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हमास : इस्लामिक अतिवादी हैं या लड़ाके या राष्ट्रवादी !

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार; भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

  • 10 मई, 2021 के दिन ‘येरुशलम दिवस’ के अवसर पर जब इज़रायली सैनिकों ने मुस्लिम जगत की तीसरी सबसे पवित्र मस्ज़िद ‘अल-अक्सा’ में प्रवेश किया, तो इस्लामी अतिवादी संगठन ‘हमास’ ने इज़रायल को चेतावनी देते हुए कहा कि सभी इज़रायली सैनिक ‘अल-अक्सा’ मस्ज़िद से बाहर निकल जाएँ तथा पूर्वी येरुशलम के ‘शेख जर्राह’ क्षेत्र से फिलिस्तीनी परिवारों को बाहर निकालने की प्रक्रिया बंद कर दें।
  • इज़रायल द्वारा इसे नज़रअंदाज किये जाने के पश्चात् हमास ने पश्चिमी येरुशलम सहित इज़रायल के विभिन्न हिस्सों में रॉकेट दागे। प्रतिक्रियास्वरूप इज़रायल ने हमास के विरुद्ध वर्ष 2014 के बाद का सबसे बड़ा अभियान लॉन्च किया। 

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1967 में इज़रायल ने येरुशलम शहर के पूर्वी भाग पर कब्ज़ा कर लिया था, तब से इज़रायल प्रतिवर्ष 10 मई का दिन ‘येरुशलम दिवस’ के रूप में मनाता है।
  • वर्ष 2007 में हमास ने गाज़ा पर कब्ज़ा किया था, तब से इज़रायल और हमास के मध्य दिसंबर 2008 में, नवंबर 2012 में तथा जुलाई-अगस्त 2014 में तीन बड़े संघर्ष हो चुके हैं। इस दौरान इज़रायल की अपेक्षा फिलिस्तीन को अधिक जान-माल की हानि झेलनी पड़ी।
  • विडंबना यह है कि 1970 व 80 के दशक में यासिर अराफ़ात के ‘सेक्युलर नेशनल मूवमेंट’ के विरुद्ध इज़रायल ने ही ‘हमास’ को तैयार किया था, मगर आज वही ‘हमास’ इज़रायल का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है। 

हमास की जड़ें

  • ‘हमास’, जिसका अरबी भाषा में अर्थ ‘उत्साह’ होता है, की जड़ें ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ से जुड़ी हैं। वर्ष 1928 में ब्रदरहुड की स्थापना मिस्र के हसन अल-बन्ना ने की थी। वर्ष 1930 तक इस संगठन ने तत्कालीन ब्रिटिश-फिलिस्तीन में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई।
  • बन्ना ने अपने भाई अब्द अल-रहमान अल-बन्ना को रूढ़िवादी इस्लामिक विचारों का प्रचार करने के लिये फिलिस्तीन भेजा था। फिलिस्तीन की राष्ट्रवादी भावनाओं का नेतृत्व करने वाले संगठन ‘फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाईजेशन’ (PLO) का गठन वर्ष 1964 में हुआ था।
  • इज़रायल ने जॉर्डन से ‘वेस्ट बैंक’ तथा पूर्वी येरुशलम व मिस्र से गाज़ा पट्टी छीन ली थी। इसके पश्चात् पी.एल.ओ. ने पूरे फिलिस्तीन को आज़ाद कराने के लिये इज़रायल के विरुद्ध छापामार युद्ध आरंभ किया।
  • मुस्लिम ब्रदरहुड इन गतिविधियों से दूर रहा तथा उसके शीर्ष नेतृत्व ने पी.एल.ओ. के ‘धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद’ की आलोचना की। ब्रदरहुड ने ज़िहाद आरंभ करने की अपेक्षा मुस्लिम समाज को पहले मज़हब-उन्मुख तथा मज़बूत बनाने पर ज़ोर दिया।
  • इसी बीच इज़रायल ने ब्रदरहुड नेतृत्व से संपर्क किया। वर्ष 1973 में ब्रदरहुड से संबंधित एक मौलवी शेख़ अहमद यासीन ने एक इस्लामिक केंद्र ‘अल-मुजम्मा-अल-इस्लाम’ की स्थापना की तथा इज़रायल ने इसे एक चैरिटी संस्था के रूप में मान्यता प्रदान की।
  • यासीन ने इस संस्था के नाम पर धन एकत्रित किया और इसका प्रयोग विभिन्न मस्ज़िदों तथा गाज़ा में एक इस्लामिक यूनिवर्सिटी के निर्माण में किया।
  • हालाँकि वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति ने पश्चिमी एशिया की इस्लामिक राजनीति को ही बदल दिया। ईरान में ‘मौलवियों की सफलता’ ने अन्य देशों के मौलवियों की महत्त्वाकांक्षाओं को जगा दिया।
  • इन्हीं परिस्थितियों के आलोक में 1980 के दशक में पी.एल.ओ. तथा इस्लामिक अतिवादियों के मध्य में कई हिंसक झड़पें हुईं। 

