(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 1 : भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, जनसंख्या एवं विकासात्मक विषय संबद्ध मुद्दे)
संदर्भ
जनसंख्या से संबंधित मुद्दों के महत्त्व पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इसे पहली बार वर्ष 1989 में ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (UNDP) द्वारा मनाया गया था। इसका उद्देश्य ‘प्रत्येक जीवन की सुरक्षा’ के लिये स्थायी तरीकों पर संवाद को बढ़ाना है।
जनसंख्या स्थिरीकरण
- विगत वर्ष यू.एन.डी.पी. की एक रिपोर्ट तथा बाद में ‘द लैंसेट’ के एक वैश्विक अध्ययन में कहा गया कि भारत उम्मीद से 12 वर्ष पूर्व अपनी जनसंख्या को स्थिर कर लेगा। इसलिये, भारत द्वारा अपने ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ का लाभ उठाने की ‘संभाव्यता’ कहीं अधिक संकीर्ण है।
- ‘जनसंख्या विस्फोट’ की आशंकाएँ गलत हैं। इसकी बजाय यह महत्त्वपूर्ण है कि अपना ध्यान युवाओं की भलाई पर केंद्रित करें क्योंकि ‘भारत का कल्याण’ उन्हीं पर निर्भर है।
जनसांख्यिकीय लाभांश
- 253 मिलियन जनसंख्या के साथ भारत की ‘किशोर जनसंख्या’ विश्व में सर्वाधिक है।
- भारत की 62 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 15 से 59 वर्ष के मध्य है तथा जनसंख्या की औसत आयु 30 वर्ष से कम है।
- भारत का ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ जनसंख्या की आयु संरचना के आधार पर आर्थिक विकास की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। हालाँकि, इस क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिये किशोरों और युवाओं का ‘स्वस्थ और सुशिक्षित’ होना आवश्यक है।
शिक्षा की स्थिति
- कोविड-19 के कारण देश भर में स्कूल बंद होने से पहले ही भारत की अल्प-वित्तपोषित शिक्षा प्रणाली युवाओं को उभरते रोज़गार के अवसरों का लाभ उठाने तथा आवश्यक कौशल प्रदान करने के लिये अपर्याप्त थी।
- विश्व बैंक के अनुसार, शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय वर्ष 2019 में सकल घरेलू उत्पाद का 4.4 प्रतिशत तथा वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.4 प्रतिशत था।
- एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार प्रति छात्र सार्वजनिक व्यय के मामले में भारत 62वें स्थान पर है।
महामारी का प्रभाव
- भारत में महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन से 32 करोड़ से अधिक छात्र प्रभावित हुए हैं।
- प्रभावित होने वाली स्कूली छात्राओं की संख्या 158 मिलियन है, उनमें से कई जो स्कूल छोड़ चुकी हैं, उनके वापस स्कूल जाने की संभावना कम है।
- विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि स्कूल बंद होने से बच्चों के जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर 65 प्रतिशत किशोरों ने महामारी के दौरान कम सीखने की सूचना दी, 51 प्रतिशत ने महसूस किया कि उनके सीखने में और देरी होगी।
- इसने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि किशोर मानसिक स्वास्थ्य को एक बड़ा झटका लगा है, जिसमें 17 प्रतिशत युवाओं के ‘चिंता और अवसाद’ से पीड़ित होने की आशंका है।
लड़कियों के समक्ष समस्याएँ
- महामारी के दौरान गरीबी के स्तर में वृद्धि के कारण भारत में लड़कियों की कम उम्र में शादी में चिंताजनक वृद्धि हो सकती है।
- भारत में सामान्य रूप से घरेलू गरीबी को दूर करने की रणनीति के रूप में बाल विवाह का उल्लेख हो रहा है। इसमें महामारी के दौरान खतरनाक वृद्धि दर्ज़ हो सकती है। यह लिंग आधारित हिंसा में वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है।
- किशोर लड़कियों को इस समय दुर्व्यवहार और तस्करी के प्रति उनकी संवेदनशीलता को देखते हुए उच्च जोखिम होता है।
- विशेष रूप से लड़कियों पर संकट का बहुत प्रभाव पड़ा है, लेकिन समस्या अपरिवर्तनीय नहीं है; बशर्ते हम चुनौतियों से निपटने की त्वरित और प्रभावी रणनीतियों को लागू करने के लिये दृढ़ प्रतिबद्धता प्रदर्शित करें।
नीति-निर्माताओं के लिये सबक
- यह स्वीकार करते हुए कि महामारी ने युवाओं के जीवन के सभी आयामों को प्रभावित किया है, प्रमुख मंत्रालयों, सरकारी एजेंसियों तथा नागरिक समाज को सहयोगात्मक कार्रवाई द्वारा एक समग्र और सार्थक समाधान विकसित करना होगा।
- यह आवश्यक है कि हमारे पास बेहतर ‘अंतर-क्षेत्रीय सहयोग’ के लिये तंत्र मौजूद है क्योंकि हमारे किशोरों के भविष्य की सुरक्षा अनिवार्य हैं, उदाहरणार्थ स्कूल मध्याह्न भोजन, बेहतर पोषण आदि।
- इससे न केवल माता-पिता एक पौष्टिक भोजन के आश्वासन पर अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करते हैं बल्कि वे कक्षा में सतर्क रहने की पर्याप्त मात्रा भी प्रदान करते हैं।
- विभिन्न अध्ययनों ने किशोरों के ‘पोषण और संज्ञानात्मक’ स्कोर के मध्य मज़बूत संबंध स्थापित किये हैं।
- शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों को टीकाकरण में प्राथमिकता देकर और एक विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण के अनुसार ज़िला स्तर के अधिकारी स्थानीय संक्रमण दर के आधार पर स्कूलों को फिर से खोल सकते हैं।
भावी राह
- शिक्षा मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाना चाहिये कि किशोर, विशेष रूप से लड़कियाँ महामारी के दौरान अपनी शिक्षा जारी रखें।
- साथ ही, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को किशोरों के ‘स्वास्थ्य और सीखने’ की क्षमता को सुरक्षित रखने में मदद के उद्देश्य से सूचनाओं के प्रसार में शिक्षा मंत्रालय के साथ सहयोग करना चाहिये।
- किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालयों को मौजूदा हेल्पलाइन के माध्यम से और उनके प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य के बारे में आउटरीच को मज़बूत करना चाहिये।
- यह प्रदर्शित करने के लिये पर्याप्त अकादमिक शोध मौजूद हैं कि जनसांख्यिकीय लाभांश ने अन्य देशों में विकास में कैसे योगदान दिया, विशेषकर पूर्वी एशिया द्वारा 1965-1990 के दौरान तीव्र आर्थिक संवृद्धि की।
- उक्त अवधि के दौरान पूर्वी एशिया की कार्यशील आबादी अपनी आश्रित आबादी की तुलना में तेज़ दर से बढ़ी, जिससे इन अर्थव्यवस्थाओं के प्रति व्यक्तिगत उत्पादकता का व्यापक विस्तार हुआ।
निष्कर्ष
लक्ष्य-आधारित कार्यकर्मों से न केवल किशोरों के जीवन में सुधार होगा बल्कि स्वस्थ और शिक्षित युवा वयस्कों के साथ एक अच्छा चक्र भी उत्पन्न होगा, जो भारत के भविष्य को सुरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।