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कठोर दायित्व बनाम पूर्ण दायित्व सिद्धांत

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और वाद; प्रश्नपत्र- 3 : आपदा और आपदा प्रबंधन)

पृष्ठभूमि

  • हाल ही में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण  (National Green Tribunal-NGT) ने विशाखापत्तनम गैस रिसाव के लिये एल.जी. पॉलिमर कम्पनी को कठोर दायित्व सिद्धांत के तहत प्रथम दृष्टया ज़िम्मेदार पाया है।
  • यद्यपि विधि विशेषज्ञों के अनुसार,  उपर्युक्त मामले में कठोर दायित्व सिद्धांत के स्थान पर पूर्ण दायित्व सिद्धांत का प्रयोग किया जाना चाहिये था।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने एल.जी. पॉलिमर को 50 करोड़ की आरम्भिक राशि जमा करने का निर्देश दिया है और एक तथ्य-जाँच समिति (fact-finding committee) का गठन भी किया है।
  • इस संदर्भ में, विधि विशेषज्ञों ने कठोर दायित्व शब्द के प्रयोग पर सवाल उठाए हैं क्योंकि वर्ष 1987 में उच्चतम न्यायालय ने इस सिद्धांत को भारत में निरर्थक घोषित कर दिया था।
  • कठोर दायित्व का सिद्धांत  (Strict Liability Principle) : इसके तहत, यदि किसी कम्पनी के परिसर से किसी दुर्घटना या ‘एक्ट ऑफ गॉड’ (या किसी अप्रत्याशित घटना) की वजह से किसी हानिकारक पदार्थ या गैस का रिसाव होता है तो इसके लिये कम्पनी उत्तरदायी नहीं मानी जाएगी और उसे मुआवज़ा देने की ज़रूरत नहीं होगी।
  • पूर्ण दायित्व का सिद्धांत (Absolute Liability Principle) : इसके तहत, यदि किसी भी खतरनाक पदार्थ या गैस उद्योग से जुड़ी कम्पनी में हुई लापरवाही या किसी भी अन्य कारण से कोई खतरा उत्पन्न होता है तो वह कम्पनी किसी भी प्रकार की छूट का दावा नहीं कर सकती है और उसे अनिवार्य रूप से मुआवज़े का भुगतान करना होगा।
  • वर्ष 2010 के राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम में भी पूर्ण दायित्व सिद्धांत की बात की गई है। इस अधिनियम की धारा 17 में कहा गया है कि अधिकरण को पूर्ण दायित्व सिद्धांत लागू करना चाहिये, यदि आपदा एक दुर्घटना ही हो या कम्पनी की लापरवाही के कारण न हो लेकिन फिर भी कम्पनी उत्तरदाई होगी।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1987 के एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ वाद में, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये कठोर दायित्व के सिद्धांत को अपर्याप्त पाया था और इसके स्थान पर ‘पूर्ण दायित्व के सिद्धांत’ को उचित ठहराया था।
  • उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय वर्ष 1986 में दिल्ली के ओलियम गैस रिसाव मामले (Oleum gas leak case) पर आया था।
  • उल्लेखनीय है कि दिल्ली में वर्ष 1986 में श्रीराम फूड एंड फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड के एक उर्वरक संयंत्र से ओलियम गैस का रिसाव हुआ था, जिससे बड़ी मात्रा में जन-धन की हानि हुई थी।
  • ओलियम या फ्यूमिंग सल्फ्यूरिक एसिड सामान्यतः सल्फ्यूरिक एसिड या डाई-सल्फ्यूरिक एसिड (जिसे पिरोसल्फ्यूरिक एसिड के रूप में भी जाना जाता है) में सल्फर ट्राईऑक्साइड के विभिन्न मिश्रणों को कहा जाता है।

न्यायालय ने यह पाया था कि कठोर दायित्व का सिद्धांत जो कि एक अंग्रेज़ी वाद राइलैंड्स बनाम फ्लेचर, 1868 के दौरान सामने आया था, कम्पनियों को उनके दायित्व निर्वहन में कई प्रकार की छूट प्रदान करता है, जिससे कई बार कम्पनियाँ ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बर्ताव करती हैं।

दूसरी ओर, पूर्ण दायित्व का सिद्धांत, कम्पनियों को किसी भी प्रकार का बचाव या छूट नहीं प्रदान करता है; साथ ही, यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का हिस्सा भी है।

  • संविधान का अनुच्छेद 21 यह स्पष्ट करता है कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।
  • न्यायालय भविष्य में आम नागरिकों को किसी भी प्रकार के खतरे से बचाने के लिये कम्पनियों की पूर्ण जवाबदेही स्पष्ट करना चाहती था। ध्यातव्य है कि इस वाद के कुछ समय पहले ही भारत ने भोपाल गैस त्रासदी का दंश झेला था, जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव हो गया था और बड़ी मात्रा में जनधन की क्षति हुई थी।
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