उत्थान

  • ‘हमास’ की स्थापना वर्ष 1987 में प्रथम ‘इंतिफादा’ (बगावत या विद्रोह) के बाद हुई थी। वर्ष 1987 में गाज़ा में हुई एक यातायात दुर्घटना में कई फिलिस्तीनी मारे गए थे। इसमें एक इज़रायली ड्राइवर के भी शामिल होने के कारण फिलिस्तीनियों का विरोध तीव्र हो गया था।
  • इजरायली कब्ज़े वाले क्षेत्र में वृहत् स्तर पर विद्रोह हुआ तथा पी.एल.ओ. ने अपने समर्थकों से इंतिफादा में शामिल होने का आह्वान किया। इसी दौरान दिसंबर 1987 में, ब्रदरहुड ने भी यासीन के नेतृत्व में एक पत्रक जारी किया और फिलिस्तीनियों से इज़रायल के कब्ज़े के विरुद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया।
  • जनवरी 1988 में, उसने ‘हरकत-अल-मुकावामा-अल-इस्लामियाह’ (the Islamic Resistance Movement) नामक एक और पत्रक जारी किया। अंततः वर्ष 1989 में हमास ने इज़रायल पर पहला हमला किया और दो इज़रायली सैनिकों का हत्या कर दी। बदले में इज़रायल ने ‘क्रैक-डाउन’ कर यासीन को गिरफ्तार कर लिया तथा उसे आजीवन जेल में डाल दिया।
  • हमास का दृष्टिकोण पी.एल.ओ. से अलग था। हमास के अभियान को तीसरी दुनिया का वामपंथी छापामार आंदोलन कहा गया था। उसने वर्ष 1988 में यहूदी-विरोधी टिप्पणियों से भरा एक चार्टर जारी किया।
  • उक्त चार्टर के अनुसार, “फिलिस्तीन एक इस्लामी वक्फ़ भूमि है, जो मुस्लिम पीढ़ियों के लिये समर्पित है। फिलिस्तीन समस्या का एकमात्र समाधान ‘ज़िहाद’ है तथा शांति के सभी प्रयास समय की बर्बादी और बेतुके कार्य हैं।”
  • जब पी.एल.ओ. ने फिलिस्तीन मुद्दे के समाधान के लिये शांति प्रयासों में शामिल होने का निर्णय लिया, तो हमास ने इसका तीखा विरोध किया। इसने ‘ओस्लो समझौते’ के उस प्रावधान का भी विरोध किया, जिसके अंतर्गत इज़रायली कब्ज़े वाले क्षेत्रों के भीतर सीमित शक्तियों के साथ फिलिस्तीनी प्राधिकरण के गठन की अनुमति प्रदान की गई थी।
  • पी.एल.ओ. द्वारा इज़रायल को मान्यता दिये जाने के उपरांत, हमास ने ‘दो-राज्य समाधान’ (Two State Solution) के प्रस्ताव को खारिज कर दिया तथा ‘जॉर्डन नदी से लेकर भूमध्य सागर तक’ पूरे फिलिस्तीन को मुक्त कराने की कसम खाई।
  • हमास ने अपने संगठन में कई शाखाओं का निर्माण किया। इसकी ‘सामाजिक इकाई’ इस्लामी शिक्षा एवं दान, जबकि ‘सैन्य इकाई’ सैन्य योजनाओं तथा हथियार अधिग्रहण का कार्य करती है। इसका एक राजनीतिक ब्यूरो भी है।
  • अक्टूबर 1994 में, ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के एक वर्ष पश्चात्, इसने तेल अवीव में पहला आत्मघाती हमला कराया था। 

