अभिसमय के अनुच्छेद 13 के तहत, यदि राज्य को लगता है कि उसकी संप्रभुता या सुरक्षा से समझौता किया जाएगा तो उसके द्वारा अनुरोध को अस्वीकार किया जा सकता है।
    • लेकिन कोई  देश केवल इस आधार पर दस्तावेज़/समन प्रेषित करने की सेवा अनुरोध को अस्वीकार नहीं कर सकता कि वह अपने घरेलू कानून के तहत इस विषय वस्तु पर विशेष अधिकार क्षेत्र रखता है। 
    • इसी तरह, अभिसमय के अनुच्छेद 29 के तहत, किसी अनुरोध को केवल इसलिए अस्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि राज्य का आंतरिक कानून कार्रवाई के अधिकार को मान्यता नहीं देता।
  • यदि केंद्रीय प्राधिकरण कोई आपत्ति नहीं उठाता है, तो वह प्रतिवादी को समन तामील करने के साथ आगे बढ़ता है। 
    • फिर इस तामील को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 29(सी) के तहत भारतीय न्यायालय द्वारा जारी समन के रूप में माना जाता है। 
  • एक बार प्रक्रिया पूरा हो जाने के बाद केंद्रीय प्राधिकरण अनुरोध करने वाले पक्ष को एक पावती जारी करता है। 

संबंधित मुद्दे पर न्यायिक निर्णय 

वर्तमान में यह चर्चा का विषय यह है कि क्या कन्वेंशन के अनुच्छेद 10 के तहत सोशल मीडिया और ईमेल जैसे वैकल्पिक चैनलों के माध्यम से  समन तामील करने की सेवा भारत  में प्रतिबंधित है। 

फेडरल ट्रेड कमीशन बनाम पीसीकेयर 247 इंक. वाद (2013)

  • फेडरल ट्रेड कमीशन बनाम पीसीकेयर 247 इंक. (2013) में, एक अमेरिकी जिला न्यायालय ने फैसला सुनाया कि फेसबुक और ईमेल के माध्यम से भारत में प्रक्रिया की सेवा अनुमेय है। 
  • अदालत ने तर्क दिया कि ये तरीके अनुच्छेद 10 के दायरे में नहीं आते हैं और भारत ने उन पर स्पष्ट रूप से आपत्ति नहीं जताई है। 

पंजाब नेशनल बैंक (इंटरनेशनल) लिमिटेड बनाम बोरिस शिपिंग लिमिटेड और अन्य वाद  (2019)

  • पंजाब नेशनल बैंक (इंटरनेशनल) लिमिटेड बनाम बोरिस शिपिंग लिमिटेड और अन्य वाद  (2019) में, इंग्लैंड और वेल्स उच्च न्यायालय (क्वींस बेंच डिवीजन) ने एक अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को पलट दिया, जिसने भारत में रहने वाले प्रतिवादियों पर वैकल्पिक तरीकों के माध्यम से समन की सेवा की अनुमति दी थी। 
    • अदालत ने माना कि ऐसी सेवा अमान्य थी क्योंकि यह कन्वेंशन के तहत भारत द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं करती थी। 
    • इसने इस बात पर बल दिया कि जब तक असाधारण परिस्थितियाँ प्रदर्शित न हों, इस अनिवार्य प्रक्रिया से विचलन अस्वीकार्य है।

रॉकफेलर टेक्नोलॉजी इन्वेस्टमेंट्स बनाम चांगझोउ सिनोटाइप टेक्नोलॉजी कंपनी वाद  (2020) 

रॉकफेलर टेक्नोलॉजी इन्वेस्टमेंट्स बनाम चांगझोउ सिनोटाइप टेक्नोलॉजी कंपनी वाद  (2020) में, कैलिफोर्निया के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि हस्ताक्षरकर्ता राज्य के कन्वेंशन के अनुच्छेद 10 पर स्पष्ट रूप से आपत्ति जताने के बाद भी समन सेवा को वैध माना जा सकता है यदि दोनों पक्ष अपने अनुबंध में वैकल्पिक विधि पर स्पष्ट रूप से सहमत हों।

एकतरफ़ा निर्णय ज़ारी किया जाना 

  • यदि कोई विदेशी सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में रहने वाले प्रतिवादी को समन भेजने में सहयोग करने से इनकार करती है, तो कन्वेंशन के तहत एकतरफा निर्णय जारी किया जा सकता है।
  • हालाँकि, अनुच्छेद 15 में कुछ विशिष्ट शर्तें निर्धारित की गई हैं, जिन्हें इस तरह का निर्णय दिए जाने से पहले पूरा किया जाना चाहिए:
    • समन को कन्वेंशन में उल्लिखित विधियों में से किसी एक के माध्यम से प्रेषित किया जाना चाहिए। 
    • समन प्रेषित होने के बाद से कम से कम छह महीने बीत चुके हों। 
    • प्राप्तकर्ता राज्य के सक्षम अधिकारियों के माध्यम से इसे प्राप्त करने के सभी उचित प्रयासों के बावजूद समन तामील होने का कोई प्रमाण पत्र प्राप्त न हुआ हो।
  • भारत ने स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि भारतीय अदालतें सीमा पार विवादों में एकतरफा निर्णय (Default Verdict) जारी कर सकती हैं, भले ही  संबंधित सेवा या तामील का कोई प्रमाण पत्र प्राप्त न हुआ हो, बशर्ते कि अनुच्छेद 15 के तहत सभी शर्तें पूरी की गई हों।

डुओंग बनाम डीडीजी बीआईएम सर्विसेज एलएलसी वाद, (2023)

  • डुओंग बनाम डीडीजी बीआईएम सर्विसेज एलएलसी वाद (2023) में, अमेरिकी वादी ने हेग अभिसमय द्वारा निर्धारित भारत के केंद्रीय प्राधिकरण के माध्यम से सेवा को प्रभावी बनाने में कठिनाइयों का हवाला देते हुए, ईमेल के माध्यम से भारतीय प्रतिवादियों को समन/दस्तावेज़ जारी करने की अनुमति मांगी।
  • न्यायाधीश कैथरीन किमबॉल मिज़ेल ने इस बात पर बल  दिया कि अनुच्छेद 15 एक ‘सुरक्षा वाल्व’ के रूप में कार्य करता है। 
    • यह अनुच्छेद  एकतरफा निर्णय (Default Verdict)  दर्ज करने की अनुमति देता है, यदि भारत का केंद्रीय प्राधिकरण द्विपक्षीय अनुबंध की शर्तों को पूरा करने में विफल रहता है।
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