New
IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

भारत में स्वास्थ्य बोझ

मुख्य परीक्षा

  • सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय।
  • सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

संदर्भ

घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES-2022-23) के आंकड़े गरीबी दर में उल्लेखनीय कमी दर्शाते हैं। हालाँकि, इसमें नीचे के 50 प्रतिशत भारतीय परिवारों के स्वास्थ्य सेवा बोझ के प्रति लगातार संवेदनशीलता को रेखांकित किया गया है। 

स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय की स्थिति

  • अस्पताल में भर्ती होने का खर्च: अस्पताल में भर्ती होने का खर्च उठाने वाले निचले 50% परिवारों का अनुपात 2011-12 में 17% से बढ़कर 2022-23 में 22% हो गया।
    • ग्रामीण परिवारों के लिए, यह आँकड़ा 18% से बढ़कर 23% हो गया, और शहरी परिवारों के लिए, यह 16% से बढ़कर 20% हो गया।
  • स्वास्थ्य सेवा की बेहतर पहुँच: यह स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय में वृद्धि भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सबसे गरीब 50% आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में उल्लेखनीय सुधार को दर्शाती है।
  • स्वास्थ्य व्यय अनुपात : सबसे निचले 50% परिवारों के लिए, अस्पताल में भर्ती हुए बिना स्वास्थ्य व्यय 2011-12 में मासिक घरेलू व्यय के 3.3% से थोड़ा बढ़कर 2022-23 में 3.6% हो गया।
    • इसके विपरीत, जिन परिवारों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनके मासिक घरेलू व्यय के अनुपात के रूप में स्वास्थ्य व्यय के हिस्से में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई, जो इसी अवधि में 10.8% से घटकर 9.4% हो गई।
  • आर्थिक बोझ : स्वास्थ्य संबंधी झटके व्यक्तियों को उनकी स्वतंत्रता से वंचित करते हैं, इससे संबंधित बड़े चिकित्सा व्यय परिवार के सदस्यों पर आर्थिक बोझ भी डालते हैं। 
    • कीमती संसाधन अन्य व्यय मदों से हटकर चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए आवश्यक मदों में चले जाते हैं।

स्वास्थ्य व्यय अनुपात में ग्रामीण-शहरी अंतर

  • घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार, अस्पताल में भर्ती होने के खर्च वाली स्वास्थ्य सेवा भारतीय आबादी के सबसे गरीब 50% लोगों के लिए अधिक किफायती होती जा रही है, खासकर ग्रामीण इलाकों में।

ग्रामीण क्षेत्र

  • नीचे के 50% के लिए, अस्पताल में भर्ती हुए बिना स्वास्थ्य व्यय का अनुपात 11 वर्षों में 3.4% से थोड़ा बढ़कर 3.6% हो गया।
  • जिन परिवारों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनके लिए यह अनुपात उसी अवधि के दौरान 11.15% से घटकर 9.14% हो गया।

शहरी क्षेत्र

  • जिन परिवारों को अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा, उनके लिए स्वास्थ्य व्यय का अनुपात 3.2% से बढ़कर 3.6% हो गया।
  • जिन परिवारों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनके लिए यह अनुपात 10.3% से घटकर 9.9% हो गया।

अस्पताल में भर्ती होने वाले परिवारों पर आर्थिक प्रभाव 

  • सबसे गरीब 50% में से, 2011-12 में अस्पताल में भर्ती होने वाले 40% परिवारों को उपभोग की स्थिति में गिरावट का सामना करना पड़ा।
    • 2022-23 तक, अस्पताल में भर्ती होने की घटनाओं में वृद्धि के बावजूद, इनमें से केवल 33% परिवारों ने उपभोग की स्थिति में कमी का अनुभव किया।
  • यह प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट है, जहाँ अस्पताल में भर्ती होने का खर्च उठाने वाले निचले 50% परिवारों में से 44% को 2011-12 में उपभोग की स्थिति में गिरावट का सामना करना पड़ा, जो 2022-23 तक घटकर 36% रह गया
  • गरीब शहरी परिवारों के लिए, अस्पताल में भर्ती होने के कारण उपभोग की स्थिति में गिरावट का सामना करने की संभावना 11 वर्षों में 14% कम हो गई।

स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता और वहनीयता 

  • चिकित्सा व्यय के गंभीर बोझ को समझते हुए, भारत सरकार ने इस वित्तीय तनाव को कम करने के लिए महत्वपूर्ण नीतियां लागू की हैं।
    • सरकार की स्वास्थ्य नीतियों के परिणामस्वरूप पिछले दशक में, स्वास्थ्य सेवा भारतीय आबादी के निचले 50% के लिए अधिक सुलभ और सस्ती हो गई है। 
  • ये रुझान भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों, विशेष रूप से आयुष्मान भारत योजना से निकटता से जुड़े हुए हैं, जिसका उद्देश्य गरीबों के लिए अस्पताल में भर्ती होने के वित्तीय बोझ को कम करना है।
    • आयुष्मान भारत योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 की सिफारिश के अनुसार शुरू की गई थी।
    • इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली (रोकथाम, संवर्धन और चलित देखभाल को शामिल करते हुए) को समग्र रूप से संबोधित करने के लिए अग्रणी हस्तक्षेप करना है।
    • आयुष्मान भारत देखभाल की सतत् पद्धति को अपनाता है, जिसमें दो अंतर-संबंधित घटक शामिल हैं –
      • स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (HWCs)
      • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY)
  • इन पहलों से तात्कालिक वित्तीय बोझ को कम करने में मदद मिलती है तथा स्वास्थ्य संबंधी झटकों के कारण परिवारों के गरीबी में फंसने की आशंका कम होती है।

आगे की राह 

  • स्वास्थ्य बीमा कवरेज : बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागतों के खिलाफ़ सुरक्षा के रूप में स्वास्थ्य बीमा की व्यापक कवरेज और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आयुष्मान भारत योजना जैसे कार्यक्रमों को मजबूत और विस्तारित किया जाना चाहिए।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को बेहतर करना : सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को व्यापक रूप से सबसे समावेशी, न्यायसंगत और लागत प्रभावी तरीका माना जाता है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे और सेवाओं में सुधार प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को बढ़ा सकता है।
  • स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक : स्वास्थ्य संबंधी झटकों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिए शिक्षा, स्वच्छता और पोषण जैसे सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
    • इन निर्धारकों की पहचान और उन्हें प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए आवश्यक सामुदायिक स्वास्थ्य का आकलन करके बहुक्षेत्रीय नीतियों पर जोर देने की आवश्यकता है।
  • निवारक स्वास्थ्य सेवा : निवारक स्वास्थ्य सेवा दीर्घकालिक स्वास्थ्य सेवा लागत को काफी हद तक कम कर सकती है। उदाहरण के लिए, नियमित टीकाकरण और जांच गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को रोक सकती है, जिससे महंगे उपचार की आवश्यकता कम किया जा सकता है। 
  • स्वास्थ्य व्यय प्रवृत्तियों की निगरानी : स्वास्थ्य व्यय अनुपात और अस्पताल में भर्ती होने की दरों का नियमित रूप से आकलन करना किया जाना चाहिए। 
    • इससे प्रवृत्तियों और हस्तक्षेप की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है और उभरती चुनौतियों के लिए समय पर प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा सकती है।
  • नीतिगत प्रभाव का मूल्यांकन : स्वास्थ्य नीतियों और कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का निरंतर मूल्यांकन, गरीबी निवारण और स्वास्थ्य पहुंच पर उनके प्रभाव को बेहतर बनाने के लिए डाटा-आधारित समायोजन में सक्षम बनाता है।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X