विकास-क्रम

  • 1990 तथा 2000 के दशक के आरंभ में हमास ने इज़रायलियों को लक्षित करके कई आत्मघाती हमले किये। वर्ष 2000 में, जब द्वितीय इंतिफादा का आरंभ हुआ तो हमास मज़बूत स्थिति में था। हमास समर्थकों ने इज़रायली सैनिकों के साथ सरेआम हिंसक संघर्ष किया।
  • प्रत्युत्तर में इज़रायल ने ‘टारगेट किलिंग’ की रणनीति अपनाई और वर्ष 2004 में इसके तहत शेख़ यासीन तथा उसके उत्तराधिकारियों को मार गिराया। वर्ष 2005 में, हमास के हिंसक प्रतिरोध के बाद इज़रायल ने अपने सैनिकों को गाज़ा पट्टी से वापस बुला लिया।
  • इज़रायल की फिलिस्तीनियों को ‘सामूहिक दंड’ देने की रणनीति के चलते हमास को फिलिस्तीनियों की सहानुभूति प्राप्त हुई, जिसका लाभ हमास को वर्ष 2006 के फिलिस्तीनी आम चुनावों में मिला।
  • हमास ने इस चुनाव में कुल 132 सीटों में से 74 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि पी.एल.ओ. समर्थित फतेह पार्टी को मात्र 45 सीटें ही प्राप्त हुई थीं।
  • हमास ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पहली बार शांति के संकेत दिये थे। इसने इज़रायल के ‘विनाश’ की उस प्रतिज्ञा को त्याग दिया, जिसका उल्लेख वर्ष 1988 के चार्टर में किया था, और कहा कि “उसकी पहली प्राथमिकता फिलिस्तीनियों के लिये अनुकूल स्थिति निर्मित करना है, सशस्त्र संघर्ष को बनाए रखना नहीं।”
  • हमास ने फिलिस्तीन में सरकार तो बनाई, किंतु उसे इज़रायल सहित अधिकांश वैश्विक शक्तियों के विरोध का सामना करना पड़ा तथा इज़रायल, अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया।
  • वेस्ट बैंक में फतेह और हमास के मध्य तनाव बढ़ने पर, फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने हमास सरकार को भंग कर आपातकाल की घोषणा कर दी। इसके कारण फतेह और हमास के मध्य हिंसक झड़पें हुईं। वर्ष 2007 में, फतेह ने हमास को वेस्ट बैंक से तथा हमास ने फतेह को गाज़ा से बाहर कर दिया था। तब से गाज़ा पट्टी में हमास की ही सरकार है।
  • गाज़ा पट्टी पर हमास के कब्ज़े के बाद से, इज़रायल ने इस क्षेत्र की नाकेबंदी कर दी। जिसने व्यावहारिक रूप से लगभग 2 मिलियन लोगों के राज्यक्षेत्र को एक खुली जेल में बदल दिया है।
  • हमास ने ‘सशस्त्र प्रतिरोध’ की रणनीति को कभी नहीं छोड़ा। इस संगठन का दृष्टिकोण भी कई वर्षों में विकसित (Evolved) हुआ है, जैसा कि पी.एल.ओ. ने पूर्व-ओस्लो वर्षों (Pre-Oslo years) में किया था। यह संगठन अभी भी इज़रायल को मान्यता देने से इनकार करता है। हमास ने ‘हुदना’ (एक स्थाई युद्धविराम) की पेशकश की है, जिसके अनुसार इज़रायल को वर्ष 1967 की सीमा पर लौटना होगा। 

नया चार्टर

  • वर्ष 2017 में, हमास एक नया चार्टर अपनाया, इसमें से मूल चार्टर में की गई ‘यहूदी-विरोधी टिप्पणियों’ को हटा दिया था। इसमें कहा गया है कि हमास, यहूदी लोगों के साथ युद्ध नहीं चाहता। वह केवल ज़ायोनिज्म (Zionism) का विरोध करता है, जो फिलिस्तीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश में है।
  • "हमास ने कहा कि वह न तो अपना कोई अधिकार छोड़ेगा और न ही इज़रायल को मान्यता देगा। साथ ही, इज़रायल को वर्ष 1967 की सीमाओं तक खदेड़कर पूरे फिलिस्तीन को मुक्त कराएगा।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति के साथ एक नई शुरुआत होनी चाहिये थी, लेकिन इज़रायल वर्तमान स्थिति को बनाए रखना चाहता है। इज़रायल का मत है कि वह न तो किसी ‘आतंकवादी इकाई’ से बातचीत करेगा और न ही उसे मान्यता प्रदान करेगा। 

निष्कर्ष

  • वस्तुतः हमास इतना सक्षम नहीं है कि वह इज़रायल को वर्ष 1967 की सीमा तक वापस धकेल सके, लेकिन इज़रायल के लिये भी हमास को पूर्णतः समाप्त करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है।
  • वैसे तो, पिछले कुछ वर्षों में हमास ने अपने अधिकांश संस्थापक नेताओं को खो दिया है तथा अमेरिका सहित अन्य शक्तियों ने इसे एक आतंकवादी संगठन घोषित किया है। इसे अक्सर इज़रायल के हमलों का सामना करना पड़ता है। इज़रायल, हमास के अतिवादी ढाँचे को नष्ट करने के लिये गाज़ा पर अक्सर बमबारी करता रहता है, लेकिन हमास एक और दिन लड़ने के लिये बच जाता है।
  • सबसे बढ़कर, हमास फिलिस्तीनी राजनीति में एक प्रमुख शक्ति बनकर उभरा है। अतः कहा जा सकता है कि इज़रायल-फिलिस्तीन समस्या का समाधान हमास को शामिल किये बिना नहीं किया जा सकता है।
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